शेयर बाजार में लाभ के टोटके

टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा

टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा

टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा

पिछले कुछ महीनों से अंतरराष्ट्रीय आर्थिक जगत इस बात को लेकर ज्यादा बेचैन नजर आ रहा है कि चालू खाते में ऊंचे स्तर का जो असंतुलन बढ़ता जा रहा है, उससे मुद्राओं के अवमूल्यन की होड़ बढ़ सकती है। इस बेचैनी से यह आशंका बढ़ रही है कि एक और आर्थिक मंदी सिर उठा रही है। इस संभावित मंदी के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें आवास ऋण न चुका पाने के बढ़ते मामले और यूरोपीय देशों पर मंडराते ऋण संकट का खतरा शामिल है। इस लेख में ऐसे ही मुद्दों को उठाते हुए दलील दी गई है कि भारत को ऐसे किसी भी खतरे को भांपते हुए अपनी सुरक्षा करनी चाहिए।
सितंबर 2008 में वित्तीय मंदी के बाद जी 20 देशों की अर्थव्यवस्थाओं के समन्वित वित्तीय प्रसार के जरिए विकास में आई जबरदस्त गिरावट रुकी है और मांग भी बढ़ी है। हाल में ब्रिटेन सहित कई टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा यूरोपीय देशों ने राजकोषीय घाटे पर लगाम कसने के लिए अपने बटुए की डोरी खींच ली है और सॉवरिन ऋण में अपना हिस्सा कम कर दिया है। इसके साथ अमेरिका और यूरोप ने वित्तीय क्षेत्र के नियमन को सख्त बनाने और लेखा मानकों के प्रति जो प्रयास किए हैं, उनमें कोई तालमेल नहीं दिखता। बैंकों के लिए बेसल3 मानक और नकदी जरूरत पर्याप्त नहीं हैऔर इसपर अमल अब 2018 तक खिंच गया है। हालांकि यूरोप क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की निगरानी के लिए एक एजेंसी बना रहा है जो जनवरी 2011 से काम शुरू करेगी लेकिन फिर भी अमेरिका और यूरोप के बीच इस मसले पर खास तालमेल नहीं दिखता।
पिछले 3 नवंबर को अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ऐलान किया कि उसने दूसरे दौर की नरम नीति के तहत 600 अरब डॉलर और देने का फैसला किया है। पहले दौर में फेडरल रिजर्व ने मध्यम से लंबी अवधि की अमेरिकी ट्रेजरी और गिरवी प्रतिभूतियां खरीदी थीं। इनमें ज्यादातर फेनी मे और फ्रेडी मैक की थीं। इस नरमी के बाद फेडरल की बैलेंसशीट सितंबर 2008 के 800 टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा अरब डॉलर से बढ़कर अक्टूबर 2010 में 23 खरब डॉलर तक पहुंच गई थी।
जापान, ब्राजील,थाईलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने विदेशी मुद्रा बाजार में या तो दखल दिया है या डॉलर की बाढ़ रोकने के लिए उपाय किए हैं। चीन, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया का चालू खाता अधिशेष है। उम्मीद यही है कि अगर डॉलर मौजूदा स्तर से और ज्यादा गिरा तो ये देश भी अपने निर्यात को बरकरार रखने के लिए कुछ विनिमय कदम जरूर उठाएंगे।
कई अर्थशास्त्रियों ने जिनमें फेडरल रिजर्व के एक सदस्य भी शामिल हैं का कहना है कि अमेरिका का दूसरे दौर का राहत पैकेज कारगर नहीं होगा क्योंकि कारोबारी और आम लोग अपना कर्ज स्तर घटा रहे हैं भले ही मध्यम से लंबी अवधि में डॉलर पर ब्याज दर और घट जाए लेकिन उस अनुपात में कर्ज का उठान बढऩे वाला नहीं है। जाहिर है कि विकसित देशों में कुछ सरंचनात्मक मसले हैं जिनको सीधे तौर पर हल किए जाने की जरूरत है। मसलन, कुछ यूरोपीय देशों में बेरोजगारी/पेंशन खर्च और इस मद के लिए राजस्व के स्त्रोतों में कमी है।
अमेरिका ने सुझाव दिया है कि चालू खाते का अधिशेष/कमी को जीडीपी के चार प्रतिशत तक सीमित किया जाना चाहिए। जी 20 की अर्थव्यवस्थाएं जिस तरह भिन्न-भिन्न आकस्मिक घटनाओं और चुनौतियों से जूझ रही हैं उनको एक चालू खाते के तहत लाना एक असंभव काम है। परिणामस्वरूप, इस बात को लेकर मतभेद हैं कि इस समायोजन का बोझ कौन उठाए, वह जो अधिशेष में है या वह जो घाटे में है। यही कारण है कि जी 20 के सोल शिखर सम्मेलन में चालू खाते के असंतुलन पर कोई सहमति नहीं बन सकी। दुर्भाग्यपूर्ण यह था कि वित्तीय क्षेत्र के नियमन मजबूत करने के लिए दी गई सिफारिशों पर अमल पर चर्चा नहीं हुई। अभी इस नवंबर में कम अवधि से लेकर पांच साल परिपक्वता वाली ट्रेजरी इन्फ्लेशन प्रोटेक्टेड सिक्योरिटीज (टिप्स) शून्य से कम ब्याज दर पर कारोबार कर रही हैं। जाहिर है टिप्स में पैसा लगाने वाले निवेशकों को यकीन है कि अमेरिका में मुद्रास्फीति की ऊंची दर आने वाली है और इसका तेल समेत जिंस की कीमतों पर अच्छा खासा असर होगा। दूसरे दौर की नरमी के साथ अमेरिका ने बगैर सोचे दांव चल दिया है और इससे परिसंपत्तियों के बुलबुले पूरे विश्व में फैलने का जोखिम बढ़ गया है।
भारत लगातार व्यापार घाटे में है और वित्त वर्ष 2010-11 में चालू खाते का घाटा जीडीपी का करीब 3.5 प्रतिशत रह सकता है। इस कारण कई लोग तर्क दे रहे हैं कि भारतीय रुपये का मूल्य डॉलर की तुलना में ज्यादा है। जबकि दूसरे लोगों का मत है कि भारत के निर्यात में फिसड्डी रहने का कारण बुनियादी क्षेत्र में सुविधाएं न होना है। उनका यह भी कहना है कि रुपये की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर 36 मुद्राओं की तुलना में बहुत ज्यादा नहीं बढ़ी है। उनकी राय में मुद्रा बास्केट के बजाय निर्यात में प्रतिस्पर्धी देश की मुद्रा की तुलना में रुपये का उतार चढ़ाव देखना ज्यादा सही होगा। भारत के लिए इसके क्या निहितार्थ हैं? हाल में देश के शेयर बाजारों में जो तेजी आई उसका कारण अमेरिका जापान और यूरोप में कम ब्याज दरें होना है। अब अमेरिका में दूसरे दौर के पैकेज से डॉलर की बाढ़ की उम्मीद की जा सकती है जिससे रुपया मजबूत होगा और भारतीय शेयरों में कैरी ट्रेड बढ़ेगा। भारत में 10 साल की प्रतिभूतियों पर सॉवरिन ब्याज दरें करीब 6-7 प्रतिशत हैं जो अमेरिका, यूरोप और जापान की दरों से कहीं ज्यादा हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि भारत रुपये की विनिमय दर का प्रबंध करे और हमको धीरे-धीरे पूंजी खाते की परिवर्तनीयता की तरफ बढऩा चाहिए।
कम वृद्घि और ऊंची बेरोजगारी से निपटने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं। भारत को भी इससे सीख लेकर प्रगतिशील रवैया अपनाना चाहिए और अर्थव्यवस्था के असली क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देना चाहिए। अगले पांच से सात साल में आने वाले किसी भी तरह के वित्तीय संकट को भांपते हुए भारत को सतर्कता बरतनी चाहिए।

विदेशी मुद्रा भंडार 2.47 अरब डॉलर घटकर 616.895 अरब डॉलर पर

मुंबई, 27 अगस्त (भाषा) देश का विदेशी मुद्रा भंडार 20 अगस्त, 2021 को समाप्त सप्ताह में 2.47 अरब डॉलर घटकर 616.895 अरब डॉलर रह गया। भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को अपने ताजा आंकड़े में बताया कि इस गिरावट की वजह विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में आई कमी है। इससे पहले, 13 अगस्त, 2021 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.099 अरब डॉलर घटकर 619.365 अरब डॉलर रह गया था। छह अगस्त, 2021 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 621.464 अरब डॉलर के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया था। रिजर्व

forex

आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान स्वर्ण भंडार 91.3 करोड़ डॉलर बढ़कर 37.249 अरब डॉलर हो गया। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के पास मौजूद विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 30 लाख डॉलर घटकर 1.541 अरब डॉलर रह गया। रिजर्व बैंक के अनुसार आलोच्य सप्ताह के दौरान आईएमएफ के पास मौजूद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1.5 करोड़ डॉलर घटकर 5.096 अरब डॉलर रह गया।

विदेशी मुद्रा भंडार | वर्तमान में भारत का विदेशी कोष भंडार

विदेशी मुद्रा भंडार का उद्देश्य केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा में आरक्षित संपत्ति से होता है। जिसमें बांड (Bonds), ट्रेजरी बिल व अन्य सरकारी प्रतिभूतियां शामिल होती हैं। अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में आरक्षित किए जाते हैं। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित संपत्तियों को शामिल किया जाता है।

  • स्वर्ण,
  • विशेष आहरण अधिकार (SDR),
  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास रिजर्व ट्रेंच,
  • विदेशी मुद्रा परिसम्पत्तियां

विदेशी मुद्रा भंडार का प्रमुख उद्देश्य :

  1. मौद्रिक और विनिमय दर प्रबंधन हेतु निर्मित नीतियों के प्रति समर्थन व विश्वास बनाए रखना।
  2. संकट के समय या जब उधार लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है तो संकट के समाधान के लिए विदेशी मुद्रा तरलता को बनाए रखते हुए भारी प्रभाव को सीमित करता है।
  3. यह राष्ट्रीय या संघ मुद्रा के समर्थन में हस्तक्षेप करने की क्षमता प्रदान करता है।

विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व :

विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में हो रही बढ़ोतरी भारत के बाहरी और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार तथा रिजर्व बैंक को बेहतर स्थिति प्रदान करती है। यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन संकट की स्थिति से निपटने में मदद करता है। बढ़ते भंडार ने डॉलर के मुकाबले रुपए को मजबूत करने में मदद की है। विदेशी मुद्रा भंडार बाजार में भंडार बाजारों और निवेशकों को विश्वास का एक स्तर प्रदान करता है, जिससे एक देश अपने बाहरी दायित्वों को पूरा कर सकता है।

टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा

भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में दर्ज की गई बढ़ोतरी, जानें देश के लिए मुद्रा भंडार की महत्वता

नई दिल्ली: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 28 अक्टूबर तक सप्ताह में बढ़कर 531,081 मिलियन हो गयाहै।जो 21 अक्टूबर तक सप्ताह में $ 524,520 मिलियन था, जो इस अवधि के दौरान $ 6,टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा 561 मिलियन की छलांग दर्शाता है। यह सितंबर 2021 के बाद से सबसे अधिक साप्ताहिक लाभ है। यह आकड़ाभारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक सांख्यिकीय पूरक शुक्रवार को दिखाए गए है।

विदेशी मुद्रा रिजर्व क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार में नकद (विदेशी मुद्रा) और सोने जैसी अन्य संपत्तियां शामिल हैं जो किसी भी देश के केंद्रीय बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थानों जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास हैं।

देश विदेशी मुद्रा भंडार क्यों रखते हैं?

देश विभिन्न कारणों से विदेशी नकदी अपने पास रखते हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा के अनुसार, विदेशी नकदी का भंडार रखने से देशों को आर्थिक संकट के समय में मदद मिलती है और साथ ही उन्हें अपनी घरेलू मुद्राओं की स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है। कुछ कारण नीचे सूचीबद्ध हैं:

घरेलू मुद्रा का मूल्य:प्रत्येक देश की घरेलू मुद्राओं की तुलना अमेरिकी डॉलर से की जाती है। इसलिए, यदि चीन अमेरिकी डॉलर का भंडार करता है, तो वह युआन के मुकाबले डॉलर के मूल्य को बढ़ाता है, जिससे चीनी निर्यात सस्ता हो जाता है जो चीनी सामानों की बिक्री को बढ़ावा देता है।

आर्थिक संकट के समय तरलता (LIQUIDITY) :आर्थिक संकट के मामले में, यदि किसी केंद्रीय बैंक के पास विदेशी मुद्रा भंडार है, तो वह स्थानीय मुद्रा के लिए विनिमय कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि घरेलू कंपनियां प्रतिस्पर्धात्मक रूप से आयात और निर्यात जारी रख सकें। स्थानीय मुद्रा के साथ विदेशी मुद्रा भंडार का आदान-प्रदान स्थानीय मुद्रा के मूल्य को उच्च रखने में मदद करता है।

विदेशी निवेशक:जब कोई युद्ध या आंतरिक अशांति छिड़ जाती है, तो यह अक्सर निवेशकों को डराता है और वे अपना पैसा देश से बाहर ले जाना चाहते हैं। इसलिए, जब कोई देश बहुत अधिक विदेशी मुद्रा भंडार रखता है, तो यह निवेशकों के विश्वास को बढ़ाता है और उनके डर को शांत करता है।

ऐसे कई अन्य कारण हैं जिनके लिए कोई देश विदेशी मुद्रा भंडार रखता है और इसमें अंतरराष्ट्रीय वित्तीय दायित्वों को पूरा करना, बड़ी बुनियादी परियोजनाओं को वित्तपोषित करना और पोर्टफोलियो का विविधीकरण शामिल है।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 413.825 अरब डॉलर की नई रिकॉर्ड ऊंचाई पर

केन्द्रीय बैंक ने कहा कि स्वर्ण आरक्षित भंडार 20.421 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित बना रहा.

  • देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.758 अरब डॉलर बढ़कर 411.124 अरब डॉलर हो गया था.
  • मुद्राभंडार आठ सितंबर 2017 को पहली बार 400 अरब डॉलर को पार किया था,
  • आईएमएफ में देश का मुद्राभंडार भी 93 लाख डॉलर बढ़कर 2.048 अरब डॉलर हो गया.

alt

5

alt

5

alt

5

alt

5

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 413.825 अरब डॉलर की नई रिकॉर्ड ऊंचाई पर

मुंबई: देश का विदेशी मुद्रा भंडार 12 जनवरी को समाप्त सप्ताह में 2.7 अरब डॉलर बढ़कर 413.825 अरब डॉलर के सर्वकालिक रिकॉर्ड ऊंचाई को छू गया जिसका मुख्य कारण विदेशी मुद्रा आस्तियों में पर्याप्त तेजी आना है. इससे पिछले सप्ताहांत में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.758 अरब डॉलर बढ़कर 411.124 अरब डॉलर हो गया था. मुद्राभंडार आठ सितंबर 2017 को पहली बार 400 अरब डॉलर के स्तर को पार किया था, लेकिन उसके बाद से उसमें घट बढ़ होती रही.

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े दर्शाते हैं कि समीक्षाधीन सप्ताह में कुल विदेशी मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण हिस्सा, यानी विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) 2.685 अरब डॉलर बढ़कर 389.834 अरब डॉलर हो गया. अमेरिकी डॉलर में अभिव्यक्त किये जाने वाले एफसीए में मुद्राभंडार में रखे गये यूरो, पौंड और जापानी येन जैसे गैर. अमेरिकी मुद्राओं की तेजी : अवमूल्यन के प्रभावों को शामिल किया जाता है.

केन्द्रीय बैंक ने कहा कि स्वर्ण आरक्षित भंडार 20.421 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित बना रहा. रिजर्व बैंक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में विशेष निकासी अधिकार 62 लाख डॉलर बढ़कर 1.520 अरब डॉलर हो गया. इसने कहा है कि टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा आईएमएफ में देश का मुद्राभंडार भी 93 लाख डॉलर बढ़कर 2.048 अरब डॉलर हो गया.

बैंक के मुताबिक, विदेशी मुद्रा भंडार को डॉलर में व्यक्त किया जाता है और इस पर भंडार में मौजूद पाउंड, स्टर्लिग, येन जैसी अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव का सीधा असर पड़ता है. आलोच्य अवधि में देश का स्वर्ण भंडार 20.42 अरब डॉलर रहा, जो टीपोट्स के लिए विदेशी मुद्रा 1,305.5 अरब रुपये के बराबर है.

इस दौरान देश के विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) का मूल्य 62 लाख डॉलर बढ़कर 1.52 अरब डॉलर हो गया, जो 96.6 अरब रुपये के बराबर है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में देश के मौजूदा भंडार का मूल्य 93 लाख डॉलर बढ़कर 2.04 अरब डॉलर दर्ज किया गया, जो 130.1 अरब रुपये के बराबर है.

रेटिंग: 4.64
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 727
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *