विदेशी मुद्रा व्यापार पर कैसे

विदेशी मुद्रा व्यापार संकेत

विदेशी मुद्रा व्यापार संकेत
डॉलर के मुकाबले लुढ़कता जा रहा है रुपया

एडिटोरियल

यह एडिटोरियल 17/03/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Why ‘De-Dollarisation’ is Imminent” लेख पर आधारित है। इसमें वैश्विक वाणिज्य में अमेरिकी डॉलर (USD) के वर्चस्व को कम करने के लिये विभिन्न देशों द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा व्यापार का शस्त्रीकरण, प्रतिबंधों को लागू करना और ‘SWIFT’ (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication) से बहिर्वेशन डी-डॉलराइज़ेशन (De-Dollarisation: वैश्विक बाज़ार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व में कमी लाना) की प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है, क्योंकि राजनयिक एवं आर्थिक स्वायत्तता प्रदर्शित कर रहे देश अमेरिकी प्रभुत्व वाली वैश्विक बैंकिंग प्रणालियों का उपयोग करने के प्रति सचेत रहेंगे।

अमेरिकी डॉलर, जो विश्व की आरक्षित मुद्रा है, वर्तमान संदर्भ में लगातार गिरावट का शिकार हो सकती है क्योंकि विश्व के प्रमुख केंद्रीय बैंक अपने भंडार को डॉलर से दूर यूरो, रॅन्मिन्बी (Renminbi) या स्वर्ण जैसी अन्य परिसंपत्तियों या मुद्राओं के रूप में विविधिकृत करने की राह पर आगे बढ़ सकते हैं।

डी-डॉलराइज़ेशन की धारणा एक बहुध्रुवीय विश्व के विचार से सुसंगत है, जहाँ प्रत्येक देश मौद्रिक नीति के क्षेत्र में आर्थिक स्वायत्तता का उपभोग करना चाहेगा।

डी-डॉलराइज़ेशन: क्या और क्यों?

  • ‘डी-डॉलराइज़ेशन’ का तात्पर्य वैश्विक बाज़ारों में डॉलर के प्रभुत्व को कम करना है। इसका आशय निम्नलिखित उपयोगों के मामले में अमेरिकी डॉलर को किसी अन्य मुद्रा के साथ प्रतिस्थापित करना है:
    • तेल और/या अन्य वस्तुओं का व्यापार के लिये अमेरिकी डॉलर की खरीद
    • द्विपक्षीय व्यापार समझौते
    • डॉलर-डिनॉमिनेटेड परिसंपत्तियाँ
    • डी-डॉलराइज़ेशन विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों को भू-राजनीतिक जोखिमों से बचाने की इच्छा से प्रेरित है, जहाँ एक आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की स्थिति को आक्रामक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    डॉलर के वर्चस्व के कारण

    • अमेरिकी डॉलर ने 1970 के दशक के आरंभ में सऊदी अरब के तेल-समृद्ध साम्राज्य के साथ डॉलर में वैश्विक ऊर्जा व्यापार करने हेतु एक समझौते के साथ अपनी यह प्रभुत्वशाली स्थिति प्राप्त की है।
        (Bretton Woods system) के पतन से डॉलर की स्थिति और मज़बूत हुई, जहाँ इसने अनिवार्य विदेशी मुद्रा व्यापार संकेत रूप से अन्य विकसित बाज़ार मुद्राओं की अमेरिकी डॉलर से मुकाबला कर सकने की क्षमता को समाप्त कर दिया।
      • अमेरिकी डॉलर को एक ‘सेफ-हेवेन’ (Safe-Haven) के रूप में देखने का मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि लोग अभी भी इसे अपेक्षाकृत जोखिम-मुक्त आस्ति के रूप में देखते हैं।
      • इसके अतिरिक्त, विरोधी केंद्रीय बैंकों द्वारा डॉलर परिसंपत्तियों की अचानक डंपिंग उनके लिये बैलेंस शीट जोखिम भी पैदा करेगी, क्योंकि इससे उनके समग्र डॉलर-डिनॉमिनेटेड होल्डिंग्स का मूल्य कम हो जाएगा।
      • उदाहरण के लिये, ऐतिहासिक रूप से ‘तटस्थ’ देश रहे स्विट्ज़रलैंड द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने के मामले में यूरोपीय संघ का साथ देना ‘स्विस फ़्रैंक’ की ऐसी परिसंपत्ति होने की स्थिति को समाप्त कर देता है जो आर्थिक प्रतिबंधों के विरुद्ध बचाव के रूप में काम आ सकती है।

      डी-डॉलराइज़ेशन के लिये किये जा रहे प्रयास

      • अमेरिका के प्रमुख भू-राजनीतिक विरोधियों रूस और चीन ने पहले ही डी-डॉलराइज़ेशन की यह प्रक्रिया शुरू कर दी है।
        • अमेरिकी ‘SWIFT’ को ‘बायपास’ करते हुए रूसी ‘ SPFS’ (System for Transfer of Financial Messages) एवं चीनी ‘CIPS’ (Cross-Border Interbank Payment System) को संयुक्त कर एक नई रूस-चीन भुगतान प्रणाली की संभावित शुरुआत हेतु प्रयास चल रहे हैं। और अनुवर्ती आर्थिक प्रतिबंध केंद्रीय बैंकों को डॉलर पर अपनी निर्भरता का पुनर्मूल्यांकन करने हेतु नए सिरे से विचार करने के लिये प्रेरित करेंगे।
        • रूस ने वर्ष 2021 में डॉलर- डिनॉमिनेटेड परिसंपत्तियों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर लगभग 16% कर ली थी।
        • रूस ने द्विपक्षीय व्यापार में राष्ट्रीय मुद्राओं को प्राथमिकता देकर अमेरिकी डॉलर में किये जाते व्यापार में भी अपनी हिस्सेदारी कम कर ली है। (BRICS) को रूस के निर्यात में अमेरिकी डॉलर का उपयोग वर्ष 2013 में लगभग 95% से घटकर वर्ष 2020 में 10% से भी कम रह गया।
        • वर्ष 2021 में पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने अपनी डिजिटल मुद्रा ई-युआन (e-Yuan) के माध्यम से वैश्विक वित्तीय नियमों को प्रभावित करने के लिये ‘बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स’ (Bank for International Settlements) के समक्ष ‘ग्लोबल सॉवरेन डिजिटल करेंसी गवर्नेंस’ (Global Sovereign Digital Currency Governance) का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। (International Monetary Fund- IMF) ने पहले ही वर्ष 2016 में युआन को अपने विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) बास्केट में शामिल कर लिया है।
        • हालाँकि पूर्ण RMB परिवर्तनीयता की कमी चीन की डी-डॉलराइज़ेशन महत्त्वाकांक्षा को अवरुद्ध करेगी।

        इस संबंध में भारत की स्थिति

        • भारत को भी अतीत में कुछ प्रतिबंधित देशों के साथ वस्तु विनिमय व्यवस्था (Barter Arrangement) सहित विभिन्न वैकल्पिक उपायों की तलाश करनी पड़ी है।
          • वर्तमान में भी कथित रूप से भारत और रूस दोनों देशों के बीच तेल व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये संदर्भ मुद्रा के रूप में चीनी युआन के उपयोग पर विचार कर रहे हैं।
            (Non-convertible currency) अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भागीदारी के लिये कठिनाइयाँ पैदा करती है, क्योंकि लेनदेन संपन्न होने में अधिक समय लगता है।
          • गैर-परिवर्तनीयता पूंजी तक असहज पहुँच, वित्तीय बाज़ार में कम तरलता और कम व्यावसायिक अवसरों जैसी स्थिति उत्पन्न करती है।
          • इसके साथ ही भारत अपने विदेशी मुद्रा भंडार में यूरो और स्वर्ण की हिस्सेदारी की वृद्धि करने भी विचार कर सकता है।
          • भारत के पास अपनी डी-डॉलराइज़ेशन प्रक्रिया शुरू करने के लिये कई विकल्प मौजूद हैं। रूस-भारत लेनदेन से शुरू होकर ईरान, EAEU, ब्रिक्स और SCO सदस्य देशों के साथ राष्ट्रीय या डिजिटल मुद्राओं में व्यापार निकट भविष्य में एक वास्तविकता बन सकता है।
          • ‘इकोनॉमिक पावरहाउस’ के रूप में एशिया के उदय से चीनी युआन और भारतीय रुपए जैसी मुद्राओं का महत्त्व बढ़ जाएगा।
          • विदेश नीति लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संभावित हथियार के रूप में अमेरिकी डॉलर के लगातार उपयोग से निस्संदेह डी-डॉलराइज़ेशन की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
          • इसके अलावा, मुद्रा परिवर्तनीयता वैश्विक वाणिज्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग है क्योंकि यह अन्य देशों के साथ व्यापार का मार्ग खोलता है और सरकार को वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये ऐसी मुद्रा में भुगतान करने की अनुमति देता है जो खरीदार की अपनी मुद्रा नहीं भी हो सकती है।

          निष्कर्ष

          • अमेरिकी डॉलर अभी भी व्यापार के लिये पसंदीदा मुद्रा है, क्योंकि कोई भी अन्य मुद्रा पर्याप्त रूप से तरल नहीं है। यदि कोई मुद्रा ऐसी तरलता पा भी लेती है तो राष्ट्रों में यह आशंका व्याप्त रहेगी कि यह मुद्रा भी अमेरिकी डॉलर जैसी ही बन जाएगी।
          • विश्व केवल व्यवस्था में परिवर्तन नहीं चाहता जहाँ अमेरिका के बजाय अब किसी दूसरे देश के वैसे ही छल-कपट भोगने पड़ें। आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि मुद्रा बाज़ार में विविधता लाई जाए जहाँ कोई एक मुद्रा आधिपत्य का दावा न करे।

          अभ्यास प्रश्न: ‘‘संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने विदेश नीति लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संभावित हथियार के रूप में अमेरिकी डॉलर के लगातार उपयोग से निस्संदेह डी-डॉलराइज़ेशन की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।’’ टिप्पणी कीजिये।

          Rupee vs Doller: इन पांच कारणों की वजह से टूट रहा रुपया, इस तरह हल्की होगी आम आदमी की जेब

          रुपया इस साल करीब 7.5 फीसदी कमजोर हुआ है. यह 74 प्रति डॉलर से 79.85 प्रति डॉलर पर आ गया है. रुपये में कमजोरी से आम आदमी के ऊपर दोहरी मार पड़ेगी. भारत जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल लैपटॉप समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है.

          डॉलर के मुकाबले लुढ़कता जा रहा है रुपया

          डॉलर के मुकाबले लुढ़कता जा रहा है रुपया

          gnttv.com

          • नई दिल्ली,
          • 15 जुलाई 2022,
          • (Updated 15 जुलाई 2022, 1:21 PM IST)

          डॉलर के मुकाबले लुढ़कता जा रहा है रुपया

          रुपया इस साल करीब 7.5 फीसदी कमजोर हुआ है.

          भारतीय रुपया टूटकर अब तक के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. गुरुवार को रुपया 79.87 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. यह रुपया के लिए अबतक का सबसे निचला स्तर है. रुपया इस साल करीब 7.5 फीसदी कमजोर हुआ है. यह 74 प्रति डॉलर से 79.85 प्रति डॉलर पर आ गया है. रुपये में आ रही लगातार गिरावट को थामने की आरबीआई हर मुमकिन कोशिश कर रहा है.

          क्यों टूट रहा रुपया

          वैश्विक बाजार में डॉलर की मांग में तेजी- दुनियाभर में 85 प्रतिशत व्यापार अमेरिकी डॉलर से होता है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की जरूरत होती है. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वह इसी मुद्रा में अन्य देशों को ऋण देता है और वसूलता है. इसके अलावा दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है उसमें 64 विदेशी मुद्रा व्यापार संकेत प्रतिशत अमेरिकी डॉलर होते हैं. इसलिए दिन प्रतिदिन डॉलर की मांग बढ़ रही है और Dollar के आगे रुपया पस्त हो रहा है. यदि अमेरिकी डॉलर की मांग ज्यादा है, तो भारतीय रुपये का गिरना तय है.

          भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की निकासी

          भारतीय इक्विटी और बॉन्ड बाजारों से लगातार डॉलर की निकासी हो रही है. इससे डॉलर की मांग बढ़ रही है. विदेशी निवेशकों का पैसे निकाल लेना इस बात का संकेत है कि वो भारत में निवेश सुरक्षित नहीं समझ रहे हैं.

          वैश्विक मंदी की आशंका

          अमेरिका सहित कई विकसित देशों में मंदी की आशंका बढ़ती जा रही है. महंगाई को काबू में करने के लिए दुनियाभर के देशों के केंद्रीय बैंकों (RBI) ने प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है. दुनिया के सामने खाद्य संकट की स्थिति है. अमेरिका में बढ़ती महंगाई व मंदी की आशंका का असर साफ देखा जा सकता है.

          रूस यूक्रेन युद्ध

          रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनियाभर के देशों को प्रभावित किया है. जो रुपया 24 फरवरी को डॉलर के मुकाबले 75.3 स्तर पर चल रहा था, युद्ध के इतने महीने बाद 79.85 प्रति डॉलर पर आ गया है. इसका असर आयात पर भी पड़ा है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में महंगाई को भी कई गुना बढ़ा दिया है.

          यूरोप समेत दुनिया के कई देशों में राजनीतिक उथल पुथल

          दुनिया के कई देशों में हो रही राजनीतिक उथल पुथल का प्रतिकूल प्रभाव रुपया पर पड़ रहा है. दुनियाभर में हो रही तमाम आर्थिक गतिविधियों का असर भारतीय रुपये पर पड़ता नजर आ रहा है. यह भी भारतीय रुपये के गिरने के पीछे का मुख्य कारण है.

          इस तरह आपकी जेब हल्की होगी

          रुपये में कमजोरी से आम आदमी के ऊपर दोहरी मार पड़ेगी. भारत जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल लैपटॉप समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है. ज्यादातर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्यू पूर्वी एशियाई शहरों से होता है. ज्यादातर कारोबार डॉलर में होता है, विदेश से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय माना जा रहा है. रुपया के कमजोर होने से विदेशों में पढ़ाई महंगी हो जाएगी. इसके अलावा कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल डीजल की कीमतें भी बढ़ेंगी. अमेरिकी फेड रिजर्व ने महंगाई को काबू में लाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है. इस बढ़ोतरी के बाद डॉलर और ज्यादा मजबूत हुआ है. इसका खामियाजा रुपया को भुगतना पड़ रहा है. रोजगार के अवसर पर भी रुपया के कमजोर होने का असर पड़ता है. गिरते रुपये को उठाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि से लोन लेना महंगा हो सकता है.

          भास्कर एक्सप्लेनर: जीडीपी में गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के उच्चतम स्तर पर, क्या है इसकी वजह और यह देश के लिए कितना फायदेमंद?

          देश का विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त के आखिरी हफ्ते में 541.43 बिलियन डॉलर (39.77 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है। एक सप्ताह में इसमें 3.88 बिलियन डॉलर (28.49 हजार करोड़ रुपए) की बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले 21 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 537.548 बिलियन डॉलर (39.49 लाख करोड़ रुपए) था। जून में पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 500 बिलियन डॉलर के आंकड़े को पार करते हुए 501.7 बिलियन डॉलर (36.85 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंचा था। 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 304.22 बिलियन डॉलर (22.34 लाख करोड़ रुपए) था। इस समय पड़ोसी देश चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.165 ट्रिलियन डॉलर के करीब है।

          इसलिए बढ़ रहा है विदेशी मुद्रा भंडार

          • आर्थिक मंदी के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का सबसे बड़ा कारण भारतीय शेयर बाजारों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ना है।
          • बीते कुछ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने कई भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाई है।
          • मार्च में भारत के डेट और इक्विटी सेगमेंट से एफपीआई ने करीब 1.20 लाख करोड़ रुपए की निकासी की थी, लेकिन इस विदेशी मुद्रा व्यापार संकेत साल के अंत तक अर्थव्यवस्था के वापस पुरानी स्थिति में लौटने की उम्मीद के कारण एफपीआई भारतीय बाजारों में वापस आ गए हैं।
          • इसके अलावा क्रूड की कीमतों में गिरावट के कारण देश का आयात बिल कम हुआ है। इससे विदेशी मुद्रा भंडार का बोझ घटा है। इसी तरह से विदेशों से रुपया भेजने और विदेश यात्राओं में कमी आई है। इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ कम हुआ है।
          • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 सितंबर 2019 को कॉरपोरेट टैक्स की दरों में कटौती की घोषणा की थी। इसके बाद से विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

          जीडीपी में गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना अच्छा संकेत

          कोरोनावायरस महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था में उदासी का माहौल है। इस कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून तिमाही) में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है। मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों और व्यापार में स्थिरता के कारण यह गिरावट आई है। ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है।

          आज 1991 के विपरीत स्थिति

          विदेशी मुद्रा भंडार की आज की यह स्थिति 1991 के बिलकुल विपरीत है। तब भारत ने प्रमुख वित्तीय संकट से बाहर निकलने के लिए गोल्ड रिजर्व को गिरवी रख दिया था। मार्च 1991 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 5.8 बिलियन डॉलर (42.59 हजार करोड़ रुपए) था। लेकिन आज विदेशी मुद्रा भंडार के दम पर देश किसी भी आर्थिक संकट का सामना कर सकता है।

          विदेशी मुद्रा भंडार के प्रमुख असेट्स

          • फॉरेन करेंसी असेट्स (एफसीए)।
          • गोल्ड रिजर्व।
          • स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर)।
          • इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) के साथ देश की रिजर्व स्थिति।

          विदेशी मुद्रा भंडार का अर्थव्यवस्था के लिए महत्व

          • विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी सरकार और आरबीआई को आर्थिक ग्रोथ में गिरावट के कारण पैदा हुए किसी भी बाहरी या अंदरुनी वित्तीय संकट से निपटने में मदद करती है।
          • यह आर्थिक मोर्चे पर संकट के समय देश को आरामदायक स्थिति उपलब्ध कराती है।
          • मौजूदा विदेशी भंडार देश के आयात बिल को एक साल तक संभालने के लिए काफी है।
          • विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी से रुपए को डॉलर के मुकाबले स्थिति मजबूत करने में मदद मिलती है।
          • मौजूदा समय में विदेशी मुद्रा भंडार जीडीपी अनुपात करीब 15 फीसदी है।
          • विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक संकट के बाजार को यह भरोसा देता है कि देश बाहरी और घरेलू समस्याओं से निपटने में सक्षम है।

          आरबीआई करता है विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन

          • आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार के कस्टोडियन और मैनेजर के रूप में कार्य करता है। यह कार्य सरकार से साथ मिलकर तैयार किए गए पॉलिसी फ्रेमवर्क के अनुसार होता है।
          • आरबीआई रुपए की स्थिति को सही रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करता है। जब रुपया कमजोर होता है तो आरबीआई डॉलर की बिक्री करता है। जब रुपया मजबूत होता है तब डॉलर की खरीदारी की जाती है। कई बार आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए बाजार से डॉलर की खरीदारी भी करता है।
          • जब आरबीआई डॉलर में बढ़ोतरी करता है तो उतनी राशि के बराबर रुपया जारी करता है। इस अतिरिक्त लिक्विडिटी को आरबीआई बॉन्ड, सिक्योरिटी और एलएएफ ऑपरेशन के जरिए मैनेज करता है।

          कहां रखा होता है विदेशी मुद्रा भंडार

          • आरबीआई एक्ट 1934 विदेशी मुद्रा भंडार को रखने का कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
          • देश का 64 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार विदेशों में ट्रेजरी बिल आदि के रूप में होता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका में रखा होता है।
          • आरबीआई के डाटा के मुताबिक, मौजूदा समय में 28 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक और 7.4 फीसदी कमर्शियल बैंक में रखा है।
          • मार्च 2020 में विदेशी मुद्रा भंडार में 653.01 टन सोना था। इसमें से 360.71 टन सोना विदेश में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की सुरक्षित निगरानी में रखा है। बचा हुआ सोना देश में ही रखा है।
          • डॉलर की वैल्यू में विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी सितंबर 2019 के 6.14 फीसदी से बढ़कर मार्च 2020 में 6.40 फीसदी पर पहुंच गई है।

          2014 में 300 बिलियन डॉलर के करीब था विदेशी मुद्रा भंडार

          आरबीआई के डाटा के मुताबिक, वित्त वर्ष 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 304.22 बिलियन डॉलर (22.34 लाख करोड़ रुपए) था। इसी साल नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे। तब से लगातार विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी हो रही थी। 2018 में यह बढ़कर 424.5 बिलियन डॉलर (31.13 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया था। हालांकि, इसके अगले साल यानी 2019 में यह थोड़ा घटकर 412.87 बिलियन डॉलर (30.26 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया था। 28 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में यह बढ़कर 541.4 बिलियन डॉलर (39.77 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है।

          चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भारत से 484% ज्यादा

          पड़ोसी देश चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा है। अगस्त 2020 में चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.165 ट्रिलियन डॉलर था। वहीं, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 541.4 बिलियन डॉलर है। इस प्रकार चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भारत के मुकाबले 484 फीसदी ज्यादा है। 2014 में चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 4 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया था। हालांकि, तब से अब तक इसमें गिरावट आ रही है।

          इस साल 19.33 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा क्रूड

          इस साल 1 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल थी। इसी सप्ताह 6 जनवरी को कीमतें बढ़कर 68.91 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। इसके बाद से क्रूड की कीमतें लगातार कम हो रही है। इस बीच मार्च के अंत में कोरोनावायरस महामारी पूरी दुनिया फैल गई। इससे क्रूड की मांग घट गई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि क्रूड की कीमत घटकर 19.33 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई। इस प्रकार क्रूड की कीमतों में इस साल अपने उच्चतम स्तर से 71 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। सोमवार 7 सितंबर को यह 42.05 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है।

          अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 9 पैसे गिरकर 81.35 पर बंद हुआ

          कमजोर घरेलू बाजारों और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण कमजोर डॉलर के समर्थन के कारण शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये ने अपने शुरुआती लाभ को कम कर दिया और 9 पैसे की गिरावट के साथ 81.35 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ।

          विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि विदेशी कोषों की निकासी से भी निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई। इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में, स्थानीय इकाई 81.11 पर खुली, लेकिन बढ़त को कम कर दिया और अपने पिछले बंद भाव से 9 पैसे की गिरावट के साथ 81.35 पर बंद हुई।

          दिन के दौरान, स्थानीय इकाई ने 81.08 का इंट्रा डे हाई और 81.35 का लो देखा। गुरुवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 4 पैसे की मजबूती के साथ 81.26 पर बंद हुआ।

          बीएनपी पारिबा द्वारा शेयरखान में अनुसंधान विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा, "कमजोर अमेरिकी डॉलर सूचकांक ने रुपये का समर्थन किया। हालांकि, कमजोर घरेलू बाजार, कच्चे तेल में उछाल और एफआईआई के बहिर्वाह ने तेज लाभ को रोक दिया।" अमेरिकी आईएसएम विनिर्माण पीएमआई में गिरावट के कारण अमेरिकी डॉलर में गिरावट आई यूरो और पाउंड जैसे संकुचन और सकारात्मक जोखिम वाली मुद्राओं में। जर्मन व्यापार अधिशेष सड़क अनुमानों में सबसे ऊपर होने के कारण यूरो में वृद्धि हुई।

          "हम उम्मीद करते हैं कि वैश्विक बाजारों में जोखिम से बचने और एफआईआई द्वारा ताजा बहिर्वाह पर रुपये में मामूली नकारात्मक पूर्वाग्रह के साथ व्यापार होगा। हालांकि, ग्रीनबैक में नरमी रुपये को निचले स्तर पर समर्थन दे सकती है। बाजार आज अमेरिकी गैर-कृषि पेरोल डेटा से भी संकेत ले सकते हैं। शाम, जिसमें काम पर रखने की धीमी गति दिखाने की उम्मीद है," चौधरी ने कहा।

          डॉलर सूचकांक, जो छह मुद्राओं की एक टोकरी के मुकाबले ग्रीनबैक की ताकत का अनुमान लगाता है, 0.18 प्रतिशत गिरकर 104.53 पर आ गया। वैश्विक तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा 0.17 प्रतिशत बढ़कर 87.03 डॉलर प्रति बैरल हो गया।

          एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) गुरुवार को पूंजी बाजार में शुद्ध विक्रेता रहे और उन्होंने 1,565.93 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। घरेलू इक्विटी बाजार के मोर्चे पर, 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 415.69 अंक या 0.66 प्रतिशत गिरकर 62,868.50 पर बंद हुआ, जबकि व्यापक एनएसई निफ्टी 116.40 अंक या 0.62 प्रतिशत बढ़कर 18,696.10 पर बंद हुआ।

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