अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है

21 MBA प्रोग्राम्स में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रबंधन 2023
एमबीए (बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के मास्टर) व्यापार का अध्ययन करने में महारत हासिल है, जो छात्रों को सम्मानित किया गया है कि एक स्नातकोत्तर डिग्री है. एमबीए की डिग्री के लिए दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित और बाद की मांग की डिग्री में से एक माना जाता है.
उन एक तरह से एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार के मामलों में उनकी शिक्षा अग्रिम करने के लिए देख रहे व्यक्तियों के लिए, अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रबंधन में एक कोर्स एक बढ़िया विकल्प हो सकता है। इस कोर्स के लिए वैश्विक बाजार में व्यापार प्रथाओं का एक मजबूत नॉलेजबेस के साथ छात्रों को प्रदान करता है।
अमेरिकी डॉलर का 'दबदबा' तोड़ने के लिए RBI ने उठाया बड़ा कदम, अब रुपये में ही हो सकेगा अंतरराष्ट्रीय व्यापार का सेटलमेंट
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सोमवार 11 जुलाई को कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के रुपये में सेटलमेंट को लेकर एक सिस्टम बना रहा है
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सोमवार 11 जुलाई को कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के रुपये में सेटलमेंट को लेकर एक सिस्टम बना रहा है। RBI ने यह कदम रूस-यूक्रेन जंग के चलते भारतीय मुद्रा पर बढ़ते दबाव के बीच उठाया है। RBI ने कहा कि उसने ग्लोबल व्यापार के विकास को बढ़ावा देने और रुपये में दुनिया की बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए यह फैसला किया है।
रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सेटलमेंट की सुविधा से भारत को कुछ ऐसे प्रतिबंधों को दरकिनार करने में मदद मिल सकती है, जो कुछ खास देशों के साथ अमेरिकी डॉलर जैसी ग्लोबल करेंसी में व्यापार की इजाजत देने से रोकते हैं। उदाहरण के लिए, यूक्रेन पर रूस के हमले ने कई पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके चलते रूस बाकी देशों के साथ डॉलर में डील नहीं कर पा रहा है।
इस प्रतिबंध के चलते भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है कंपनियों को रूस से उत्पादों को खरीदने में दिक्कत रही थी और यह भी एक बड़ी वजह रही, जिसके चलते आरबीआई को इंपोर्ट के भुगतान के लिए वैकल्पिक तरीकों पर विचार करने पर मजबूर होना पड़ा।
2 Certificate प्रोग्राम्स में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 2023
प्रमाणपत्र कार्यक्रम, जो लगभग एक वर्ष में अर्जित किया जा सकता है कि विभिन्न कौशल और क्षमता के स्तर पर की पेशकश कर रहे शैक्षिक कक्षाएं से मिलकर बनता है। स्नातक छात्रों के साथ ही स्नातक, अपने अध्ययन के क्षेत्र पर निर्भर करता है, प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कार्यक्रम में एक मास्टर ऐसे अंतरराष्ट्रीय वित्त, नीति, रणनीति, कानून, और कूटनीति के रूप में अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है समझने के आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों, शामिल है. डिग्री विदेश नीति, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, और अन्य कॅरिअर में काम कर रहे राजनयिकों के रूप में करियर की तलाश कर रहे हैं, जो छात्रों के लिए बनाया गया है.
Jagran Explainer: RBI ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए रुपये में सेटलमेंट की क्यों दी मंजूरी, क्या होगा इसका लाभ; जानें एक्सपर्ट की राय
Export Import trade in rupee आरबीआइ द्वारा इंटरनेशनल ट्रेड का का सेटलमेंट रुपये में करने की इजाजत देने के फैसले का भारतीय अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर और इसके बाकी पहलुओं को समझने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बातचीत की।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। RBI ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का सेटलमेंट भारतीय रुपये में करने की इजाजत दे दी। रुपये की लगातार गिरती कीमत और बढ़ते व्यापार घाटे के दबाव के बीच आरबीआइ के इस फैसले का बड़ा ही दूरगामी महत्व है। माना जा रहा है कि केंद्रीय बैंक के इस फैसले से डॉलर की मांग में कमी आएगी और इससे रुपये की गिरती कीमतों पर काबू में रखने में मदद मिलेगी। साथ ही एक अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में रुपये की स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। इन सब अटकलों के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई आरबीआइ के इस कदम का जमीनी हकीकत पर कोई असर पड़ेगा। क्या रुपये को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भुगतान के एक नए टूल के रूप ने दूसरे देश स्वीकार कर पाएंगे? इस आर्टिकल में हमने कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की है।
रुपये में सेटलमेंट से क्या होगा बदलाव
आरबीआइ के इस कदम का तात्कालिक और दीर्घलाकिक दोनों महत्व है। इस बारे में पूछे जाने पर एसबीआइ की पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट बृंदा जागीरदार कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि इस तरह का फैसला पहली बार लिया गया है। इसके पहले भी यह व्यवस्था लागू हो चुकी है, लेकिन पहले के मुकाबले वैश्विक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। इसलिए आरबीआइ के इस फैसले का तात्कालिक महत्व कहीं अधिक है। पहला फायदा तो यह है कि हमें जो पेमेंट करना है, उसके लिए फॉरेन रिजर्व से पूंजी निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर पड़ी भी तो पूंजी की निकासी कम होगी।" नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी से जुड़ी सीनियर फेलो राधिका पांडे मानती हैं कि रुपये में कारोबार सेटलमेंट की अनुमति दिए जाने के कई खास मकसद हैं। इससे जिन देशों पर व्यापारिक प्रतिबंध लगे हुए हैं, उनके साथ ट्रेड में आसानी होगी, खासकर रूस के साथ, जिससे इन दिनों भारत सस्ते दाम पर बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है। प्रतिबंधों के चलते डॉलर में भुगतान करने में आ रही मुश्किलों को देखते हुए रुपये में भुगतान करना कहीं अधिक आसान होगा।
रुपये की स्वीकार्यता का सवाल
रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सेटलमेंट का विचार हमेशा से नीति-निर्माताओं के दिमाग में था, लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ी हिचक यह थी कि क्या निर्यातकों और आयातकों के लिए रुपये की स्वीकार्यता बन पाएगी। हाल के दिनों में रूस-यूक्रेन संघर्ष के लंबा खिंचने और कोविड के बाद चालू खाता घाटे के अचानक बढ़ने से आरबीआइ को यह फैसला लागू करने का साहस दिखाना पड़ा। दुनिया में तेजी से बदल रहे राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों का भी इसमें बहुत योगदान था। बृंदा जागीरदार मानती हैं कि जहां रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता का सवाल है, यह एक लॉन्ग टर्म टारगेट है। जैसे-जैसे इंडिया की इकोनॉमी ग्रो करेगी और ग्लोबल सप्लाई चेन में हमारा अंशदान बढ़ेगा, तब रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। राधिका पांडे भी मानती हैं कि इस कदम का मीडियम टर्म में एक फायदा यह होगा कि बाकी देशों के साथ हम रुपये में कारोबार कर पाएंगे और धीरे-धीरे कुछ देश रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में स्वीकार कर लेंगे। आगे चलकर इससे रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाने में भी मदद मिलेगी।
रुपये की गिरावट पर क्या होगा असर
बृंदा जागीरदार का मानना है कि आरबीआइ के इस फैसले को रुपये की कीमत से लिंक करने की कोई जरूरत नहीं है। वह कहती हैं, "रुपये में मजबूती तब आएगी जब वह डॉलर के मुकाबले बाजार में स्थिर होगा। कमोडिटी एक्सपोर्ट करने वाले देशों को कच्चा तेल, कोयला, आयरन स्टील या दूसरी कमोडिटीज का निर्यात करने से विदेशी मुद्रा के रूप में डॉलर आसानी से हासिल हो जाता है। लेकिन हमारे पास वह सुविधा नहीं है। कमोडिटीज का इंटरनेशनल ट्रेड सबसे अधिक होता है, इसलिए वहां हम पिछड़ जाते हैं। हमारे पास डॉलर को हासिल करने के मौके सीमित हैं। भारत के कुल आयात में अकेले कच्चे तेल का हिस्सा 80 फीसद से ऊपर है, जबकि कुल इंपोर्ट बिल में तेल का हिस्सा 50 फीसद से अधिक है। तो जब तक तेल के आयात पर हमारी इस तरह निर्भरता बनी रहेगी, रुपये में स्थिरता नहीं आने वाली। यूक्रेन युद्ध के लंबा खिंचने से दुनिया की सभी करेंसी में गिरावट आई है, बल्कि बाकी करेंसी को देखे तो रुपये में गिरावट बाकियों के मुकाबले बहुत कम है। जब तक वैश्विक परिस्थितियां नहीं सुधरतीं, तब तक रुपये की यह अनिश्चितता बनी रहेगी।" इस बारे में राधिका पांडे की भी कुछ ऐसी ही राय है। वह कहती हैं, "जब तक हम तेल के आयात को कम नहीं करते, रुपया प्रेशर में रहेगा। लेकिन आइबीआइ के इस कदम ने संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। आगे आने वाले महीनों में जब ग्लोबल परिस्थितियां स्थिर होंगी, तब रुपया जरूर मजबूत होगा।"
क्या है इसका भविष्य
यह पूछे जाने पर कि यह कदम क्या सफलतापूर्वक लागू हो पाएगा। राधिका पांडे कहती हैं, "पहले जब इस कदम को लागू करने की कोशिश की गई थी, तो वह बहुत सीमित थी। उसको किसी ने गंभीरता से लिया भी नहीं। लेकिन इस बार आरबीआइ एक सोचे-समझे सिस्टम और फ्रेमवर्क के साथ इसे लागू कर रहा है। कैसे एक्सचेंज रेट फिक्स होगा, बैंक Vostro Acount कैसे ओपन करेंगे, साथ ही सरप्लस रुपये को करेंट और कैपिटल अकाउंट में यूज किया जा सकेगा। इन सभी बातों का जिक्र शुरुआती फ्रेम वर्क में किया गया है। इससे अचानक कोई बदलाव तो नहीं होगा, लेकिन दीर्घकालिक अवधि के लिए यह बहुत सहायक होगा, खासकर छोटी इकोनॉमी वाले देशों के साथ लेन-देन में।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है
पाम के तेल के निर्यात के लिए इंडोनेशिया में वनों की कटाई
वैज्ञानिकों की एक टीम ने एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के समृद्ध देशों में कृषि उपज से संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लेकर एक अध्ययन किया है। जिसमें पाया गया की विकसित देशों के कृषि उपज के उपभोक्ता विकासशील देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार हैं। उपभोक्ता कृषि उपज की पूर्ति के लिए विकासशील देशों पर निर्भर रहते हैं, जिनकी आपूर्ति व्यापार के जरिए की जाती हैं। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन और अन्य संस्थानों ने मिलकर किया है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि भूमि उपयोग से होने वाले उत्सर्जन में व्यापार, जो कृषि और भूमि उपयोग में होने वाले बदलावों से जुड़ा है। जिसकी वजह से कार्बन डाइऑक्साइड जो कि 2004 में 5.1 गीगाटन से हर साल बढ़ कर 2017 में 5.8 गीगाटन तक हो गई। यहां बताते चलें कि इसमें अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसे नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन भी शामिल हैं।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि भूमि-उपयोग में बदलाव, जिसमें खेतों और चरागाहों के लिए जगह बनाने के लिए कार्बन को अवशोषित करने वाले जंगलों को साफ करना भी शामिल है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है इस सब ने कृषि से संबंधित उपजों के वैश्विक व्यापार द्वारा उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को 2004 से लेकर 2017 लगभग तीन-चौथाई तक बढ़ा दिया है।
पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के यूसीआई प्रोफेसर और सह-अध्ययनकर्ता स्टीवन डेविस ने कहा कि यह सभी मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक चौथाई भूमि के उपयोग से होता है। अध्ययन से पता चलता है कि कम आय वाले देशों में इस उत्सर्जन का बड़ा हिस्सा अधिक विकसित देशों में खपत से संबंधित है।
अध्ययन की अवधि के दौरान भूमि उपयोग, भूमि उपयोग में बदलाव के चलते होने वाले उत्सर्जन के शीर्ष स्रोत ब्राजील में थे, जहां प्राकृतिक वनस्पतियों जैसे कि जंगलों को पशुओं के चरागाहों और खेतों के लिए जगह बनाने की प्रथा ने देश में भूमि उपयोग में बड़े बदलाव किए। इंडोनेशिया, जहां समृद्ध देशों को निर्यात हेतु ताड़ के तेल का उत्पादन करने के लिए जगलों को साफ कर ताड़ की खेती की गई। जिसने पुराने समय से कार्बन-भंडारण कर रहे जंगल को साफ कर डाला।
शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया की लगभग 22 फीसदी फसल और चारागाह 1 अरब हेक्टेयर का उपयोग विदेशी उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों की खेती के लिए उपयोग किया जाता है। चावल, गेहूं, मक्का, सोयाबीन, ताड़ के तेल और अन्य तिलहन जैसी वस्तुएं व्यापारिक वस्तुओं के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि के लगभग एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। लगभग आधे से अधिक ग्रीनहाउस उत्सर्जन में व्यापार की देन है।
अध्ययन ने 2004 और 2017 के बीच कुछ क्षेत्रों में हुए बदलावों को दिखाया, प्रारंभिक चरण में, चीन कृषि वस्तुओं का शुद्ध निर्यातक था, लेकिन 2017 तक, यह माल और भूमि-उपयोग उत्सर्जन दोनों का आयातक बन गया था, इसमें ब्राजील भी पीछे नहीं रहा। उसी अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है समय, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका को ब्राजील का निर्यात, जो 2004 में कृषि वस्तुओं में देश का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, उसमें गिरावट आई।
2017 में पिछले साल शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि निर्यात से संबंधित उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत ब्राजील था, इसके बाद अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, थाईलैंड, रूस और ऑस्ट्रेलिया थे। इस तरह के उत्सर्जन से जुड़े उत्पादों के सबसे बड़े शुद्ध आयातक चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी थे, जिनमें यूके, इटली, दक्षिण कोरिया और सऊदी अरब भी पीछे नहीं हैं।
वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों को बढ़ाने के अलावा, लोगों के भूमि उपयोग प्रथाओं ने महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान पैदा किया है, जिससे जैव विविधता कम हुई है, जल संसाधनों में कमी आई है और स्थानीय वातावरण में अन्य प्रकार के प्रदूषण बढ़े हैं।
आर्थिक दृष्टिकोण से, सबसे अधिक मात्रा में भूमि उपयोग उत्सर्जन का उत्पादन करने वाले निर्यातक भी सकल घरेलू उत्पाद में योगदान कर्ता के रूप में निर्यात कृषि पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
डेविस ने कहा हमें उम्मीद है कि यह अध्ययन भूमि-उपयोग उत्सर्जन को बढ़ाने में अंतर्राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है व्यापार की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाएगा। बदले में, आयातक सबसे अधिक उत्सर्जन करने वाले आयात को कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए 'स्वच्छ खरीदें' नीतियां अपना सकते हैं। किसका मतलब ऐसे कृषि उत्पादों से है, जहां ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन न के बराबर हो।
इससे विनाशकारी व्यापार से होने वाले फायदों पर लगाम लगेगी। उन्होंने कहा हम मानते हैं कि यूरोप, अमेरिका और चीन सहित कई क्षेत्रों में हाल के वर्षों में आपूर्ति श्रृंखला पारदर्शिता में सुधार के प्रयासों में वृद्धि देखी है जो कि पर्यावरण की नजर से वास्तव में एक अच्छा संकेत है। यह अध्ययन साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।