अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी

ब्रिक की प्रथम विधिवत शिखर वार्ता
दोस्तो , ब्रिक चार देशों के नेताओं की प्रथम विधिवत वार्ता 16 जून को रुस के येकतरिनबर्ग में हुई । ऐसी गम्भीर घड़ी पर जब कि विश्व वित्तीय संकट गहराई में फैल रहा है , चीन , भारत , रुस और ब्राजिल प्रमुख नवोदित बाजार देश होने के नाते सहयोग के जरिये विश्व वित्तीय संकट का मुकाबला करने और विश्व आर्थिक पुनरुत्थान को बढावा देने पर सहमत हुए हैं ।
वार्ता की समाप्ति पर जारी संयुक्त वक्तव्य में चार देशों ने विभिन्न पक्षों से अपील की है कि गत अप्रैल में हुए जी बीस के लंदन वित्तीय शिखर सम्मेलन में प्राप्त सहमति को सक्रिय रुप से मूर्त रूप दिया जाए और इसी संदर्भ में घनिष्ठ सहयोग करने का वादा किया जाये । वर्तमान ध्यानाकर्षक विश्व वित्तीय संस्थाओं के सुधार के बारे में चार देशों ने यह प्रस्ताव पेश किया है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में नवोदित बाजारों और विकासशील देशों के भाषण अधिकार व प्रतिनिधित्व को उन्नत किया जाये , साथ ही एक स्थिर , प्रत्याशित और बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा व्यवस्था की स्थापना पर भी जोर दिया । चार देशों ने अपने संयुक्त वक्तव्य में व्यापार संरक्षणवाद पर रोक लगाने की मांग भी की है और अनवरत विकास और ज्ञान विज्ञान तथा शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग करने का अपना संकल्प व्यक्त किया ।
वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में पेचीदा परिवर्तन की स्थिति में मौके का फायदा उठाकर सहयोग कैसे मजबूत किया जाये , इसी बात की चर्चा में चीनी राष्ट्राध्यक्ष हू चिन थाओ ने यह विचार व्यक्त किया कि चार देशों के लिये यह जरुरी है कि अपनी अपनी कार्यांवित व्यवस्था अपना कर वार्तालाप व आदान प्रदान से आपसी राजनीतिक विश्वास बढाया जाये , साधन स्रोतों , बाजारों , श्रम शक्तियों व ज्ञान विज्ञान की अपनी श्रेष्ठताओं को प्रदर्शित कर आर्थिक सहयोग बढाने में तेजी लाये जाये , और मानवीय आवाजाही के जरिये सर्वांगीर्ण सहयोग को गहराई में ले जाने के लिये मजबूत आधार तैयार किया जाये । उन्हों ने बल देते हुए कहा कि चार देशों को एक दूसरे के चुनिंदा विकास रास्ते का सम्मान करना चाहिये , ताकि विकास अनुभवों से सीखा जाये और दूसरे विकासशील देशों के साथ सफल अनुभवों व विकास फारमूलों का समान उपभोग किया जा सके।
श्री हू चिन थाओ ने अपने भाषण में चार देशों द्वारा विश्व वित्तीय संकट और विश्व आर्थिक वृद्धि की बहाली कैसे किये जाने के बारे में सुझाव पेश किये । उन्हों ने कहा कि सर्वप्रथम यह जरूरी है कि चार देश विश्व वित्तीय संकट से पुनरुत्थान करने में पहल करें । दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के सुधार को बढावा देने की पूरी कोशिश की जाये । तीसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी लक्ष्य को बखूबी अंजाम देने पर जोर लगाया जाये । चौथी तरफ विश्व वित्तीय संकट के मुकाबले के साथ साथ विकास को प्रभावित करने वाले अन्य प्रमुख सवालों का समुचित समाधान किया जाये ।
रुसी राष्ट्रपति मेदवेदेव ने अपने भाषण में यह भी कहा कि बड़े आर्थिक ताकतवर ब्रिक चार देशों के लिये यह जरुरी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी है कि समन्वय बिठाकर भारी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सवाल पर अपना प्रस्ताव पेश किया जाये , जी बीस वाशिंगटन व लदन वित्तीय शिखर सम्मेलनों में हुई सहमतियों को मूर्त दिया जाये , अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को संपूर्ण बनाया जाये , बहुपक्षीय व द्विपक्षीय सहयोग को बढा़या जाये और ऊर्जा व खाद्यान सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन आदि सवालों का समान रूप से सामना किया जाये । भारतीय प्रधान मंत्री मन मोहन ने कहा कि चार देशों के लिये संरक्षणवाद का दृढ़ विऱोध करना और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व वित्तीय ढांचागत सुधार को बढावा देना जरूरी है , साथ ही ज्ञान विज्ञान , ऊर्जा और कृषि के क्षेत्रों में सहयोग बढाने के लिये सार्थिक आर्थिक सहयोग करना भी अत्यावश्यक है । ब्राजिल के राष्ट्रपति लुला ने जताया कि विश्व वित्तीय संकट से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने नवोदित बाजार देशों के महत्व को समझ लिया है , ब्रिक चार देशों के सहयोग में विकास का बड़ा गुझाइश निहित है । ब्रिक सब से पहले अर्थशास्त्रियों द्वारा 21 वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रस्तुत आर्थिक शास्त्र की धारणा है । जब कि अब प्रमुख नवोदित बाजार देश होने के नाते उन की जन संख्या सारी दुनिया की कुल जनसंख्या का 42 प्रतिशत बनती है और घरेलू संकल राष्ट्रीय उत्पाद कुल विश्व मूल्य का 14.6 प्रतिशत है , व्यापार विश्व व्यापार का 12.8 प्रतिशत भी बनता है , औसत खरीददारी के हिसाब से विश्व आर्थिक वृद्धि के लिये उक्त चार देशों की योगदान दर 50 प्रतिशत से अधिक है । आर्थिक शक्तियों के तेज विकास के साथ साथ चार देशों की अंतर्राष्ट्रीय प्रभावशाली शक्तियां दिन ब दिन मजबूत होती जा रही हैं । साथ ही लोग उक्त चार देशों के भावी विकास पर आशाप्रद भी हैं ।
विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट, RBI ने बताए आंकड़े
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक के शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, भू-राजनीतिक घटनाक्रम के कारण मुद्रा दबाव में आने से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट के साथ 11.173 अरब डॉलर घटकर 606.475 अरब डॉलर रह गया है।
पिछले सप्ताह भी घटा था विदेशी मुद्रा भंडार
25 मार्च को समाप्त पिछले सप्ताह में कुल विदेशी मुद्रा भंडार 2.03 बिलियन अमरीकी डॉलर घटकर 617.648 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया था।
इससे पहले सबसे खराब साप्ताहिक गिरावट
बता दें कि इससे पहले पिछली सबसे खराब साप्ताहिक गिरावट 11 मार्च को समाप्त सप्ताह में थी, तब विदेशी मुद्रा भंडार में 9.6 बिलियन अमरीकी डॉलर की गिरावट आई थी।
विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट का कारण
विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट मुख्य मुद्रा परिसंपत्तियों में गिरावट के कारण आई, जो 10.727 बिलियन अमरीकी डॉलर गिरकर 539.727 बिलियन अमरीकी डॉलर रह गई। फिलहाल, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने मुद्रा बाजारों में परेशानियां पैदा कर दी हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ने वाले प्रभाव
डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाले विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर अमेरिकी मुद्रा में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभाव शामिल हैं। आमतौर पर मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए आरबीआई अपने भंडार से कुछ हिस्सा बेचकर बाजार में हस्तक्षेप करता है।
सोने के भंडार का मूल्य भी घटा
आरबीआई के आंकड़ों से पता चला कि समीक्षाधीन सप्ताह में सोने के भंडार का मूल्य भी 507 मिलियन अमरीकी डालर घटकर 42.734 बिलियन अमरीकी डालर हो गया।
और क्या कहते हैं आरबीआई के आंकड़े?
आरबीआई ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ विशेष आहरण अधिकार (SDR) 58 मिलियन अमरीकी डालर बढ़कर 18.879 बिलियन अमरीकी डालर हो गया।
आंकड़ों से पता चलता है कि आईएमएफ के साथ देश की रिजर्व पोजिशन भी समीक्षाधीन सप्ताह में 4 मिलियन अमरीकी डालर बढ़कर 5.136 बिलियन अमरीकी डालर हो गई है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी
ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों ने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में एक वैकल्पिक तंत्र के तौर पर ब्रिक्स बैंक की रूपरेखा पर सहमति जताई है। ब्राजील के फोर्टालेजा में चल रहे ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में इसके ढांचे पर मुहर लगी। 100 अरब डॉलर की शुरुआती पूंजी के साथ शुरू होने वाले इस विकास बैंक का मुख्यालय चीन के शांघाई में होगा। वहीं इसके प्रथम अध्यक्ष की भूमिका भारत को दी गई है, जबकि बोर्ड गवर्नर्स का चेयरमैन रूस होगा। बैंक का क्षेत्रीय कार्यालय दक्षिण अफ्रीका में खोला जाएगा। भारत ने आतंक के मसले पर भी जोरदार तरीके से अपनी बात रखी और कहा कि किसी भी तरह के आतंक को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
हालांकि इस सम्मेलन में आपसी सहयोग की कई बातों पर सहमति बनी लेकिन ब्रिक्स बैंक की स्थापना को इसमें सबसे बड़ी सफलता माना जा रहा है। भारत के लिहाज से एक बड़ी सफलता यह मानी जा रही है कि बैंक की स्थापना सदस्य देशों द्वारा बराबर पूंजी अंशदान के जरिये की जाएगी। इससे बैंक पर किसी एक देश विशेष के वर्चस्व की आशंका खत्म होगी। भारत शुरुआत से इसके लिए दबाव बना रहा था क्योंकि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक जैसे संगठनों में अमेरिका और जापान जैसे देशों के दबदबे की अक्सर शिकायत की जाती है। बैठक में सदस्य देशों को विदेशी मुद्रा संकट में मदद के लिए प्रारंभ में 100 अरब डॉलर के आकार के एक आपात आरक्षित विदेशी विनिमय कोष' (सीआरए) के गठन पर भी समझौता समझौता हुआ। बैंक की शुरुआती अधिकृत पूंजी 100 अरब डॉलर होगी लेकिन आरंभ में पांचों सदस्य कुल 50 अरब डॉलर की पूंजी लगाएंगे। सम्मेलन में स्वीकार किए गए फोर्टालेजा घोषणा पत्र में नेताओं ने कहा, 'हम अपने वित्त मंत्रियों को निर्देश देते हैं कि वे इस बैंक के संचालन के तौर तरीकों पर काम करें।'
वैश्विक सुधारों पर जोर
सदस्य देशों ने वैश्विक संस्थाओं में अपेक्षित सुधार न होने को लेकर अपनी चिंता भी जाहिर की। घोषणापत्र में सदस्य देशों ने 2010 के आईएमएफ सुधारों को लागू न होने को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वित्तीय संस्थानों में बड़े सुधारों की जरूरत बताई। अपने पहले बहुस्तरीय सम्मेलन में शिरकत कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह आने वाले दिनों में नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने को लेकर आशावादी हैं। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स अपने शिखर सम्मेलनों के दूसरे दौर में ऐसे समय प्रवेश किया है जब कि दुनिया के कई क्षेत्रों में अस्थिरता बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री ने विश्व में शांति और स्थायित्व के माहौल के लिए सदस्य देशों के बीच सहयोग को नई ऊंचाईयों पर ले जाने की जरूरत पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, 'मेरा मानना है कि पहली बार ब्रिक्स जैसी किसी संस्था ने देशों के एक समूह को उनकी वर्तमान समृद्धि के बजाय उनकी भविष्य की संभावना के आधार पर साथ लाने की कोशिश की है। यह आगे की सोच है। ब्रिक्स को एक शांतिपूर्ण और स्थिर विश्व के लिए अवश्य ही एक एकीकृत, स्पष्ट आधार मुहैया करना चाहिए।' मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतरराष्टï्रीय वित्तीय संगठनों के साथ ही डब्ल्यूटीओ में भी सुधार होना चाहिए ताकि एक मजबूत वैश्विक व्यापार व्यवस्था के बारे में विकासशील दुनिया की आकांक्षाओं का भी ध्यान रखा जाए।
घोषणा पत्र में कहा गया है कि ब्रिक्स और अन्य उभरते बाजारों और विकासशील देशों के सामने बुनियादी ढांचागत विकास और स्वस्थ्य विकास की परियोजनाओं के लिए धन की की तंगी बनी हुई है। बिक्स बैंक के समझौते को ब्रिक्स के सदस्यों और अन्य उभरती विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण पहल बताया गया है। इसमें कहा गया है कि प्रस्तावित बैंक ठोस बैंकिंग सिद्धांतों पर आधारित होगा और ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग मजबूत करेगा और वैश्विक विकास में बहुपक्षीय एवं क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं के प्रयासों में मदद करेगा।
घोषणापत्र में संक्षिप्त अवधि के भुगतान संतुलन के दबाव से निपटने के लिए विदेशी विनिमय की अदला बदली (करेंसी स्वैप) की व्यवस्था है। ब्रिक्स ने सदस्य देशों के निर्यात ऋण और गारंटी एजेंसियों के बीच सहयोग के संबंध में भी एक समझौता किया। इससे सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधी अवसर बढाने में मदद मिलेगी। ब्रिक्स के इस घोषणा पत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारोबार पर कर का मुद्दा भी शामिल हुआ।
दो साल में ब्रिक्स बैंक
ब्रिक्स बैंक दो साल में शुरू हो जाएगा। पश्चिम के प्रभुत्व वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को नया आकार देने की दिशा में इसे बड़ी पहल माना जा रहा है। हालांकि भारत की तमाम कोशिशों के बावजूद इसका मुख्यालय नई दिल्ली के बजाय चीन के शांघाई में होगा। मगर इसके पहले अध्यक्ष पर भारत का दावा होगा। सम्मेलन में 100 अरब डॉलर के सीआरए पर बनी सहमति में चीन 41 अरब डालर का अधिकतम योगदान करेगा, जिसके बाद भारत, रूस, ब्राजील 18-18 अरब डालर का योगदान होगा। दक्षिण अफ्रीका का 5 अरब डालर देगा।
रूस के साथ हुई रिश्ते बढ़ाने की बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के साथ रक्षा एवं ऊर्जा क्षेत्रों में विशेष रणनीतिक साझेदारी को व्यापक बनाने की पैरवी की है। मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को आगामी दिसंबर में होने वाली उनकी भारत यात्रा के दौरान कुडनकुलम परमाणु बिजली संयंत्र का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया। मोदी और पुतिन ने ब्राजील में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बीती रात 40 मिनट तक मुलाकात की। इससे पहले दोनों नेताओं की सोमवार की मुलाकात टाल दी गई थी क्योंकि पुतिन ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में व्यस्त थे।
पुतिन के साथ बतौर प्रधानमंत्री अपनी मुलाकात के बाद मोदी ने ट्वीट किया, 'राष्ट्रपति पुतिन के साथ मेरी मुलाकात में रूस-भारत संबंध को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी मजबूती देने के बारे में बातचीत हुई। हम रूस के साथ अपनी मित्रता को काफी महत्त्व देते हैं।' पुतिन ने मोदी को आम चुनाव में मिली भारी जीत पर बधाई दी। वर्ष 2001 में मॉस्को में पुतिन से मुलाकात करने वाले मोदी ने कहा कि रूस के साथ हमारा रिश्ता हर कसौटी पर परखा हुआ है तथा उन्होंने इस बात की सराहना की कि दोनों देशों के बीच आजादी के पहले से मधुर संबंध हैं।
मोदी ने रूस की मित्रता और भारत की आजादी के बाद से भारत के आर्थिक विकास एवं सुरक्षा में द्विपक्षीय एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग देने की जमकर सराहना की। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'अगर भारत में किसी बच्चे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी से पूछा जाए कि भारत का सबसे अच्छा दोस्त कौन है तो उसका जवाब रूस होगा क्योंकि संकट के समय रूस हमेशा भारत के साथ रहा है।' मोदी ने कहा कि भारत इस रिश्ते को आगे ले जाने को प्रतिबद्ध है और दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क के साथ परमाणु, रक्षा एवं ऊर्जा क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को व्यापक बनाने पर जोर दिया जाता रहेगा।
कंगाल पाकिस्तान की हालत और बिगड़ी, 6 अरब डॉलर की सहायता के बावजूद पाकिस्तानी मुद्रा सबसे निचले स्तर पर
पाकिस्तान के आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं ये तो जगजाहिर है लेकिन मौजूदा दौर में पाकिस्तानी मुद्रा रिकॉर्ड अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। पाकिस्तान के रुपए की कीमत काफी गिर गई है।
Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: May 22, 2019 10:56 IST
कराची। पाकिस्तान के आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं ये तो जगजाहिर है लेकिन मौजूदा दौर में पाकिस्तानी मुद्रा रिकॉर्ड अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। पाकिस्तान के रुपए की कीमत काफी गिर गई है। पाक रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी मंगलवार को लगातार चौथे कारोबारी दिन पाकिस्तानी मुद्रा ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य को गंवाया। कारोबारी चार दिनों में पाकिस्तानी मुद्रा ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सात फीसदी या 9.60 रुपए से अधिक गिरावट का सामना किया है।
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पाकिस्तान आर्थिक मसले पर पस्त नजर आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी बीते गुरुवार को 152.25 रुपए प्रति डॉलर के ताजा सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच गया, जबकि खुले बाजार में मंगलवार को इसमें 153.50 के स्तर पर कारोबार हो रहा था। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने कहा कि उसके विचार में विनिमय दर में हालिया उतार चढ़ाव अतीत के संचित असंतुलन तथा आपूर्ति एवं मांग पहलु की कुछ भूमिका को दर्शाता है। केंद्रीय बैंक ने जारी अपने नए मौद्रिक नीति बयान में कहा कि विनिमय दर पिछले कुछ दिनों में दबाव में आई है।
उन्होंने कहा कि बैंक स्थिति पर कड़ी निगरानी रखेगा और वह विदेशी मुद्रा बाजार में किसी भी तरह की अनियंत्रित अस्थिरता को दूर करने के लिए आवश्यकतानुसार उपाय करने के लिए तैयार है। बाजार की ताकतों को विनिमय दर का निर्धारण करने के लिए अधिक छूट देने की अनुमति सहित सख्त शर्तों के तहत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा छह अरब डॉलर के सहायता पैकेज दिए जाने के बाद रुपए में यह गिरावट आई है। पाक सरकार ने बीती 12 मई को ऋण कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए और तब से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में गिरावट जारी है।
वित्तीय और बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में रुपए का मूल्य घटना उम्मीद के अनरूप है, क्योंकि आईएमएफ की नवीनतम राहत पैकेज देने की प्राथमिक शर्त यह थी कि सरकार अंतर-बैंक बाजार को सरकारी नियंत्रण से मुक्त छोड़ दे। विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री इमरान खान की अर्थव्यवस्था को संभालने के तरीके की आलोचना करते हुए कहा कि पिछले साल अगस्त में उनके पदभार संभालने के बाद से देश की वित्तीय समस्याएं बढ़ गई हैं।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस हफ्ते भी 2 अरब डॉलर कम हुआ, रुपये को बचाने RBI बेच रहा डॉलर
नई दिल्ली, अगस्त 20: दुनियाभर में भारत मंदी की खबरों के बीच एक और हफ्ते भारत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी का विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ है, जिसने भारत सरकार की चिंता बढ़ा दी है। 12 अगस्त को खत्म हुए हफ्ते में भारत का विदेशी मुद्रा 2 अरब डॉलर और कम हो गया है और पिछले कई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी हफ्तों से लगातार भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही है। हालांकि, दो हफ्ते पहले रिपोर्ट आई थी, कि एक बार फिर से अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारतीय बाजार में निवेश कर रहे हैं, लेकिन 12 अगस्त को समाप्त सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 2 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।
डॉलर के मुकाबले और गिरेगा रुपया?
रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रुपये में आई गिरावट की प्रमुख वजह भारतीय रिजर्व बैंक का वो कदम है, जिसमें रुपये को डॉलर के मुकाबले गिरने से बचाने की कोशिश की जा रही है। दरअसल, आरबीआई डॉलर के मुकाबले रुपये को 80 स्तर से कम करने के लिए हस्तक्षेप अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी किया है और डॉलर को बेचा जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिकृ, यह एक ऐसा प्रयास है जिसे भारतीय केंद्रीय बैंक ने आवश्यक बताया है, और अत्यधिक अस्थिर मुद्रा बाजारों के बावजूद किसी भी तेज उतार-चढ़ाव को सीमित करते हुए, रुपये की स्थिरता को बनाए रखने के लिए जो कुछ भी करना होगा, वह करेगा।
कितना हो गया विदेशी मुद्रा भंडार?
आरबीआई के साप्ताहिक सांख्यिकीय पूरक डेटा से पता चलता है कि देश का विदेशी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी मुद्रा भंडार 12 अगस्त को समाप्त सप्ताह में घटकर 570.74 बिलियन डॉलर हो गया है, जो पिछले सप्ताह के 572.978 बिलियन डॉलर के मुकाबले 2.238 बिलियन डॉलर कम है। इस हफ्ते विदेशी मुद्रा भंडार में जो कमी आई है, वो पिछले कुछ हफ्तों में आई सबसे ज्यादा कमी है और अगस्त महीने के दूसरे हफ्ते एक बार फिर से देश का आयात गिरा है। जब से रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया है, उसके बाद से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार, कुल 25 हफ्तों में से 19 हफ्तों में गिरा है और इस दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कुल 61 अरब डॉलर गिर गया है। हालांकि, इसके बाद भी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया में चौथे नंबर पर बना हुआ है और आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने नवीनतम दर-निर्धारण बैठक के बाद ये बात कही है, जब केंद्रीय बैंक ने लगातार तीसरी बार दरों में बढ़ोतरी की है।
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74 से गिरकर 80 तक पहुंचा डॉलर
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पहले डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 74 पर था और डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की बिक्री 74 के स्तर पर की जा रही थी, लेकिन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के ठीक बाद से डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना शुरू हो गया और उसी अनुपात में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी कम होने लगा। एक हफ्ते तो भारतीय रुपये का वैल्यू डॉलर के मुकाबले कम होकर 80 तक पहुंच गया। यूक्रेन युद्ध से पहले जिस डॉलर का वैल्यू लगातार कम हो रहा था, यूक्रेन युद्ध के बाद उसमें अचानकर तेजी दर्ज की जाने लगी और दुनिया की रिजर्व करेंसी डॉलर ने विश्व की करीब करीब सभी मुद्राओं पर भारी बढ़त बना ली। यहां तक की डॉलर के मुकाबले साल 2000 के बाद पहली बार यूरो का वैल्यू कम हो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार खिलाड़ी गया। जबकि रुपया ने डॉलर के मुकाबले अपने सर्वकालिक कमजोर 80 के स्तर को पार कर लिया, हालांकि, आरबीआई ने हाजिर और वायदा बाजारों में डॉलर बेचकर भारतीय मुद्रा को उस स्तर से नीचे रखने में मदद की है, लेकिन आरबीआई के इन प्रयासों से भारतीय विदेशी मुद्रा में कमी आ गई है।
आरबीआई की यही है घोषित नीति
आरबीआई की विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करने की यह एक घोषित नीति है और यदि आरबीआई रुपये की वैल्यू में अस्थिरता देखता है, तो वो इस तरह के कदम उठाता है। लेकिन केंद्रीय बैंक कभी भी लक्षित स्तर नहीं देता है। वर्तमान कड़ी में, इसने 80-प्रति-डॉलर-चिह्न से ऊपर के मूल्यह्रास का सफलतापूर्वक बचाव किया है। आरबीआई के वित्तीय बाजार संचालन विभाग के सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस द्वारा किए गए अध्ययन, जो केंद्रीय बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, उसने कहा कि, वित्त वर्ष 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 22 प्रतिशत तक कम हो गया था, जबकि अभी सिर्फ 6 प्रतिशत ही कम हुआ है, जिसके लिए यूक्रेन संकट जिम्मेदार है और और धीरे धीरे इसमें सुधार आने की प्रक्रिया भी शुरू होगी।
2008 बनाम 2022
निरपेक्ष आधार पर अगर देखा जाए, तो साल 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण भारत के विदेश मुद्रा भंडार में 70 अरब डॉलर की गिरावट आई थी, जो कि COVID-19 अवधि के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 17 अरब डॉलर तक गिरा था। जबकि, यूक्रेन संकट के कारण इस वर्ष 29 जुलाई तक भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 56 अरब डॉलर की कमी आई है। पिछले महीने से भारतीय पूंजी बाजारों में विदेशी निवेशकों की वापसी ने संभवत: रुपये और देश के आयात कवर के नुकसान को सीमित कर दिया है। दरअसल, कई महीनों तक भारतीय संपत्ति के शुद्ध विक्रेता होने के बाद, विदेशी निवेशक जुलाई में घरेलू शेयरों और बांडों के शुद्ध खरीदार बन गए, यह प्रवृत्ति अभी भी इस महीने चल रही है।
तेल की भी है अहम भूमिका
वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में 100 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट ने भी निवेशकों की धारणा को बढ़ावा दिया है। मजबूत अमेरिकी डॉलर के कारण सप्ताह के लिए तेल की कीमतों में 1.5 प्रतिशत की गिरावट आई और डर है कि आर्थिक मंदी से कच्चे तेल की मांग कमजोर हो जाएगी। हालांकि, अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत काफी कम हो गई है और भारत को रूस से भी कम कीमत पर तेल मिल रहा है। लेकिन, उसके बाद भी अमेरिकी डॉलर में मजबूती पांच सप्ताह के उच्च स्तर पर पहुंच गई, जिसने कच्चे तेल से होने वाली लाभ को भी सीमित कर दिया है, क्योंकि यह अन्य मुद्राओं में खरीदारों के लिए तेल को अधिक महंगा बना देता है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट भारत के लिए अच्छी खबर है, जो अपनी तेल जरूरतों का 80 प्रतिशत से अधिक आयात करता है और व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है।