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फाइनेंस का महत्त्व

फाइनेंस का महत्त्व
June 19, 2021

फूल क्या है?पुष्पों के महत्त्व,भाग, पुष्पों (फूलों ) के चिकित्सकीय उपयोग

फूल क्या है?: फूल या पुष्प पौधों का जनन अंग होता है जिसके माध्यम से नए पौधों का निर्माण होता है। इसके अध्ययन को Anthology कहते है ,पेड़-पौधों में पुष्प का प्रमुख्य कार्य प्रजनन के द्वारा फलों का निर्माण करना। इनमे प्रजनन परागण क्रिया के द्वारा होता है जो की कीटपतंगों -मधुमखियों और हवा के द्वारा होता है।

पुष्पों (फूलों)के महत्त्व I mportance of Flowers

फूल कुदरत की एक ऐसी देन है जो धीमी सुगंध ,दिलकस रंगत और उनकी कोमलता हर किसी को मोहित कर देती है,पुष्प प्यार का इजहार कराती है साथ ही ये देवीय शक्तियों को भी लुभाती है।फूल श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक होते है , ये कई रंगों के होते है जो हमारी तनमन को शांत करदेती है। इनकी सुगंध चारों और फेल कर एक खुशनुमा वातावरण बना देती है।

प्राचीनकाल से ही मनुष्य फूलों को अपने सौन्दर्य एवं आभूषणों के रूप में उपयोग करते आया है ,इनका उपयोग धार्मिक ,सांस्कृतिक ,प्रेम अनुराग तथा शोक आदि प्रतीकों के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। इनका वर्णन हमारे धर्म ग्रथों,वेदों लोक कथाओं ,कहानियों में विस्तृत वर्णन मिलता है।

फूल के भाग

(3)-पराग कण (Pollan grain )

इनके आलावा इनका प्रयोग चिकित्सकीय पद्यतियों में भी किया जाता है तो आइये जानते है पुष्पों (फूलों ) के चिकित्सकीय उपयोग -

कमल (Lotus)

कमल और लक्ष्मी का सम्बन्ध अविभाज्या है । कमल सृष्टि की वृद्धि का द्योतक है । इसके पराग से मधुमक्खी शहद तो बनाती है ही , इनके फूलों से तैयार किये गये गुलकन्द का उपयोग प्रत्येक प्रकार के रोगों में । तथा कब्ज के निवारण हेतु फाइनेंस का महत्त्व किया जाता है ।

कमल के फल के अंदर हरे रंग के दाने - से निकलते हैं , जिन्हें भूनक मखाने बनाये जाते हैं , पंरतु उनको कच्चा छील कर खाने से ओज एवं बल की वृद्धि होती है । इसका गुण शीत है । इसका सबसे अधिक प्रयोग अंजन की भांति नेत्रों में ज्योति बढ़ान के लिए शहद में मिला कर किया जाता है । पंखुड़ियों को पीस कर उबटन में मिला कर चेहरे पर मलने से चेहरे की सुन्दरता बढ़ती है ।

गुलाब (Rose)

गुलाब का पुष्प सौन्दर्य , स्नेह एवं प्रेम का प्रतीक है । इसका गुलकंद रोचक है , जो पेट और आँतों की गर्मी शान्त करके हृदय को प्रसन्नता प्रदान करता है । गुलाब जल से आँखें धोने से आँखों की लाली तथा सूजन कम होती है ।

गुलाब का इत्र उत्तेजक होता है तथा इसका तेल मस्तिष्क को ठंडा रखता है । गुलाब के अर्क का भी मधुर भोज्य पदार्थों में प्रयोग किया जाता है । गर्मी में इसका प्रयोग शीतवर्द्धक होता है ।

गेंदा (Marigold)

मलेरिया के मच्छरों का प्रकोप दूर करने के लिये यदि गेंदे की खेती गंदे नालों और घर के आस - पास की जाये तो इसकी गन्ध से मच्छर दूर भाग जाते हैं । लीवर के रोगी के लीवर की सूजन , पथरी एवं चर्म रोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है ।

रात की रानी (Nigth bolooming flower)

इसकी गन्ध इतनी तीव्र होती है कि यह दूर - दूर तक के स्थानों को मुग्ध कर देती है । इसका पुष्प प्रायः सायंकाल से लेकर अर्ध रात्रि के कुछ पूर्व तक सुगन्ध अधिक देता है , परंतु इसके बाद धीरे - धीरे क्षीण होने लगता है । इसकी गन्ध से मच्छर नहीं आते । इसकी गन्ध मादक और निद्रादायक है ।

सूरजमुखी (Sunflower)

इसमें विटामिन ए तथा डी होता है । यह सूर्य का प्रकाश न मिलने के कारण होने वाले रोगों को रोकता है । इसका तेल हृदय रोगों में कोलेस्ट्राल को कम करता है ।

बबूल कीकर (Acacia)

बबूल के फूलों को पीस कर सिर में लगाने से सिर दर्द गायब हो जाता है । इसका लेप दाद और एग्जिमा पर करने से चर्मरोग दूर होता है ।

इसके अर्क के सेवन से रक्त विकार दूर हो जाता है । यह खाँसी और श्वास के रोग में लाभकारी है । इसके कुल्ले दन्त क्षय को रोकते हैं ।

इसके फूलों को पीस कर लुगदी बना कर फोड़े - फुसी पर लगाने से जलन तथा गर्मी दूर होती है । शरीर पर मल कर स्नान करने से दाद दूर होता है । यदि फूलों को पीस कर पानी में घोल कर छान ले और इसमें शहद मिला कर पीयें तो वजन कम होता है तथा रक्त साफ होता है ।

यह संक्रामक रोगों से रक्षा करने वाला है । नीम हर प्रकार से उपयोगी है , इसे घर का वैद्य कहा जाता है ।

अमलतास(Amaltas)

ग्रीष्म ऋतु में फूलने वाला गहरे पीले रंग के गुच्छेदार पुष्पों का यह पेड़ दूर में देखने में ही आँखों को प्रिय लगता है । इसके फूलों का गुलकन्द बना कर खाने से फाइनेंस का महत्त्व क़ब्ज दूर होती है , परंतु अधिक मात्रा में सेवन करने से यह दस्तावर होता है , जी मिचलाता है एवं पेट में ऐंठन उत्पन्न करता है ।

शरीर में पित्त होने पर अनार के फूलों का रस मिस्री मिला कर पीना चाहिये । मुँह के छालों में फूल रख कर चूसना चाहिये । आँख आने पर कली का रस आँख में डालना चाहिये ।

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कॉप-26 (COP-26) : भारत की ओर से किए पांच वादे – UPSC

कॉप-26 (COP-26) : भारत की ओर से किए पांच वादे – UPSC

  • Post published: November 9, 2021
  • Post category: Environment
  • Reading time: 1 mins read

इस लेख में आप पढ़ेंगे : कॉप-26 (COP-26) : भारत की ओर से किए पांच वादे – UPSC

स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (कॉप 26) में भारतीय प्रधानमंत्री ने पांच वादे किये है जिन्हे पंचामृत नाम दिया गया है –

  • पहला- भारत, 2030 तक अपनी गैर जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा।
  • दूसरा- भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरत अक्षय ऊर्जा से पूरी करेगा।
  • तीसरा- भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन (अरब) टन की कमी करेगा।
  • चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (इन्टेंसिटी) को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।
  • पांचवा- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विश्व की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, भारत केवल पांच प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। बावजूद इसके भारत ने अपना कर्तव्य पूरा करके दिखाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है।उन्होंने कहा कि यह सच्चाई हम सभी जानते हैं कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर आज तक किए गए वायदे, खोखले ही साबित हुए हैं। जब हम सभी जलवायु कार्रवाई (क्लाइमेट एक्शन) पर अपनी आकांक्षा बढ़ा रहे हैं, तब क्लाइमेट फाइनेंस पर विश्व की आकांक्षा वही नहीं रह सकती जो पेरिस समझौते के समय थी।चूंकि सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन विकसित देश करते हैं, इसलिए उन्हें हर हाल में क्लाइमेट फाइनेंस के अपने वादों को पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह कार्बन उत्सर्जन को मॉनीटर किया जाता है, ठीक उसी तरह अब क्लाइमेट फाइनेंस को मॉनीटर किया जाएगा, ताकि विकसित देशों पर दबाव बनाया जा सके।

इससे पहले प्रधानमंत्री ने ‘एक्शन एंड सॉलिडेरिटी-द क्रिटिकल डिकेड’ कार्यक्रम में कहा कि वैश्विक जलवायु वार्ता में अनुकूलन (एडप्शन) को उतना महत्त्व नहीं मिला है जितना न्यूनीकरण (मिटिगेशन) को। यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है, जो जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित हैं।उन्होंने कहा कि भारत समेत अधिकतर विकासशील देशों के किसानों के लिए जलवायु बड़ी चुनौती है – फसल चक्र में बदलाव आ रहा है, बेसमय बारिश और बाढ़, या लगातार आ रहे तूफानों से फसलें तबाह हो रही हैं। पेय जल के स्रोत से ले कर सस्ते घरों तक, सभी को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सक्षम बनाने की जरुरत है।

इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने तीन विचार रखे है-

  • पहला, एडाप्टेशन को हमें अपनी विकास नीतियों और परियोजनाओं का मुख्य अंग बनाना होगा। भारत में नल से जल, स्वच्छ भारत और उज्ज्वला, क्लीन कूकिंग फ्यूल फॉर ऑल जैसी परियोजनाओं से हमारे जरूरतमंद नागरिकों को एडाप्टेशन बेनेफिट्स तो मिले ही हैं, उनकी क्वालिटी ऑफ़ लाइफ भी सुधरी है।
  • दूसरा, कई ट्रेडिशनल कम्युनिटीज में प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का ज्ञान है।हमारी एडाप्टेशन नीतियों में इन पारंपरिक अनुभूवों को उचित महत्त्व मिलना चाहिए। ज्ञान का ये प्रवाह, नई पीढ़ी तक भी जाए, इसके लिए स्कूल के सैलेबस में भी इसे जोड़ा जाना चाहिए। लोकल कंडीशन के अनुरूप लाइफस्टाइल का संरक्षण भी एडाप्टेशन का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ हो सकता है।
  • तीसरा, एडाप्टेशन के तरीके चाहे लोकल हों, किन्तु पिछड़े देशों को इनके लिए ग्लोबल सपोर्ट मिलना चाहिए। क्लाइमेट के संदर्भ में, वन वर्ल्ड-एक विश्व का मूल आधार देते हुए उन्होंने एल, आई, एफ, ई, यानि लाइफस्टाइल फॉर एनवायरमेंट पर बल दिया है।

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Onam 2020: क्या है ओणम का महत्व और इतिहास, जानिए इस पर्व की क्या है पौराणिक कथा

ओणम केरल के प्रमुख त्योहारों में एक माना जाता है। यह त्योहार 22 अगस्त से शुरू हुआ था जोकि 2 सितंबर तक मनाया जााएगा.

Updated: August 29, 2020 3:06 PM IST

Onam 2020: क्या है ओणम का महत्व और इतिहास, जानिए इस पर्व की क्या है पौराणिक कथा

ओणम का त्‍योहार दक्षिण भारत में खासकर केरल में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. ओणम को खासतौर पर खेतों में फसल की अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है. ये पर्व 22 अगस्त से शुरु हो चुका है और ये पर्व पूरे 10 दिन तक चलेगा. यह त्यौहार समाज में समरसता की भवान.प्रे और भाईचारे का संदेश देता है.

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इस बार कोरोना वायरस के कारण ओणम के त्योहार की चमक फीकी पड़ गई हैं। यह त्योहार बहुत ही खास होता है। इस दिन मंदिरों में पूजा-अर्चना नहीं की जाती है बल्कि घर पर रहकर लोग पूजा करते हैं. इस पर्व को मनाने के पीछे एक कथा है जो काफी मशहूर है जानें क्या है इसकी कहानी.

जानें क्या है इसकी कहानी
इस पर्व के पीछे कथा है की केरल में महाबली नाम का एक असुर राजा था जिसके आदर के लिए यह ओणम पर्व मनाते हैं. इसके साथ ही लोग नई फसल की उपज के लिए भी इस पर्व का जश्म मनाते हैं. इस पर्व के दौरान सर्प नौका दौड़ के साथ कथकली नृत्य का आयोजन होता है जिसका अंदाज बेहद खास होता है.

10 दिनों तक मनाया जाता है पर्व
केरल में ओणम का त्योहार 10 दिनों तक चलता है, इस दिन घरों में ही पूजा की जाती है. घर के अंदर फूल-ग्रह बनाया जाता है. इसके लिए एक साफ कमरे में सर्कल में फूल सजाए जाते हैं, जिसे लगातार 8 दिन तक सजाया जाता है. वहीं नौंवे दिन घर के अंदर भगवान विष्णु की मूर्ति रखी जाती है. जिसकी पूजा में घर के लोग मौजूद होते हैं और लोग गीत गाते हैं. इसके साथ ही रात में समय श्रावण देवता और गणपति की पूजा होती है और 10वें दिन मूर्ति को विसर्जन कर दिया जाता है.

ओणम शुभ मुहूर्त
ओणम महोत्सव का प्रारंभ- 21 अगस्त, शुक्रवार थिरुवोणम नक्षत्र आरम्भ- अगस्त 30, 2020 को दोपहर 01 बजकर 52 मिनट से थिरुवोणम नक्षत्र समाप्त- अगस्त 31, 2020 को दोपहर 03 बजकर 04 मिनट तक ओणम महोत्सव का अंतिम दिन- 2 सितंबर, बुधवार

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फाइनेंस का महत्त्व

कॉप-26: प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की ओर से किए पांच वादे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (कॉप 26) को संबोधित किया

By DTE Staff

On: Monday 01 November 2021

कॉप-26 के दौरान यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो: पीआईबी

कॉप-26 के दौरान यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो: पीआईबी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (कॉप 26) को संबोधित करते हुए भारत की ओर से पांच वादे किए।

उन्होंने कहा, " क्लाइमेट चेंज पर इस वैश्विक मंथन के बीच, मैं भारत की ओर से, इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखना चाहता हूं, पंचामृत की सौगात देना चाहता हूं।

पहला- भारत, 2030 तक अपनी गैर जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा।

दूसरा- भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा फाइनेंस का महत्त्व की जरूरत अक्षय ऊर्जा से पूरी करेगा।

तीसरा- भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन (अरब) टन की कमी करेगा।

चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (इन्टेंसिटी) को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।

और पांचवा- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

इससे पहले प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं आज आपके सामने एक, वन वर्ड मूवमेंट का प्रस्ताव रखता हूं। यह वन-वर्ड एक शब्द, क्लाइमेट के संदर्भ में, वन वर्ल्ड-एक विश्व का मूल आधार बन सकता है, अधिष्ठान बन सकता है।

इसके अलावा उन्होंने कहा, "ये एक शब्द है- . एल, आई, एफ, ई, यानि लाइफस्टाइल फॉर एनवायरमेंट: "

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विश्व की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, भारत केवल पांच प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। बावजूद इसके भारत ने अपना कर्तव्य पूरा करके दिखाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है।

उन्होंने कहा कि यह सच्चाई हम सभी जानते हैं कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर आज तक किए गए वायदे, खोखले ही साबित हुए हैं। जब हम सभी जलवायु कार्रवाई (क्लाइमेट एक्शन) पर अपनी आकांक्षा बढ़ा रहे हैं, तब क्लाइमेट फाइनेंस पर विश्व की आकांक्षा वही नहीं रह सकते जो पेरिस समझौते के समय थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि चूंकि सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन विकसित देश करते हैं, इसलिए उन्हें हर हाल में क्लाइमेट फाइनेंस के अपने वादों को पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह कार्बन उत्सर्जन को मॉनीटर किया जाता है, ठीक उसी तरह अब क्लाइमेट फाइनेंस को मॉनीटर किया जाएगा, ताकि विकसित देशों पर दबाव बनाया जा सके।

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्शन एंड सॉलिडेरिटी-द क्रिटिकल डिकेड' कार्यक्रम में कहा कि वैश्विक जलवायु वार्ता में अनुकूलन (एडप्शन) को उतना महत्त्व नहीं मिला है जितना न्यूनीकरण (मिटिगेशन) को। यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है, जो जलवायु फाइनेंस का महत्त्व परिवर्तन से अधिक प्रभावित हैं।

उन्होंने कहा कि भारत समेत अधिकतर विकासशील देशों के किसानों के लिए जलवायु बड़ी चुनौती है - फसल चक्र में बदलाव आ रहा है, बेसमय बारिश और बाढ़, या लगातार आ रहे तूफानों से फसलें तबाह हो रही हैं। पेय जल के स्रोत से ले कर सस्ते घरों तक, सभी को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सक्षम बनाने की जरुरत है।

प्रधानमंत्री ने कहा, "इस संदर्भ में मेरे तीन विचार है। पहला, एडाप्टेशन को हमें अपनी विकास नीतियों और परियोजनाओं का मुख्य अंग बनाना होगा। भारत में नल से जल, स्वच्छ भारत और उज्ज्वला, क्लीन कूकिंग फ्यूल फॉर ऑल जैसी परियोजनाओं से हमारे जरूरतमंद नागरिकों को एडाप्टेशन बेनेफिट्स तो मिले ही हैं, उनकी क्वालिटी ऑफ़ लाइफ भी सुधरी है। दूसरा, कई ट्रेडिशनल कम्युनिटीज में प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का ज्ञान है।

हमारी एडाप्टेशन नीतियों में इन पारंपरिक अनुभूवों को उचित महत्त्व मिलना चाहिए। ज्ञान का ये प्रवाह, नई पीढ़ी तक भी जाए, इसके लिए स्कूल के सैलेबस में भी इसे जोड़ा जाना चाहिए। लोकल कंडीशन के अनुरूप लाइफस्टाइल का संरक्षण भी एडाप्टेशन का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ हो सकता है। तीसरा, एडाप्टेशन के तरीके चाहे लोकल हों, किन्तु पिछड़े देशों को इनके लिए ग्लोबल सपोर्ट मिलना चाहिए।

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