मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि

ईरान की मुद्रा के नाम और मूल्य-वर्ग में परिवर्तन के निहितार्थ
(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)
चर्चा में क्यों?
ईरान की सरकार ने अपनी मुद्रा (रियाल) के नाम परिवर्तन तथा उसके मूल्य-वर्ग में बदलाव का निर्णय लिया है।
पृष्ठभूमि
ईरान ने दिसम्बर 2016 में भी तत्कालीन मुद्रा ‘रियाल’ (Rial) के नाम और मौद्रिक-मूल्य (Monetary Value) में बदलाव प्रस्तावित किया था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1930 से पूर्व ईरानी मुद्रा का नाम ‘तोमन’ (Toman) हुआ करता था, 1930 के बाद नाम बदलकर ‘रियाल’ कर दिया गया। उस समय एक तोमन का मूल्य 10 रियाल के बराबर निर्धारित किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के अनुसार, वर्तमान में विभिन्न देशों मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि द्वारा किया जाने वाला मुद्रा अवमूल्यन वैश्विक व्यापार में तनावों का केंद्र-बिंदु बन गया है।
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मोहम्मद महदी अहमद सूडान के खार्तूम बैंक के बाहर एटीएम से पैसे निकालने के लिए एक लंबी कतार में खड़े हैं. सूडान के शहरों में कैश की किल्लत और क्रान्ति के बीच यह आम नजारा है. हाल ही के दिनों में बैंक मशीनों से बहुत कम कैश ही निकाला जा रहा है. कुछ किस्मत के धनी लोगों को 40 डॉलर तक पैसे मिल जाते हैं.
फॉर्मर्स कॉमर्शियल बैंक के सामने लगी लंबी कतारें पल भर में छितर-बितर हो जाती है क्योंकि मशीनों में कैश खत्म हो चुका है.
72 वर्षीय मोहम्मद कहते हैं, 'मैं यहां सुबह 7 बजे से कतार में लगा हूं.' कतारों में लगे बाकी लोगों की तरह वह भी अपने रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर गुजर-बसर कर रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि लोगों के बैंक अकाउंट में पैसे नहीं हैं. उनके पास पैसे हैं. दिक्कत ये है कि केंद्रीय बैंक रिटेल बैंकों को पैसा नहीं भेज रहे हैं जिससे उपभोक्ता अपने पैसे ही नहीं निकाल पा रहे हैं.
मोहम्मद अहमद कहते हैं, "हम बहुत परेशान हो रहे हैं. बैंक में करीब 20,000 लोग हैं. कई लोगों को पैसे निकालने की सख्त जरूरत है और वे लगातार पैसे निकालने के लिए कतार में लग रहे हैं. मैं भी कल यहां आया था और मैं फिसलकर गिर गया."
करेंसी का यह संकट नया नहीं है. कई कैश मशीनें नवंबर महीने से ही बैंक नोटों की कमी से जूझ रही हैं क्योंकि सरकार मुद्रा अवमूल्यन और आपातकालीन कदमों से आर्थिक संकट को रोक नहीं पाई. महंगाई के चलते पूर्व तानाशाह उमर-अल बशीर के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन होने लगे थे जिसके चलते उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा था.
मुद्रा संकट की पृष्ठभूमि कई सारी आर्थिक समस्याओं की वजह से लंबे समय से तैयार हो रही थी. पिछली तीन तिमाही में सूडान के तेल निर्यात में कमी आने से विदेशी मुद्रा का संकट पैदा हो गया था.
सऊदी अरब और यूएई की 3 अरब डॉलर की आर्थिक मदद के बावजूद सूडान में कैश की कमी की समस्या 5 महीने से लगातार गंभीर बनी हुई है. सूडान का नकदी संकट यहां के लोगों के जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है.
लाइन में घंटों खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे अब्दुल रहमान कमल कहते हैं, करीब दो महीने हो चुके हैं जब मुझे कैश मिला हो. मुझे इलाज के लिए पैसों की जरूरत है. मैं आज 2000 सूडानी पाउंड निकाल सकता हूं लेकिन यह काफी नहीं होगा. मुझे बार-बार पैसे निकालने के लिए आना होगा. मुझे पैसे निकालने की बहुत जरूरत है क्योंकि मैं अपने रिश्तेदारों से पैसे उधार ले रहा हूं और मुझे नहीं पता कि मैं उन्हें पैसे चुका पाऊंगा या नहीं.
कुछ लोगों का कहना है कि कैश की कमी की वजह से अर्थव्यवस्था में कई समस्याएं पैदा हो गई हैं. लोग अपनी जरूरतों के लिए अपना सामान बेच रहे हैं.
घर और कार जैसी चीजों की दो कीमतें हो गई हैं. एक जो कैश से भुगतान कर सकते हैं और दूसरी जो चेक से पेमेंट कर रहे हैं. चेक से भुगतान करने वालों को ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ रही हैं. बैकिंग व्यवस्था में लोगों का भरोसा बिल्कुल चकनाचूर हो गया है.
एटीएम की लाइन में लगा एक शख्स चिल्लाता है, यही वजह है कि हमें क्रांति की जरूरत है. कहां है हमारा पैसा? केंद्रीय बैंकों को बैकिंग व्यवस्था में पैसा डालना चाहिए. बैंक के नोट्स कहां गायब हो गए?
कुछ लोगों का कहना है कि उनका पैसा चोरी हो चुका है, वहीं कुछ का मानना है कि अधिकतर समस्याएं पूर्व शासन की अव्यवस्थाओं की वजह से पैदा हुई हैं. आर्थिक विशेषज्ञ जोना रोसेंथल और गैब्रिस इराडियन ने अप्रैल महीने में कहा था, 'तेल से होने वाले राजस्व में कमी के साथ सरकार ने केंद्रीय बैंक से उधार बढ़ा दिया. इससे मुद्रास्फीति पैदा हो गई. मुद्रा भंडार डगमगाने लगा क्योंकि केंद्रीय बैंक ने विनिमय दर बढ़ाए रखी.'
जब बैंक ने पाउंड का 40 फीसदी अवमूल्यन किया तो इससे मुद्रास्फीति में इजाफा हो गया. महंगाई से परेशान जनता ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिए जिसके बाद तीन दशकों तक सत्ता में रहे बशीर को कुर्सी से बेदखल होना पड़ गया. सूडान में उपजे आर्थिक संकट के अभी और भी खतरनाक परिणाम सामने आ सकते हैं.
जो लोग बैंक ऑफ खार्तूम की कतारों में लगे हैं, वे भाग्यशाली हैं. फार्मर्स कॉमर्शियल बैंक सुबह से ही कैश से खाली हो चुके हैं.
एक बैंक की लाइन से निराश लौटने के बाद दूसरे बैंक में देर से पहुंचे इंजीनियर अब्दुल लतीफ कहते हैं, वे लोग कहते हैं कि उन्होंने एटीएम में £200,000 डाले थे. मशीन से कुछ पैसे निकाल पाता, इससे पहले मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि ही एटीएम में पैसे खत्म हो जाते हैं.
अब्दुल कहते हैं, अभी तक मैंने उधार मांगकर किसी तरह मैनेज किया लेकिन अब मुझे अपने मजदूरों को भुगतान करने और कंपनी के लिए कच्चा माल खरीदने के लिए पैसे की जरूरत है. कैश की किल्लत की वजह से हममें से कोई भी काम नहीं कर पा रहा है.
वह कहते हैं, रमजान में चार दिन रह गए हैं. वह सोच में पड़ गए हैं कि ईद की दावत के लिए पैसे कहां से आएंगे. ईद पर बच्चों के लिए कपड़े खरीदने की मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि भी परंपरा है. आपको पता ही होगा कि पाउंड की कीमत घट रही थी तो मैंने सोचा कि बैंक में कुछ डॉलर्स और सऊदी रियाल्स जमा करना अच्छा रहेगा. हताशा के साथ वह कहते हैं कि यह बहुत ही खराब आइडिया था क्योंकि अब मैं अपना ही पैसा निकालने के लिए संघर्ष कर रहा हूं.
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रुपये का अवमूल्यन कितना नुकसानदेह!
डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट जारी है। मुद्रा का मूल्य कभी भी स्थायी नहीं रहता, उसमें हमेशा परिवर्तन होते रहते हैं। वैसे तो रुपये की कीमत मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग के मुताबिक घटती-बढ़ती रहती है, जिसमें कई बार स्वाभाविक तौर पर इसका अवमूल्यन होता है, तो कभी अधिमूल्यन (कीमत में बढ़ोतरी)। लेकिन जब कोई सरकार अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करने का फैसला करती है, तो इसके काफी दूरगामी परिणाम होते हैं।
तमाम तकनीकी विकास के बावजूद भारत आज भी एक कृषि प्रधान देश है। हमारा देश आज भी गांवों में बसता है। हालांकि यह भी सच है कि गांवों में भी धीरे-धीरे आधुनिकता की लहर पहुंच रही है, तो भी ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था आज भी कृषि आधारित है। कभी सारी दुनिया का यही हाल था। पूरा विश्व ही मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि कृषि प्रधान था। तब जिसके पास सबसे ज्यादा जमीन होती थी वह सबसे अमीर माना जाता था। समय बदला और फिर सारा धन बहकर उत्पादन कार्य से जुड़े कारखानेदारों के पास आने लगा। इंटरनेट और सूचना तकनीक के उदय से ‘नॉलेज इकोनोमी’ का शोर बढ़ा और तकनीक को नियंत्रित करने वाले लोग अमीर हो गए। ‘रिच डैड, पुअर डैड’ सीरीज़ के जनक रिचर्ड कियोसाकी कहते हैं कि समय मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि की करवट के साथ समृद्धि का प्रवाह बदल जाता है, जिसका अर्थ है कि अमीरी के साधन और पैमाने में परिवर्तन हो गया। मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि जो लोग किन्हीं कारणों से पहले अमीरों की श्रेणी में शुमार थे, यदि वे खुद को नहीं बदलते, तो धीरे-धीरे उनका धन कम होता चला जाएगा और ऐसे नए लोगों के पास चला जाएगा, जो नए जमाने की आवश्यकताओं के अनुरूप होंगे या उसके अनुरूप खुद को ढाल लेंगे। ऐसा ही एक मंजर अब हमारे सामने है जब परिवर्तन की लहर की शुरुआत हो चुकी है और यह मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि लहर जैसे-जैसे शक्तिशाली होगी, धन के प्रवाह का रुख वैसे-वैसे बदलेगा। इस लहर को समझने से पहले हमें इसकी पृष्ठभूमि को समझने की आवश्यकता है। सन 1933 में वैश्विक मंदी से उबरने के लिए अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट ने सोना और डॉलर का संबंध समाप्त कर दिया, ताकि वे अर्थव्यवस्था में आवश्यक धन का निवेश कर सकें और ब्याज की दरों पर नियंत्रण पाया जा सके।
उनका यह निर्णय लाभदायक रहा और अमरीका मंदी के जाल से बाहर आ सका। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण हुई बड़ी तबाही के बाद लगभग सभी देशों ने अपनी मुद्रा को सोने से अलग कर लिया, क्योंकि जितने नोट छापने आवश्यक थे उसकी तुलना में उन देशों के पास उतना सोना उपलब्ध नहीं था। मुद्रा को सोने से अलग करने का चलन यहीं से शुरू हुआ। इसके बावजूद सन् 1971 तक अमरीका ने विदेशी सरकारों को डॉलर के बदले उतने मूल्य का सोना देने का क्रम जारी रखा। सन 1971 में तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने यह सुविधा भी वापस ले ली और डॉलर पूरी तरह से सोने से मुक्त हो गया। इसके बाद डॉलर छापने के मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि लिए देश के पास स्वर्ण भंडार होना या न होना बिलकुल भी आवश्यक नहीं रह गया। विश्व मुद्रा कोष 185 से भी अधिक देशों की आर्थिक सेहत की निगरानी करता है और विश्व स्तर पर मुद्रा के विनिमय के नियम तय करता है। पिछले लगभग 80 वर्षों से अमरीकी डॉलर वैश्विक मुद्रा के रूप में मान्यता प्राप्त है। सन 1999 में यूरो को भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में मान्यता मिली और सन 2015 में चीनी मुद्रा युवान को यह गौरव हासिल हुआ। हाल ही में विश्व मुद्रा कोष ने युवान को विदेशी विनिमय के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी है।
इसके असर धीरे-धीरे सामने आएंगे। चीन के उत्पादनों से विश्व बाजार अटा पड़ा है। चीन के निर्मातागण अब कुछ विशिष्ट बाजारों के लिए उच्च गुणवत्ता की ओर भी फोकस कर रहे हैं। चीनी मुद्रा युवान के डॉलर की बराबरी पर आने के असर से यह संभव है कि धीरे-धीरे डॉलर कुछ कमजोर हो और युवान कुछ ज्यादा मजबूत हो। मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि यह परिवर्तन का समय है। परिवर्तन की लहर की शुरुआत हो चुकी है। जैसे-जैसे यह मजबूत होगी, वैसे-वैसे यह पता चलेगा कि कौन-से नए लोग ज्यादा अमीर होते हैं और कितने पुराने अमीरों की संपत्ति का ह्रास होता है। जब-जब डॉलर को स्वर्ण भंडार से अलग किया गया, तब-तब उसका अवमूल्यन हुआ, लेकिन उससे अमरीकी अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं हुआ, बल्कि वह मंदी के अभिशाप से बाहर आ सका। एक समय ऐसा भी था, जब अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश जापान में जाकर लगभग गिड़गिड़ाते हुए अमरीकी अर्थव्यवस्था को सहारा देने की प्रार्थना करने पर विवश हो गए थे, लेकिन बहुत-सी वैश्विक घटनाओं के कारण अंततः डॉलर मजबूत होता चला गया। अब युवान के डॉलर की बराबरी पर आ जाने के बाद जानकारों को आशंका है कि डॉलर कमजोर हो सकता है और युवान मजबूती की राह पर बढ़ सकता है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था के संतुलन में परिवर्तन संभव है और यदि परिवर्तन की लहर चल पड़ी, तो यह इतनी शक्तिशाली होगी कि कई पुराने अमीरों को धराशायी कर देगी।
आइए, अब इसे भारत के संदर्भ में देखते हैं। हमारी मुद्रा रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। इस समय रुपया अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर है और देश में इसे लेकर खूब शोर मच रहा है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि आम जनता मुद्रा के अवमूल्यन की बारीकियों को नहीं समझती। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और भाजपा विपक्ष में थी, तो रुपये के अवमूल्यन पर न केवल गरमा-गरम बहस होती थी, बल्कि भाजपा नेताओं ने इसे देश की अस्मिता से जोड़ दिया। रुपये के अवमूल्यन को देश का अपमान बताया जाने लगा। मोदी और भाजपा आज अपनी इसी अति का खामियाजा भुगत रहे हैं कि अगर रुपये का अवमूल्यन हो रहा है, तो मोदी को आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है, क्योंकि इस प्रथा की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी। दरअसल, रुपये का अवमूल्यन सदैव हानिकारक ही हो, ऐसा नहीं है। रुपये के अवमूल्यन से विदेशों में जाकर शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों का खर्च एकदम से बढ़ जाता है और मुद्रा अवमूल्यन की पृष्ठभूमि आयात महंगा हो जाता है, लेकिन इससे निर्यातकों को लाभ होने के अवसर बढ़ जाते हैं, क्योंकि निर्यात बढ़ जाता है। चीन ने भी इसी नीति पर चलते हुए अपना निर्यात बढ़ाया है।
मुद्रा के अवमूल्यन के अपने लाभ और हानियां हैं। समस्या यह है कि मोदी सरकार की विदेश नीति और अर्थ नीति की कोई एक दिशा नहीं नजर आती। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि रुपये का अवमूल्यन मोदी सरकार के लिए चुनौती है या वह इसे एक नए अवसर में बदल देगी। मोदी सरकार के पास शुरू से ही प्रतिभा की कमी रही है और केंद्रीय मंत्रिमंडल में तीन पूर्व नौकरशाहों को शामिल करने के बावजूद प्रतिभा के संकट पर काबू नहीं पाया जा सका है। अनुभव बताता है कि दुनिया की कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका समाधान न हो। हर चुनौती अपने आप में एक अवसर है। समस्या सिर्फ तब होती है, जब हम चुनौती को अवसर के बजाय समस्या मान लें। व्यावहारिक जीवन में मोदी ने बहुत बार ऐसा कर दिखाया है। इस बार भी वे इसे एक नए अवसर में बदल पाएंगे या नहीं, यह समय ही बताएगा।