डेट फंड्स में किसे निवेश करना चाहिए?

डेट म्यूचूअल फंड
डेट फंड सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं जैसे कि ट्रेजरी बिल, कॉरपोरेट बॉन्ड, कमर्शियल पेपर, सरकारी सिक्योरिटीज, और कई अन्य मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स जिसमे निश्चित व्याज मिलते हैं। इन सभी उपकरणों में एक पूर्व-निर्धारित परिपक्वता तिथि और ब्याज दर है जो खरीदार परिपक्वता पर कमा सकता है – इसलिए इसका नाम फिक्स्ड इंकम सिक्युरिटी है। बाजार में उतार-चढ़ाव से आम तौर पर रिटर्न प्रभावित नहीं होता है। इसलिए, ऋण प्रतिभूतियों को कम जोखिम वाले निवेश विकल्प माना जाता है।
डेट फंड कैसे काम करते हैं?
प्रत्येक ऋण सुरक्षा में एक क्रेडिट रेटिंग होती है जो निवेशकों को मूल और ब्याज को नष्ट करने में ऋण जारीकर्ता द्वारा डिफ़ॉल्ट की संभावना को समझने की अनुमति देती है। डेट फंड मैनेजर इन रेटिंग्स का उपयोग उच्च-गुणवत्ता वाले ऋण उपकरणों का चयन करने के लिए करते हैं। उच्च रेटिंग से तात्पर्य है कि जारीकर्ता के डिफ़ॉल्ट होने की संभावना कम है।
फ़ंड के प्रबंधक विभिन्न कारकों के आधार पर प्रतिभूतियों का चयन करते हैं। कभी-कभी, कम-गुणवत्ता वाली ऋण सुरक्षा का चयन करने से ऋण निवेश पर अधिक लाभ अर्जित करने का अवसर मिलता है और फंड मैनेजर एक परिकलित जोखिम लेता है। हालांकि, एक डेट फंड जिसके पोर्टफोलियो में उच्च गुणवत्ता वाली प्रतिभूतियां हैं, अधिक स्थिर होगा। इसके अलावा, फंड मैनेजर दीर्घावधि या अल्पकालिक ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करना चुन सकता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि ब्याज दर कम हो रही है या बढ़ रही है।
डेट म्यूचुअल फंड में किसे निवेश करना चाहिए?
डेट फंड उन निवेशकों के लिए होता है जो कम जोखिम लेना चाहते है । डेट फंड आमतौर पर फिक्स्ट रिटर्न वाले प्रतिभूतियों मे निवेश करते है जिससे रिस्क कम हो जाता है । वैसे तो डेट फंड के निवेश मे भी मार्केट रिस्क होता है लेकिन ज्यादातर इस तरह के फंड का रिटर्न एक फिक्स्ड़ रेंज में होता है । इसीलिए कम रिस्क लेने वाले लोगों के लिए ये फंड उत्तम होता है ।
डेट फंड के प्रकार
लिक्विड फंड
जो अधिकतम 91 दिनों की परिपक्वता वाले मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करता है। लिक्विड फंड बचत खातों की तुलना में बेहतर रिटर्न देते हैं और अल्पकालिक निवेश के लिए एक अच्छा विकल्प है।
मनी मार्केट फंड
जो 1 वर्ष की अधिकतम परिपक्वता के साथ मुद्रा बाजार के उपकरणों में निवेश करता है। ये फंड अल्पकालिक के लिए कम जोखिम वाले ऋण प्रतिभूतियों की मांग करने वाले निवेशकों के लिए अच्छे हैं।
डायनेमिक बॉन्ड फंड
जो ब्याज दर के आधार पर अलग-अलग परिपक्वताओं के ऋण साधनों में निवेश करता है। ये फंड्स मध्यम जोखिम सहिष्णुता और 3 से 5 साल के निवेश क्षितिज वाले निवेशकों के लिए अच्छे हैं।
कॉर्पोरेट बॉन्ड फंड
जो अपनी कुल संपत्ति का 80% कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश करता है, जिसकी उच्चतम रेटिंग है। ये फंड कम जोखिम सहिष्णुता वाले निवेशकों के लिए अच्छे हैं और उच्च-गुणवत्ता वाले कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश करना चाहते हैं।
बैंकिंग और पीएसयू फंड
जो पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) और बैंकों की ऋण प्रतिभूतियों में अपनी कुल संपत्ति का कम से कम 80 और निवेश करता है।
गिल्ट फंड
जो विभिन्न प्रतिभूतियों में सरकारी प्रतिभूतियों में अपने निवेश योग्य कॉर्पस का न्यूनतम 80% निवेश करता है। ये फंड कोई क्रेडिट जोखिम नहीं उठाते हैं। हालांकि, ब्याज दर जोखिम अधिक है।
क्रेडिट रिस्क फंड
जो कॉरपोरेट बॉन्ड में अपने निवेश योग्य कॉर्पस का न्यूनतम 65% निवेश करता है, जिसमें उच्चतम गुणवत्ता वाले कॉरपोरेट बॉन्ड के नीचे रेटिंग होती है। इसलिए, ये फंड क्रेडिट जोखिम की राशि ले जाते हैं और उच्चतम गुणवत्ता बांड की तुलना में थोड़ा बेहतर रिटर्न देते हैं।
फ्लोटर फंड
जो फ्लोटिंग दर उपकरणों में अपने निवेश योग्य कॉर्पस का न्यूनतम 65% निवेश करता है। ये फंड कम ब्याज दर का जोखिम उठाते हैं।
ओवरनाइट फंड
जो 1 दिन की परिपक्वता वाली ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करता है। इन फंडों को अत्यंत सुरक्षित माना जाता है क्योंकि क्रेडिट जोखिम और ब्याज दर जोखिम दोनों ही नगण्य हैं।
अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंड
जो मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और डेट सिक्योरिटीज में इस तरीके से निवेश करता है कि स्कीम की मैकाले अवधि तीन से छह महीने के बीच हो।
अधिक हो।
लो ड्यूरेशन फंड
जो मुद्रा बाजार के साधनों और ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करता है, इस तरह से योजना की अवधि छह से बारह महीने के बीच होती है।
लघु अवधि निधि
जो मुद्रा बाजार के साधनों और ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करती है, इस तरह से कि योजना की अवधि एक से तीन वर्ष के बीच हो।
मध्यम अवधि निधि
जो मुद्रा बाजार के साधनों और ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करती है कि योजना की मैकाले अवधि तीन और चार साल के बीच है।
मीडियम से लॉन्ग ड्यूरेशन फंड
जो मुद्रा बाजार के साधनों और ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करता है, इस तरह से कि योजना की अवधि चार से सात साल के बीच हो।
लॉन्ग ड्यूरेशन फंड
जो मुद्रा बाजार के साधनों और ऋण प्रतिभूतियों में निवेश करता है, इस तरह से कि स्कीम की मैकाले अवधि सात साल से अधिक हो।
इन म्यूचुअल फंड्स स्कीम में पैसा लगाने वालों पर गहराया संकट, अब क्या करें निवेशक
अगर आप म्यूचुअल फंड में पैसा लगाते हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले दो महीने से एक खास स्कीम मे . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : May 11, 2019, 08:41 IST
अगर आप म्यूचुअल फंड में पैसा लगाते हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले दो महीने से एक खास स्कीम में पैसा लगाने वाले निवेशक लगातार अपने वित्तीय सलाहकार को फोन कर रहे हैं या फिर इसको लेकर उनसे सलाह मांग रहे हैं. ये फंड्स स्कीम डेट म्यूचुअल फंड की है. इसमें पैसा लगाने वाले निवेशकों की इन दिनों नींद उड़ी है, क्योंकि इस समय डेट फंड्स को लेकर लगातार निगेटिव खबरें आ रही है. इस पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि डेट फंड का संकट की शुरुआत IL&FS से हुई है. इसमें कई डेट म्यूचुअल फंडों का पैसा फंस गया. कंपनी इनका पैसा लौटाने में डिफॉल्ट कर गई. फिर डीएचएफएल का संकट सामने आया. इसके बाद जी ग्रुप की कंपनियों और रिलायंस कैपिटल से जुड़ी कंपनियों ने पेमेंट को अटका दिया. इस कड़ी में सबसे नया नाम यस बैंक का है. आइए जानें अब क्या करें निवेशक.
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मौजूदा स्थितियों से अगर जरूरत से ज्यादा परेशान हैं तो डेट फंड्स में किसे निवेश करना चाहिए? आप डेट फंड्स में किसे निवेश करना चाहिए? डेट म्यूचुअल फंड बेच सकते हैं. एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि उन डेट स्कीमों की पहचान करें जो आपके लिए संकट पैदा कर सकती हों. उदाहरण के लिए कुछ एफएमपी के साथ संकट हो सकता है. लेकिन, आप इनके बारे में तब तक कुछ ज्यादा नहीं कर सकते हैं जब तक इनकी मैच्योरिटी का समय नहीं आ जाता है. इस तरह आप केवल इंतजार कर सकते हैं. (ये भी पढ़ें-शेयर बाजार में गिरावट आने पर अगर हुआ म्यूचुअल फंड SIP में घाटा, अब तुरंत करें ये काम)
>> सेबी के वर्गीकरण के बाद निवेशकों के लिए स्कीमों से जुड़े जोखिम के प्रकार को समझना बहुत आसान हो गया है. निवेशकों को अपनी स्कीमों को देखना चाहिए. साथ ही इनसे जुड़े जोखिम को समझना चाहिए.
डेट फंड्स क्या होते हैं- डेट फंड ऐसे म्युचुअल फंड हैं जो निवेशकों का पैसा डेट इंस्ट्रूमेंट्स में लगाते हैं. डेट इंस्ट्रूमेंट्स से मतलब - कॉल मनी, बॉन्ड, डिबेंचर्स, सरकारी सिक्योरिटीज, डिपॉजिट सर्टिफिकेट और कमर्शियल पेपर हैं. अलग अलग फाइनेंशियल लक्ष्यों के मुताबिक अलग अलग डेट फंड होते हैं. (ये भी पढ़ें-5000 रुपये लगाकर 49 लाख रुपये कमाने का तरीका! ऐसे करें शुरुआत)
डेट फंड कितनी तरह के होते हैं- डेट फंड कई तरह के होते हैं जैसे लिक्विड फंड, अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड, शॉर्ट टर्म फंड, गिल्ट फंड, इनकम फंड, क्रेडिट ऑप्युर्चनिटी फंड, मंथली इनकम प्लान और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान.
लिक्विड फंड्स किसे कहते हैं- बहुत कम वक्त के लिए निवेश करने वाले फंड लिक्विड फंड कहलाते हैं और लिक्विड फंड को मनी मार्केट फंड भी कहा जाता है. लिक्विड फंड में कुछ दिन से लेकर कुछ हफ्ते तक के लिए निवेश संभव होता है और अगर कुछ ज्यादा पैसा आ गया तो उसे इस डेट फंड्स में किसे निवेश करना चाहिए? फंड में शिफ्ट किया जा सकता है. इन फंड में कोई एक्जिट लोड नहीं लगता है.
लिक्विड फंड से रकम तुरंत बैंक अकाउंट में ट्रांसफर हो जाती है और इन फंड्स में बहुत थोड़े वक्त के डेट फंड्स में किसे निवेश करना चाहिए? लिए निवेश कर सकते हैं. ये फंड बहुत कम वक्त की सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं और इन सिक्योरिटीज में रकम डूबने का रिस्क ना के बराबर होता है. इनमें निवेश सबसे सुरक्षित लेकिन रिटर्न भी कम होता है.
अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड्स किसे कहते हैं- अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में कुछ हफ्ते से 3 महीने तक निवेश संभव होता है और लिक्विड फंड के मुकाबले अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में रिस्क ज्यादा होता है. दूसरे लॉन्ग टर्म फंड के मुकाबले कम रिस्क होता है और ये एफडी से ज्यादा रिटर्न देते हैं.
ये फंड उन निवेशकों के लिए जो अपना पैसा कुछ महीनों के लिए निवेश करना चाहते हैं. ये फंड अपना पोर्टफोलियो थोड़े पीरियड के लिए डेट इस्ट्रूमेंट में रखते हैं और ये फंड सरकारी सिक्योरिटीज, डिपॉजिट सर्टिफिकेट्स, कंपनियों और दूसरे फाइनेंस इंस्टिट्यूशंस में डिपॉजिट करते हैं.
शॉर्ट टर्म फंड्स क्या होते हैं- शॉर्ट टर्म फंड थोड़े ज्यादा वक्त के निवेश के लिए होते हैं और शॉर्ट टर्म फंड में आमतौर पर 3 महीने से 1 साल तक के लिए निवेश करते हैं.
ये फंड 1 साल या कुछ ज्यादा में मैच्योर हो जाते हैं. इसमें सरकारी सिक्योरिटीज और कंपनियों के कमर्शियल पेपर में निवेश किया जाता है और ब्याज दरों में बदलाव की वजह से लिक्विड और अल्ट्रा शॉर्ट टर्म के मुकाबले ज्यादा रिस्क होता है. शॉर्ट टर्म फंड्स ज्यादा रिस्क उठाने वाले निवेशकों के लिए बेहतर फंड होते हैं.
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म्यूचुअल फंड्स में भी संभलकर करें निवेश; पहले समझें ये जोखिम, फिर करें फायदे का सौदा
Mutual Fund में निवेश लंबी अवधि का होता है। ऐसे में निवेश पर महंगाई का असर साफ दिखता है। यही वजह होती है कि Fund Manager अपने फंड्स के रिटर्न को ऐसे स्तर तक बनाए रखने की कोशिश करते हैं जिससे महंगाई के बाद भी अच्छा मुनाफा हो।
नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। शेयर बाजार से बिना जोखिम पैसा कमाने की इच्छा रखने वाले निवेशकों को म्यूचुअल फंड्स में निवेश की सलाह दी जाती है। हालांकि आपको पता होना चाहिए कि कोई भी निवेश यहां तक की Fixed Deposit को भी 100 प्रतिशत जोखिम मुक्त नहीं माना जाता है। अगर आप कहीं पैसे लगा रहे हैं तो मानकर चलिए कि उसमें कम या ज्यादा जोखिम होता ही है। हालांकि इसी जोखिम के आधार पर रिटर्न भी तय होता है, यानि जितना ज्यादा जोखिम उतने ज्यादा रिटर्न की संभावना।
Mutual Fund में निवेश इसलिए किया जाता है जिससे आप जोखिम कम कर सकें और बेहतर रिटर्न पा सकें। हालांकि Mutual Funds के भी स्कीम के आधार पर जोखिम कम या ज्यादा हो सकते हैं। अगर आप इन जोखिम को समझते हैं तो स्कीम का बेहतर तरीके से चुनाव कर सकते हैं। जोखिम का सीधा संबंध रिटर्न से होता है, ऐसे में आप अपने जोखिम लेने की क्षमता को समझ कर इसी के आधार पर अच्छे रिटर्न पाने की कोशिश कर सकते हैं।
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एमएफ में भी हैं जोखिम तो निवेश क्यों?
ऐसे में पहला सवाल उठता है कि अगर Mutual Funds के भी जोखिम हैं तो इसमें निवेश क्यों किया जाए। दरअसल Mutual Funds बड़े फंड की ताकत और Fund Manager के अनुभव के आधार पर सीधे निवेश के मुकाबले आपके जोखिम को कम करता है और बेहतर रिटर्न के मौके बनाता है। इसमें निवेश के अपने जोखिम होते हैं, लेकिन वो आपके द्वारा किसी एसेट में सीधे किए गए निवेश के मुकाबले काफी कम होते हैं।
यानी अनिश्चितता की स्थिति में म्यूचुअल फंड अगर जोखिम खत्म नहीं करता तो उन्हें काफी कम कर देता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि आप अपनी स्कीम के जोखिमों को समझें और उसी आधार पर निवेश को लेकर गंभीर बनें। आइए देखें, स्कीम पर किन बातों का असर पड़ सकता है।
शेयर बाजार के जोखिम
Mutual Funds में सबसे ज्यादा रिटर्न इक्विटी से जुड़ी स्कीम में मिलता है, इसलिए एमएफ के लिए सबसे बड़ा रिस्क खुद शेयर बाजार ही है। हालांकि जोखिम इस बात से तय होता है कि आपने किस तरह के शेयरों का चुनाव किया है। अगर आप लार्जकैप या ब्लूचिप फंड्स में पैसा लगा रहें हैं तो आपके लिए जोखिम कम होगा। हालांकि स्मॉलकैप फंड्स में पैसा लगाने पर बढ़त में रिटर्न ज्यादा मिलेगा लेकिन गिरावट में नुकसान की संभावना भी ज्यादा होगी।
अक्सर देखने को मिलता है कि बाजार में गिरावट के साथ ही लोग बिना सोचे समझे स्कीम से पैसा निकालते हैं। ऐसी स्थिति में पहले आपको बाजार में गिरावट की वजह और अपनी स्कीम के जोखिम का स्तर देखना होगा। अगर जोखिम कम है और स्टॉक मजबूत हैं तो निवेश निकाल लेना आपके लिए नुकसान का सौदा बन सकता है। ऐसे में बेहतर होगा कि किसी विशेषज्ञ की मदद लें और अपने स्कीम के बारे में समझें। 5paisa आपको सभी स्कीम के जोखिम के स्तर और रिटर्न के अनुमानों की सटीक जानकारी देता है जिससे आप अपनी स्कीम के गिरावट और तेजी दोनों ही स्थिति में प्रदर्शन का अनुमान लगा सकते हो। इससे आप ज्यादा बेहतर फैसला ले सकते हैं।
महंगाई दर का जोखिम
Mutual Fund में निवेश लंबी अवधि का होता है, ऐसे में निवेश पर महंगाई का असर साफ दिखता है। यही वजह होती है कि Fund Manager अपने फंड्स के रिटर्न को ऐसे स्तर तक बनाए रखने की कोशिश करते हैं जिससे महंगाई के असर के बाद भी मुनाफा बेहतर हो।
अगर स्कीम पहले से काफी ऊंचे रिटर्न दे रही हो तो महंगाई का असर खास नहीं पड़ता, क्योंकि आपके रिटर्न ऊंचे हैं। हालांकि अगर रिटर्न काफी कम हैं तो महंगाई की वजह से उनका वास्तविक मूल्य कम हो जाता है। यही वजह है कि एक्सपर्ट अलग अलग जोखिम और रिटर्न के आधार पर अलग अलग स्कीम में निवेश की सलाह देते हैं जिसमें आपका औसत रिटर्न ऊंचा ही बना रहे और आप महंगाई के असर से बच जाएं।
आप इसके लिए 5paisa जैसे एप की मदद ले सकते हैं। जहां म्यूचुअल फंड्स में निवेश पर कोई कमीशन नहीं लिया जाता है। वहीं आपको जोखिम उठाने के आधार पर सबसे बेहतर रिटर्न देने वाली स्कीम की जानकारी दी जाती है जिससे आपके रिटर्न हर स्थिति में ऊंचे ही बने रहें।
ब्याज दरों का असर
डेट म्यूचुअल फंड्स के लिए ब्याज दरों में बदलाव भी एक बड़ा जोखिम है। डेट फंड तब बेहतर प्रदर्शन करते हैं जब ब्याज दरें गिरती हैं। हालांकि दरों में बढ़त के साथ रिटर्न पर दबाव देखने को मिलता है। दरअसल, जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो निचली दरों पर जारी हुए बॉन्ड्स की वैल्यू घट जाती है, क्योंकि बॉन्ड में निवेश करने को उत्सुक निवेशक ऊंचे कूपन रेट को प्राथमिकता देता है।
ऐसे में डेट फंड्स से स्थिर रिटर्न पाने के लिए आपको स्कीम के चुनाव के लिए दरों में बढ़ोतरी या कटौती के साथ कई अन्य बातों को भी देखना होता है। डेट फंड्स में भी कई कैटगरी होती है जिसमें अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड, मनी मार्केट फंड्स, लो ड्यूरेशन फंड्स, लिक्विड फंड्स ओवरनाइट फंड्स शामिल हैं और इन सब पर ब्याज दरों में बढ़त का असर अलग अलग होता है। 5paisa के साथ आप किसी भी स्थिति में अपने लिए सबसे बेहतर फंड्स का चुनाव कर सकते हैं और बढ़ते ब्याज दरों के बीच अपने निवेश पर जोखिम को कम कर सकते हैं।
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सावधान! अगर इन म्यूचुअल फंड्स स्कीम में लगाया हैं पैसा तो हो सकता है भारी नुकसान, जानिए क्यों
अगर आप म्यूचुअल फंड में पैसा लगाते हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक खास स्कीम में पैसा लगाने वाले निवेशक लगातार अपने वित्तीय सलाहकार को फोन कर रहे हैं या फिर इसको लेकर उनसे सलाह मांग रहे हैं. ये फंड्स स्कीम डेट म्यूचुअल फंड की है. इसमें पैसा लगाने वाले निवेशकों की इन दिनों नींद उड़ी है, क्योंकि इस समय डेट फंड्स को लेकर लगातार निगेटिव खबरें आ रही है. इस पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि डेट फंड का संकट की शुरुआत IL&FS से हुई है. वहीं, अब दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड को लेकर बड़ी खबर आई है. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल और इक्रा ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड यानी DHFL के कॉमर्शियल पेपर प्रोग्राम की रेटिंग घटा दी है. कंपनी की लिक्विडिटी क्राइसिस की वजह से रेटिंग घटाई गई है. क्रिसिल ने कंपनी के कॉमर्शियल पेपर की रेटिंग A4+ से घटा कर 'D' यानी डिफॉल्ट कर दी है. इक्रा ने भी इसकी रेटिंग घटा कर D कर दी है. रेटिंग एजेंसियों का मानना है कि कंपनी निवेशकों को ब्याज का पेमेंट नहीं कर पाएगी.
दीवान हाउसिंग के साथ क्या हुआ- क्रिसिल ने कहा कि जून में कंपनी को कॉमर्शियल पेपर के एवज में 750 करोड़ रुपये का पेमेंट करना है लेकिन पैसा न होने की वजह से वो इसे पूरा करने में नाकाम रह सकती है. पहला कॉमर्शियल 7 जून को मेच्योर हो रहा है.
>> कंपनी के पास पैसा नहीं है कि वह अपने कर्ज चुका सके. वक्त पर फंड इकट्ठा करने की संभावना भी काफी कम दिख रही है.
>> कॉमर्शियल पेपर मेच्योरिटी में डिफॉल्ट कर जाएंगे. इक्रा ने भी इन्हीं कारणों का हवाला देकर कॉमर्शियल पेपर को डिफॉल्ट कैटेगरी में डाल दिया है.
>> DHFL के बयान में कहा गया है कि कंपनी पूरी कोशिश करेगी ब्याज का भुगतान वक्त पर हो जाए.
दीवान हाउसिंग के आखिर समस्या क्या है- DHFL सितंबर से लिक्विडिटी का संकट झेल रही है. दरअसल IL&FS की लिक्विडिटी क्राइसिस का असर इस कंपनी पर भी पड़ा.
>> जनवरी में फंड की हेराफेरी के आरोपों ने भी इसकी मुश्किलें बढ़ा दी. फरवरी में कंपनी से हर्शिल मेहता सीईओ के पद से हट गए लेकिन रिटेल बिजनेस के एक्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट बने रहे. पिछले महीने केयर रेटिंग और क्रिसिल ने कंपनी के डेट इंस्ट्रूमेंट्स की रेटिंग घटा दी थी.
>> इस वजह से भी कंपनी को नया फंड जुटाने में दिक्कत आई. अब कॉमर्शियल की रेटिंग घट कर D पर आ जाने से संकट और बढ़ गया है.
ऐसे में डेट म्यूचुअल फंडों का पैसा इन कंपनियों के बॉन्ड्स में फंस गया. आइए जानें अब क्या करें निवेशक.
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मौजूदा स्थितियों से अगर जरूरत से ज्यादा परेशान हैं तो आप डेट म्यूचुअल फंड बेच सकते हैं. एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि उन डेट स्कीमों की पहचान करें जो आपके लिए संकट पैदा कर सकती हों. उदाहरण के लिए कुछ एफएमपी के साथ संकट हो सकता है. लेकिन, आप इनके बारे में तब तक कुछ ज्यादा नहीं कर सकते हैं जब तक इनकी मैच्योरिटी का समय नहीं आ जाता है. इस तरह आप केवल इंतजार कर सकते हैं.
>> सेबी के वर्गीकरण के बाद निवेशकों के लिए स्कीमों से जुड़े जोखिम के प्रकार को समझना बहुत आसान हो गया है. निवेशकों को अपनी स्कीमों को देखना चाहिए. साथ ही इनसे जुड़े जोखिम को समझना चाहिए.
डेट फंड्स क्या होते हैं- डेट फंड ऐसे म्युचुअल फंड हैं जो निवेशकों का पैसा डेट इंस्ट्रूमेंट्स में लगाते हैं. डेट इंस्ट्रूमेंट्स से मतलब - कॉल मनी, बॉन्ड, डिबेंचर्स, सरकारी सिक्योरिटीज, डिपॉजिट सर्टिफिकेट और कमर्शियल पेपर हैं. अलग अलग फाइनेंशियल लक्ष्यों के मुताबिक अलग अलग डेट फंड होते हैं. (ये भी पढ़ें-5000 रुपये लगाकर 49 लाख रुपये कमाने का तरीका! ऐसे करें शुरुआत)
डेट फंड कितनी तरह के होते हैं- डेट फंड कई तरह के होते हैं जैसे लिक्विड फंड, अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड, शॉर्ट टर्म फंड, गिल्ट फंड, इनकम फंड, क्रेडिट ऑप्युर्चनिटी फंड, मंथली इनकम प्लान और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान.
लिक्विड फंड्स किसे कहते हैं- बहुत कम वक्त के लिए निवेश करने वाले फंड लिक्विड फंड कहलाते हैं और लिक्विड फंड को मनी मार्केट फंड भी कहा जाता है. लिक्विड फंड में कुछ दिन से लेकर कुछ हफ्ते तक के लिए निवेश संभव होता है और अगर कुछ ज्यादा पैसा आ गया तो उसे इस फंड में शिफ्ट किया जा सकता है. इन फंड में कोई एक्जिट लोड नहीं लगता है.
लिक्विड फंड से रकम तुरंत बैंक अकाउंट में ट्रांसफर हो जाती है और इन फंड्स में बहुत थोड़े वक्त के लिए निवेश कर सकते हैं. ये डेट फंड्स में किसे निवेश करना चाहिए? फंड बहुत कम वक्त की सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं और इन सिक्योरिटीज में रकम डूबने का रिस्क ना के बराबर होता है. इनमें निवेश सबसे सुरक्षित लेकिन रिटर्न भी कम होता है.
अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड्स किसे कहते हैं- अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में कुछ हफ्ते से 3 महीने तक निवेश संभव होता है और लिक्विड फंड के मुकाबले अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में रिस्क ज्यादा होता है. दूसरे लॉन्ग टर्म फंड के मुकाबले कम रिस्क होता है और ये एफडी से ज्यादा रिटर्न देते हैं.
ये फंड उन निवेशकों के लिए जो अपना पैसा कुछ महीनों के लिए निवेश करना चाहते हैं. ये फंड अपना पोर्टफोलियो थोड़े पीरियड के लिए डेट इस्ट्रूमेंट में रखते हैं और ये फंड सरकारी सिक्योरिटीज, डिपॉजिट सर्टिफिकेट्स, कंपनियों और दूसरे फाइनेंस इंस्टिट्यूशंस में डिपॉजिट करते हैं.
शॉर्ट टर्म फंड्स क्या होते हैं- शॉर्ट टर्म फंड थोड़े ज्यादा वक्त के निवेश के लिए होते हैं और शॉर्ट टर्म फंड में आमतौर पर 3 महीने से 1 साल तक के लिए निवेश करते हैं.
ये फंड 1 साल या कुछ ज्यादा में मैच्योर हो जाते हैं. इसमें सरकारी सिक्योरिटीज और कंपनियों के कमर्शियल पेपर में निवेश किया जाता है और ब्याज दरों में बदलाव की वजह से लिक्विड और अल्ट्रा शॉर्ट टर्म के मुकाबले ज्यादा रिस्क होता है. शॉर्ट टर्म फंड्स ज्यादा रिस्क उठाने वाले निवेशकों के लिए बेहतर फंड होते हैं.
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