दलाल कैसे बने?

“जब मैं सापों को रेस्क्यू करने जाता तो लोग मुझसे पूछते थे कि क्या इसे मारकर मणी मिल जाएगी, क्या इसको मारकर इससे आंखों को ठीक करने वाली दवाई बन जाएगी, क्या सांप की आंखों में हमारे फोटो खींच गए हैं और यह हम पर हमला कर मार देगा। इस तरह के सवालों पर मेरा जवाब ‘ना’ ही होता था। हर जगह ऐसे सवाल पूछे जाने के कारण मैंने महसूस किया कि लोगों में सापों के बारे में फैले अंधविश्वासों को दूर करने की जरूरत है, इसलिए मैंने अंधविश्वासों के खिलाफ लोगों को जागरुक करना शुरू कर दिया,” सोनू ने कहा।
सेना भर्ती के नाम पर दलालों ने लाखो रुपए लेकर अभ्यर्थियों को ठगा, दो के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज
नीमकाथाना। देश की रक्षा के लिये जान देने का जज्बा हर किसी में होता है पर सेना में जाने के लिये जो जो जरूरी मानदण्ड होते हैं उसे पूरा करने में कईयों की छंटनी हो जाती है। पर बड़ी तादाद में ऐसे दलाल घूम रहे हैं जो ऐसे युवकों को अपना शिकार आसानी से बनाते हैं और उनसे सेना में भर्ती के नाम पर मोटी रकम वसूल करते हैं। ऐसी ही दलाली का खुलासा नीमकाथाना में सामने आया है। पुलिस के पास पहुंचे दलालों के शिकार बने युवकों ने पुलिस को पूरी बात बताई कि वह दलाल के चंगुल में कैसे फंसे और उसने किस तरह से उन्हें लूटा।
दरअसल गोड़ावास निवासी लीलाराम, शेरसिंह व उनके दोस्त सेना में नौकरी कर देश की रक्षा करने के साथ ही अपना कैरियर संवारना चाहते थे। वह सेना भर्ती के लिये काफी प्रयास भी करते थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात रोलाणों का बास, दलेलपुरा के विजेन्द्र सिंह व दिलीप सिंह नामक युवकों से हुई। दोनों ने मिलकर लीलाराम, शेरसिंह सहित अन्य युवकों को सेना में भर्ती को लेकर पहले तो कई ऐसी बातें बतायीं, जिससे सभी दलालों के झांसे में आ गए। इसके बाद दलालों नें युवकों को विश्वास दिलाया कि वह उन्हें सेना में भर्ती करवा सकता है। इस मामले में उसकी सेटिंग सेना में उंचे स्तर पर है।
युवक दलालों के विश्वास में आ गए और उसी के कहे अनुसार तैयारियां करने लगे। इसी बीच दलालों ने बताया कि वह उन्हें बिना दौड़ निकाले भी सेना भर्ती में पास करा सकता है। फिर क्या था, सभी युवक उसके चंगुल में और फंसते चले गए। दलालों ने प्रत्येक युवक को सेना में भर्ती करवानें के एवज में प्रत्येक युवक से आठ लाख सत्तर हजार रूपये हड़प लिए। दलालों ने फर्जी सेना दलाल कैसे बने? भर्ती नियुक्ति पत्र भी युवकों को थमा दिए। काफी महीनों बाद भी सेना की ओर से कोई जवाब नहीं आया तो युवकों को यह समझते देर नहीं लगी कि उनके साथ धोखा किया गया है। इसके बाद रुपये डूबते देख युवाओं ने इसकी शिकायत पुलिस से की।
पुलिस की मानें तो उसे भी सेना भर्ती रैली में कुछ भ्रष्टाचार की शिकायत मिल रही थी। एक अभ्यर्थि ने तो इस मामले की लिखित शिकायत की। मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने तत्काल इस आशय का मुकदमा दर्ज किया। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471 व 120 बी में दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
मिलिए 9 साल में 600 सांपों की ज़िंदगी बचाने वाले सोनू दलाल से!
सां प एक ऐसा जीव है जिससे दुनियाभर में ज्यादातर लोग नफरत करते हैं, डरते हैं और दिख जाने पर उनको मार देना ही एकमात्र विकल्प मानकर उनकी जान ले लेते हैं। सांपों के बारे में फैले झूठ और अंधविश्वास की वजह से उन्हें इस तरह की क्रूरताओं का सामना करना पड़ता है। अक्सर बारिश के मौसम में या कई बार गलती से सांप हमारे घरों में आ दलाल कैसे बने? जाते हैं, तो हम सीधे उन्हें मारने दौड़ते हैं। आम लोगों की समझ के अनुसार ऐसा करना सही है, क्योंकि सांप जहरीले होते हैं, इसलिए उन्हें मार देना चाहिए।
लेकिन सांपों को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे सोनू दलाल का कहना है कि सांप से लोगों को डर लगता है, कई सांप जहरीले भी होते हैं, मगर फिर भी सांपों को नहीं मारना चाहिए। सोनू हरियाणा के झज्जर जिले के मांडोठी गाँव के रहने वाले हैं। वह पिछले 9 साल से सांपों को बचाने का काम कर रहे हैं और अब तक करीब 600 सांपों का रेस्क्यू कर उनकी जिंदगी बचा चुके हैं। सोनू दलाल।
सोनू सांपों को न सिर्फ हमारे पर्यावरण के लिए जरूरी मानते हैं बल्कि उनसे इंसानों को होने वाले फायदे भी गिनवाते हैं। सोनू का कहना है कि सब जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 70% प्रतिशत लोग आज भी खेती व पशुपालन से जुड़े हुए हैं। अगर हम सभी सांपों को मार देंगे तो फिर खेतों में पाए जाने वाले चूहों को खाएगा कौन? चूहे हमारी फसलों को खा जाते हैं। उनकी तादात ज्यादा न बढ़े इसलिए प्रकृति ने सांपों को बनाया है। सांप हमारे खेतों में पाए जाने वाले चूहों का शिकार करते हैं, वह चूहों के बिल में घुसकर उनका शिकार करने में सक्षम होते हैं, जिसके कारण हमारी फसलें सुरक्षित रहती हैं और हम खाने के लिए अन्न, पशुओं के लिए चारा और पहनने के कपड़ों के लिए कपास जैसी फसलें उगा पाते हैं। इसलिए भी सांपों का संरक्षण बहुत जरूरी है।
सोनू बताते हैं, “सबसे पहले तो मैं यह बताना चाहूंगा कि हर सांप जहरीला नहीं होता, सिर्फ कुछ सांप ही जहरीले होते हैं और वे भी इंसानों को डसने के लिए नहीं बने हैं। भारत में पाए जाने वाले सांपों में से 80% सांप जहरीले नहीं होते हैं। अंधविश्वासों को छोड़कर अगर तर्कों पर बात करें तो सांपों को बचाना इसलिए जरूरी है क्योंकि वे हमारी प्रकृति की फूड चैन का हिस्सा हैं और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।”
सांपों को बचाने वाले सोनू को उनके इलाके के लोग ‘स्नेक मैन’ के नाम से जानते हैं। जब भी उनके इलाके के किसी गाँव या शहर में किसी के घर सांप घुस जाता है तो लोग सोनू को फोन करके बुलाते हैं और सोनू सांपों को घरों से रेस्क्यू कर बाहर जंगल में छोड़ देते हैं। वह इस काम में साल 2010 से लगे हुए हैं और लोगों से इस दलाल कैसे बने? काम के कोई पैसे नहीं लेते। सांप का रेस्क्यू करते सोनू।
उनसे इस काम की शुरुआत के बारे में पूछने पर उनका जवाब कुछ इस प्रकार होता है।
वह बताते हैं, “जब मैं छोटा था, तो देखता था कि गाँव में जब भी लोगों को सांप दिखाई देता, लोग उसे मार देते। जिसे देखकर मुझे बहुत बुरा महसूस होता था। मैं सोचता था कि जब सांप ने कुछ किया ही नहीं, फिर भी लोग उसे क्यों मार रहे हैं, मुझे बहुत गुस्सा आता, लेकिन मैं कुछ कर नहीं पाता था। डिस्कवरी पर सांपों के बारे में कई कार्यक्रम देखने से मुझे पता लगा कि ज्यादातर सांप जहरीले नहीं होते और वे प्रकृति के लिए जरूरी हैं। बस वहीं से मेरे अंदर लगी आग को चिंगारी मिली और मैंने सांपो की प्रजातियों पर किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और सांपों को बचाने, उन्हें रेस्क्यू करने के तरीके सीखने लगा।”
सांपों के बारे में जानकारी हो जाने के बाद सोनू ने सबसे पहले अपने गाँव में सांपों को रेस्क्यू कर जंगलों में छोड़ना शुरू कर दिया। सोनू दलाल।
देखते-देखते उनकी ख्याति आस-पास के गांवों में भी फैलने लगी और आसपास के गाँव के लोग भी घरों में सांप घुस जाने पर उसे निकालने के लिए सोनू को बुलाने लगे। हालाँकि सोनू को सांपों को रेस्क्यू करने के दौरान लोगों में व्याप्त सांपों के बारे में अंधविश्वासों का सामना भी करना पड़ता है।
“जब मैं सापों को रेस्क्यू करने जाता तो लोग मुझसे पूछते थे कि क्या इसे मारकर मणी मिल जाएगी, क्या इसको मारकर इससे आंखों को ठीक करने वाली दवाई बन जाएगी, क्या सांप की आंखों में हमारे फोटो खींच गए हैं और यह हम पर हमला कर मार देगा। इस तरह के सवालों पर मेरा जवाब दलाल कैसे बने? ‘ना’ ही होता था। हर जगह ऐसे सवाल पूछे जाने के कारण मैंने महसूस किया कि लोगों में सापों के बारे में फैले अंधविश्वासों को दूर करने की जरूरत है, इसलिए मैंने अंधविश्वासों के खिलाफ लोगों को जागरुक करना शुरू कर दिया,” सोनू ने कहा।
सोनू जब सांप रेस्क्यू करने जाते हैं तो उन्हें देखने के लिए आस-पास बहुत लोग इकट्ठा हो जाते हैं। सांप को रेस्क्यू करने के बाद सोनू वहां इकट्ठा हुए लोगों को सांपों के बारे में फैलाए गए अंधविश्वासों को दूर करते हैं कि सांपों में कोई मणी नहीं पाई जाती, सांप इच्छाधारी नहीं होते, सांप की आंखों में फोटो नहीं खींचती और न ही सांप दूध पीते हैं। लोगों का सांप के प्रति अन्धविश्वास दूर करते सोनू।
हमारे समाज में सांप के कांटने और उसके बाद खुद ही इलाज करने जैसे कई प्रकार के अंधविश्वास फैले हैं, जिनके बारे में भी सोनू लोगों को जागरुक करते हैं। वह बताते हैं कि आमतौर पर सांप इंसानों को काटते नहीं हैं। लेकिन अगर कोई सांप काट भी ले तो पीड़ित को शांत रहना चाहिए, हड़बड़ी मचाने से ब्लड प्रेशर बढ़ता है जिससे जहर तेजी से शरीर में फैलता है। इसलिए मेडिकल मदद मिलने तक पीड़ित को शांत रहना चाहिए और शरीर के जिस हिस्से पर सांप ने काटा हो उसे हिलाना नहीं चाहिए। घाव को धोने, घरेलू इलाज करने में समय नष्ट करने की बजाए जल्द से जल्द अस्पताल जाना चाहिए। फिल्मों में दिखाए गए काट कर चूसने जैसे फिल्मी नुस्खे न प्रयोग करें और न ही दबाव डालने वाली पट्टी बांधे। ये दोनों अंधविश्वास हैं।
इतना ही नहीं, सोनू अब तक 8 ऐसे लोगों को भी पकड़वा चुके हैं जो बिना जहर वाले सांपों को कैद कर उनके दांत तोड़ देते हैं और अपने फायदे के लिए सांपों के साथ क्रूर व्यवहार करते हैं। सांप पकड़ने के उपकरण के साथ सोनू।
अंत में सोनू सिर्फ इतना कहते है कि सांप बहुत खूबसूरत जीव हैं जो अलग-अलग तरीकों से न सिर्फ हमारे पर्यावरण के लिए जरूरी हैं, बल्कि हम इंसानों को भी अनेकों फायदे पहुंचाते हैं। वे हमारी तरह ही इस धरती पर रहने के हकदार हैं, इसलिए हमें उन्हें मारना बंद कर उनके साथ शांति और सद्भाव से रहना शुरू करना होगा।
अगर आपको सोनू की कहानी अच्छी लगी और आप उनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो 9050704550 पर दलाल कैसे बने? बात कर सकते हैं।
संपादन – भगवती लाल तेली
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वरुण धवन की पत्नी नताशा दलाल को पैपाराजी ने बुलाया ‘भाभी’, देखिए कैसा आया उनका रिएक्शन
बॉलीवुड एक्टर वरुण धवन ने रविवार को अपनी गर्लफ़्रेंड और फैशन डिज़ाइनर नताशा दलाल संग सात फेरे ले लिए हैं।
बॉलीवुड एक्टर वरुण धवन (Varun Dhawan) ने रविवार को अपनी गर्लफ़्रेंड और फैशन डिज़ाइनर नताशा दलाल (Natasha Dalal) संग सात फेरे ले लिए हैं। शादी तो काफी प्राइवेट तरीके से हुई थी, लेकिन जोड़े ने उसके बाद बाहर आकर पैपाराजी के लिए पोज दिए जिसकी तस्वीरें और वीडियो इंटरनेट पर जमकर वायरल हो रहे हैं। उनमें से ही एक वीडियो है जिसमें पैपाराजी नताशा को ‘भाभी’ कहकर बुलाते हैं।
पैपाराजी ने नताशा दलाल को बुलाया ‘भाभी’
जब वरुण धवन और नताशा दलाल शादी के बाद पैपाराजी से मिलने बाहर आए, तो उनमें से एक फोटोग्राफर ने उन्हें ‘भाभी’ कह दिया। ये सुनकर नताशा शर्माने लगी। वही, एक्टर भी अपनी दुल्हनिया के साथ ही थे जो उन्हें अच्छे से गाइड कर रहे थे कि कैसे पोज करना है। लेकिन कुछ ही देर बाद, वो थोड़े प्रोटेक्टिव हो गए और पैपाराजी से कहने लगे- ‘आराम से, डर जाएगी बेचारी’। जिसपर एक फोटोग्राफर ने जवाब दिया- ‘अभी को आदत डालना पड़ेगा’।
दलाल कैसे बने?
जिस जनता के दिल में
सपनों का लोकतंत्र पहले था आया,
उसके ही दिल गर धंसे हुए हों,
आज़ाद व्योम के संघर्षों में सुख न पाते अब
स्वावलंबी स्वर्णिम स्वराज से ऊबचुके हों,
कनक बेड़ियों में बौराए. डूब चुके हों,
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?दलाल कैसे बने?
जिस जनता का भाल तिलक बन,
लोकतंत्र बल पाता है,
उस जनता के शीश झुके हों,
कमर झुकी और पैर डिगे हों,
हाथ कटोरा लेकर अर्पण को,
चारण बन चरणन पे नयन टिके हों,
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?
फूस झोपड़ी में जनता और
प्रतिनिधि राजा से राजमहल में बसें हुए हों,
पैसा लेकर पूछें सवाल औ
दल की व्हिप से कसे हुए हों,
तिस पर तुर्रा हो रुआब का,
अपनी ही जनता से कटे हुए हैं,
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?
कोई बलात्कार का आरोपी,
कोई कालिख का पक्का दलाल,
कोई नफ़रत का सौदागर तो
कोई बाहुबली कालों का काल,
ये प्रतिनिधियों की सभा चुनी हैं
या चुना नुक्कड़-ए-बदख्याल,
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?
टोपी, तिलक, तराजू लेकर,
अगड़ी-पिछड़ी बाजू लेकर,
फसल काटने कई हैं आए,
कटने को तैयार खडे़ हम,
हम को चुनना था प्रतिनिधि हम,
जाति औ मजहब चुन आए,
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?
सतरंगी हैं इन्द्रधनुष हम,
सुर-सागर सा देश हमारा,
सप्तम-पंचम जितने सुर हैं,
अंतिम-प्रथम सभी सुर प्यारे,
हर सुर का हर गान हमारा
एकरंगी-एकताला होकर
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?
जनता खातिर, जनता द्वारा,
जनता की सरकार है प्यारे,
तुम तो सिर्फ प्रतिनिधि हमारे,
जनता खातिर चुने गए हो,
जन सपनों से बुने गए हो,
इस परिभाषा में आशा के जो बीज छिपे हैं,
ग़र वे बरगद न बनने पाए तो
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?
न राजनीति न सत्ता कोई,
न नेता न जनता कोई,
चौखम्भों पर खड़ा राष्ट्र जो,
लोकनीति पर बढ़ा राष्ट्र जो,
वही पथिक लोकतंत्र कहाए,
जब तक बात बने न ऐसी
बोलो, लोकतंत्र कैसे बल पाए ?
लेखक संपर्क
अरुण तिवारी
146, सुन्दर ब्लाॅक, शकरपुर, दिल्ली -110092
[email protected]
9868-793-799
20 साल में 13,000 फीसदी का रिटर्न, 1 लाख रुपये बन गए 1.28 करोड़, जानें कैसे इस कंपनी में पैसा लगाने वाले बने मालामाल?
पिछले 20 साल में इस कंपनी के शेयर्स ने निवेशकों को करीब 13,000 फीसदी का रिटर्न दिया है. इस दौरान कंपनी की रेवेनयू और सेल्स में भी भारी इजाफा हुआ है. पिछले वित्त वर्ष में ही कंपनी को 1,277 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है.
Updated on: Jun 25, 2021 | 8:01 AM
शेयर बाजार में निवेश का नया-नया पाठ पढ़ने वाले निवेशक हमेशा तलाश में रहते हैं कि उन्हें कोई ऐसा स्टॉक मिल जाए, जिससे वे मालमाल हो जाएं. लेकिन निवेश करने का सबसे पहला नियम ही यही होता है कि आपको अच्छा रिटर्न पाने के लिए लंबा इंतजार करना होगा. ऐसे बहुत कम स्टॉक्स होते हैं, जो निवेशकों को दलाल कैसे बने? कम समय में मोटी कमाई का मौका देते हैं. इस तरह के स्टॉक्स के साथ कई तरह के जोखिम भी जुड़े होते हैं. लेकिन लंबे समय में कम जोखिम में ज्यादा रिटर्न कमाना तुलनात्मक रूप से आसान होता है. आज हम आपको एक ऐसे ही शेयर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने पिछले 20 साल में निवेशकों को करीब 13,000 फीसदी का रिटर्न दिया है.
फिलहाल ये स्टॉक भारतीय शेयर बाजार का सबसे महंगा स्टॉक है. अब तक शायद आपने अंदाजा भी लगा लिया होगा. जी हां, ये स्टॉक मद्रास रबर फैक्ट्री (MRF) का है. बीते दो दशक से दलाल स्ट्रीट पर इस स्टॉक का जो दबदबा है, वो भविष्य में भी बहुत कम स्टॉक्स के साथ देखने को मिलेगा. कम से कम फिलहाल तो ऐसा ही लग रहा है. इस स्टॉक का इतना जबरदस्त दबदबा होना भी लाजिमी है, क्योंकि बीते 20 साल में इस स्टॉक ने निवेशकों को जबरदस्त रिटर्न भी दिया है.
20 साल में 12,800 फीसदी का रिटर्न
इसका अंदाजा केवल इस बात से लगा सकते हैं कि जून 2001 में MRF का भाव 640.65 रुपये प्रति शेयर था. अब 15 जून 2021 को इस कंपनी की शेयर का भाव बढ़कर 82,638 रुपये हो गया है. यानी इसमें तकरीबन 12,800 फीसदी का रिटर्न मिला है.
इसका मतलब है कि अगर किसी व्यक्ति ने जून 2001 में एक लाख रुपये खर्च कर इस कंपनी के शेयर खरीदे होंगे और इसे अब तक होल्ड किया होगा तो उन्हें कुल 1.28 करोड़ रुपये का रिटर्न मिलेगा.
MRF कंपनी के बारे में जान लीजिए
MRF कंपनी तमिलनाडु के चेन्नई स्थित टायर कंपनी है. ये कंपनी भारत की सबसे बड़ी टायर निर्माता है और भारतीय टायर बाजार में अभी भी इसकी अच्छी पकड़ है. दो पहिया वाहनों के लिए सबसे ज्यादा इसी कंपनी के टायर बिकते हैं. जबकि, ट्रक और बसों के टायर से लेकर पैसेंजर वाहनों के टायर के सेग्मेंट ये कंपनी टॉप 3 कंपनियों में शामिल है.
इस कंपनी की रेवेन्यू का सबसे बड़ा हिस्सा ट्रक और बसों के टायर की बिक्री से आता है. इसके बाद रेवेन्यू के मामले में पैसेंजर वाहनों के टायर और दोपहिया वाहनों के टायर भी शामिल हैं.
सचिन तेंदुलकर के बल्ले पर MRF का स्टिकर
घरेलू बाजार के अलावा विदेशों में भी इस कंपनी के टायर की मांग होती है. 9 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स में बनने वाले ये टायर आपको देश के हर कोने में खरीदने को मिल जाएंगे. इसके 7 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट तो दक्षिण भारत में ही मौजूद है. बीते कुछ सालों में इस कंपनी ने टायर के अलावा पेन्ट्स एंड कोट्स, खिलौने, मोटरस्पोर्ट्स से लेकर क्रिकेट ट्रेनिंग तक के क्षेत्र में विस्तार किया है.
आपको सचिन तेंदुलकर के बल्ले पर MRF का स्टिकर तो याद ही होगा. फिलहाल भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली भी अपने बल्ले पर MRF के स्टिकर का इस्तेमाल करते हैं. इसके लिए वे कंपनी से मोटी फीस वसूलते हैं.
कैसा रहा है इस कंपनी का परफॉर्मेंस?
पिछले 20 साल में MRF का शुद्ध मुनाफा सालाना 20 फीसदी की दर से बढ़ा है. वित्त वर्ष 2001 में कंपनी को 31.74 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ था, जोकि वित्त वर्ष 2021 में बढ़कर 1,277 करोड़ रुपये हो गया है. इस प्रकार कंपनी के प्रोडक्ट्स की बिक्री भी बीते 20 सालों में करीब 11 फीसदी सालाना दर से बढ़ी है.
हालांकि, लॉकडाउन और कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के बीच कंपनी को पिछली तिमाही में कुछ खास लाभ नहीं हुआ है.
क्यों इतना महंगा है MRF का शेयर?
MRF और दुनिया के दिग्गज निवेशक वॉरेन बफेट की कंपनी बर्कशायर हैथवे में एक समानता है. इन दोनों कंपनियों ने अपने शेयरों को अब तक विभाजित (Splitting of Shares) नहीं किया है. शेयरों को विभाजित करने का मतलब है कि कंपनी अपने स्टॉक्स को छोटे-छोटे नये शेयरों में बांट देती है.
इससे कंपनी के कुल स्टॉक्स की वैल्यू में कोई बदलाव नहीं होता है, लेकिन प्रति शेयर का भाव कम हो जाता है. कई कंपनियां लिक्विडिटी के लिए समय-समय पर अपने शेयरों को विभाजित करती हैं. MRF ने अपने शेयरों के साथ ऐसा कभी नहीं किया है.
बाजार जानकारों का कहना है कि इसके पीछे यह वजह हो सकती है कि कंपनी के प्रोमोटर्स अपने शेयरहोल्डर बेस को नहीं बढ़ाना चाहते हैं या वे चाहते हों कि केवल गंभीर निवेशक ही उनकी कंपनी में निवेश करें. इन वजहों से एमआरएफ के स्टॉक का भाव इतना ज्यादा है.