IPO क्या होता है?

IPO का पूरा नाम है- इनिशियल पब्लिक ऑफर। यानी की जब भी कोई नई कंपनी पहली बार आम लोगों को निवेश के जरिए कंपनी के शेयर खरीदने का मौका देती है तो इस प्रक्रिया को IPO के जरिए ही पूरा किया जाता है। इसके बाद कंपनी की लिस्टिंग शेयर बाजार में हो जाती है। आम तौर पर शुरुआती दौर में IPO की कीमत कम होती है। फिर शेयर बाजार में लिस्टिंग के बाद उसके शेयर की कीमतें बाजार के हिसाब से घटती या बढ़ती रहती है। कोई भी कंपनी अपने विस्तार के लिए निवेशकों को IPO में निवेश करने के लिए आमंत्रित करती है।
LIC IPO का 40% तक घट सकता है साइज, मई में IPO क्या होता है? इस तारीख को होगा लॉन्च, जानिए ये लेटेस्ट अपडेट
LIC IPO: देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी (Life Insurance Corporation) के इनीशियल पब्लिक ऑफर (IPO) का साइज 40 फीसदी तक घटाया जा सकता है। इस मामले से वाकिफ सूत्रों ने बताया कि सरकार पहले LIC के आईपीओ से 60,000 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी कर रही थी। हालांकि अब वह इसकी सिर्फ 21,000 करोड़ रुपये का IPO लॉन्च करने की तैयारी में है। इसके अलावा इसके साथ 9,000 करोड़ रुपये का ग्रीनशू ऑप्शन (Greenshoe Option) भी लॉन्च किया जाएगा, जिससे आईपीओ का कुल साइज 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। यह भी जानकारी मिली है कि एलआईसी के आईपीओ को 2 मई 2022 को लॉन्च किया जा सकता है।
क्या होता है ग्रीन शू ऑप्शन?
ग्रीन शू ऑप्शन, शेयरों के अतिरिक्त अलॉटमेंट का एक विकल्प है। अगर कंपनी के आईपीओ उसके साइज से अधिक सब्सक्रिप्शन मिलता है तो वह ग्रीन शू ऑप्शन के जरिए अतिरिक्त शेयरों को अलॉट कर सकती है। इससे कंपनी को बाजार की मांग और स्थिति के अनुसार अपने आईपीओ साइज में बदलाव करने की इजाजत मिलती है। उदाहरण के लिए एलआईसी का प्रस्तावित ऑफर साइज अगर 21,000 करोड़ तय होता है और उसे निवेशकों से 28,000 करोड़ रुपये की बोली मिलती है, तो वह ग्रीन शू विकल्प के तहत 7,000 करोड़ अतिरिक्त शेयरों को अलॉट कर सब्सक्रिप्शन को रिटेन कर सकती है। बता दें कि एलआईसी 9,000 करोड़ रुपये का ग्रीन शू ऑप्शन रखने की तैयारी कर रही है।
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अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड ने LIC के सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि एलआईसी के IPO को 2 मई को लॉन्च किया जा सकता है। सरकार ने LIC के IPO के लिए फरवरी में ड्राफ्ट पेपर जमा किया था। सरकार के पास एलआईसी का आईपीओ लाने के लिए 12 मई तक का समय है। अगर इस तारीख तक वह आईपीओ नहीं ला पाती है, तो उसे SEBI के पास फिर से आईपीओ की मंजूरी के लिए कागजात जमा करने होंगे। साथ ही उसे एलआईसी के दिसंबर तिमाही के नतीजे और कंपनी की नई एम्बेडेडे वैल्यू (Embedded Value) भी अपडेट करने होंगे। ड्राफ्ट पेपर के मुताबिक, एलआईसी की एम्बेडेड वैल्यू अभी 5.39 लाख करोड़ रुपये बताई गई है।
जानिए क्या होता है IPO, इसमें निवेश से कैसे बन सकते हैं पैसे, क्या है इसमें Invest करने का तरीका
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। अक्सर आप शेयर बाजार या किसी कंपनी से जुड़ी खबरों को पढ़ते वक्त IPO शब्द का ज़िक्र जरूर पाते होंगे। ऐसे में कई बार आपके मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर यह IPO होता क्या है, और कैसे इसमें निवेश कर लोग लाखों का मुनाफा कमाते हैं। IPO में निवेश करने से पहले इसके बारे में पूरी जानकारी का होना आवश्यक है ताकि आप अपने पैसे को सही जगह IPO क्या होता है? इनवेस्ट कर सकें। आज हम इस आर्टिकल के जरिए आपको IPO और उसमें निवेश के तरीके से संबधित सभी जानकारियों के बारे में बताने जा रहे हैं।
क्या होता है IPO?
IPO: क्या होता है आईपीओ, कैसे किया जाता है इसमें निवेश
हाँ यह एक और समान ही है। यह दोनों मामलों में इनिशियल पब्लिक ऑफर है। आप इनिशियल पब्लिक ऑफर के लिए बैंकर के माध्यम से इनिशियल पब्लिक ऑफर में सामान्य आवेदन करते हैं जबकि इनिशियल पब्लिक ऑफर को सूचीबद्ध करने के बाद शेयर बाजार में कारोबार किया जाता है।
प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार क्या है
जब इनिशियल पब्लिक ऑफर बाजार को हिट करता है, और सदस्यता के लिए खुलता है तो इसे प्राथमिक बाजार के रूप में जाना जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, प्राथमिक बाजार प्रारंभिक बाजार है। इनिशियल पब्लिक ऑफर शेयर सूचीबद्ध होने के बाद वे द्वितीयक बाजारों में व्यापार करेंगे।
इनिशियल पब्लिक ऑफर के लिए आवेदन करने के योग्य कौन है?
कोई भी वयस्क जो कानूनी अनुबंध में प्रवेश करने में सक्षम है, वह इनिशियल पब्लिक ऑफर के लिए आवेदन कर सकता है। इनिशियल पब्लिक ऑफर में निवेश करने के लिए एक डीमैट खाता होना जरूरी है क्योंकि आजकल सभी आवंटन केवल डीमैट रूप में किए जाते हैं।
IPO की कीमत कैसे तय होती है?
IPO की कीमत दो तरह से तय होती है। इसमें पहला होता है प्राइस बैंड और दूसरा फिक्स्ड प्राइस इश्यू ।
अगर कोई कंपनी अपना IPO लाती है और निवेशक शेयर नहीं खरीदता है तो कंपनी अपना IPO वापस ले सकती है। हालांकि कितने प्रतिशत शेयर बिकने चाहिए इसको लेकर कोई अलग नियम नहीं है।
कई गुना सब्सक्राइब हो जाए IPO तो कैसे होता है अलॉटमेंट, जानिए कहां करें चेक कि शेयर मिला या नहीं
जब कभी शेयरों की संख्या से अधिक आवेदन आ जाते हैं तो शेयरों का अलॉटमेंट किया जाता है. रिटेल निवेशकों और बड़े निवेशकों को अलग-अलग तरीके से अलॉटमेंट किया जाता है.
आए दिन किसी न किसी कंपनी का आईपीओ आने की खबरें आप सुनते ही होंगे. आईपीओ के साथ-साथ आपको आईपीओ ओपनिंग, आईपीओ क्लोजिंग, आईपीओ अलॉटमेंट और आईपीओ लिस्टिंग जैसे टर्म भी सुनने को मिलते होंगे. ऐसे में बहुत सारे लोग आईपीओ अलॉटमेंट को लेकर काफी कनफ्यूजन में रहते हैं. सवाल है कि आईपीओ IPO क्या होता है? अलॉटमेंट क्या होता है, क्यों होता है, कैसे होता है, अलॉटमेंट चेक कैसे करें आदि. आइए आज IPO क्या होता है? जानते हैं इन सबके बारे में.
क्यों होता है शेयरों का अलॉटमेंट?
शेयरों के अलॉटमेंट की वजह बहुत ही साधारण सी है. जब कभी शेयरों की संख्या से अधिक आवेदन आ जाते हैं तो शेयरों का अलॉटमेंट किया जाता है. यानी अगर एक ही शेयर के लिए 50 दावेदार आ जाते हैं यानी इश्यू 50 गुना सब्सक्राइब हो जाता है तो शेयर अलॉटमेंट के जरिए ही यह तय होता है कि किसे कितने शेयर दिए जाएंगे और किसे शेयर नहीं मिलेंगे.
अगर कोई आईपीओ 90 फीसदी से कम सब्सक्राइब होता है तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाता है. ऐसे में आईपीओ दोबारा से लाना पड़ता है. अलॉटमेंट के लिए रिटेल निवेशकों के लिए न्यूनतम 35 फीसदी, नेशनल इंस्टीट्यूशनल निवेशकों के लिए न्यूनतम 15 फीसदी और क्वीलिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर के लिए अधिकतम 50 फीसदी कोटा निर्धारित हो सकता है.
कैसे होता है शेयरों का अलॉटमेंट?
जो लोग आईपीओ के प्राइस बैंड में न्यूनतम प्राइस पर बोली लगाते हैं, ओवर सब्सक्राइब होने की हालत में शेयर मिलने के IPO क्या होता है? चांस कम हो जाते हैं. अगर इश्यू मामूली ओवर सब्सक्राइब होता है तो रिटेल निवेशकों को पहले तो सभी को एक-एक लॉट शेयर दे दिया जाता है, उसके बाद उनके कोटे के जितने शेयर बचते हैं, उन्हें उसी अनुपात में अलॉट किया जाता है, जिस अनुपात में लोगों ने उसे सब्सक्राइब किया होता है. अगर इश्यू बहुत ज्यादा सब्सक्राइब हो जाता है, मान लीजिए 50 गुना सब्सक्राइब हो गया तो रिटेल निवेशकों को कंप्यूटर के जरिए लकी ड्रॉ निकाल कर शेयर अलॉट किए जाते हैं. वहीं दूसरी ओर नेशनल इंस्टीट्यूशनल निवेशकों और क्वीलिफाइड इंस्टीट्यूशनल निवेशकों को हर स्थिति में आनुपातिक तरीके से शेयर अलॉट किए जाते हैं.
वैसे तो आपने जिस ब्रोकर के जरिए आईपीओ लिया होगा, वह आपको अलॉटमेंट की जानकारी देगा, लेकिन अगर किसी वजह से जानकारी नहीं मिली तो आप खुद भी चेक कर सकते हैं. किसी आईपीओ के शेयरों के अलॉटमेंट का पता करने के लिए आपको सबसे पहले बीएसई की वेबसाइट पर जाना होगा. वहां पर आपको इश्यू की लिस्ट में से उस आईपीओ को चुनना होगा, जिसके शेयर का अलॉटमेंट आपको चेक करना है. आपसे पैन कार्ड नंबर पूछा जाएगा, जिसे डालने के बाद आपके सामने अलॉटमेंट की डिटेल्स आ जाएंगी. अलॉटमेंट चेक करने का एक दूसरा तरीका भी होता है. आपने जिस भी कंपनी का आईपीओ लिया है, उसका कोई रजिस्ट्रार होगा. आप उस रजिस्ट्रार की वेबसाइट पर जाकर अलॉटमेंट की जानकारी ले सकते हैं.
आईपीओ और एफपीओ क्या हैं? इनको लाने का मुख्य उद्देश्य क्या होता है
IPO के जरिए कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर आम निवेशकों को इश्यू करती है। आईपीओ के जरिए कंपनियां कारोबार बढ़ाने के लिए पैसा जुटाती हैं। आम तौर पर आईपीओ में नए शेयर जारी किए जाते हैं। कुछ मामलों में पब्लिक ऑफर के जरिए पुराने शेयर भी बेचे जाते हैं। पुराने शेयरों की बिक्री को ऑफर फॉर सेल कहा जाता है।
- जब कोई कंपनी पहली बार शेयर जारी करती है तो उसे आईपीओ कहते हैं। आईपीओ के बाद कुछ साल बाद कंपनी फिर से पब्लिक ऑफर लाती है तो उसे एफपीओ कहते हैं।
- FPO (Foolow on Public offer) उसी कंपनी का होता है जो पहले आईपीओ ला चुकी है।
- एफपीओ लिस्टिंग के बाद आता है जबकि आईपीओ के साथ कंपनी की बाजार में लिस्टिंग होती है।
- कंपनियां पैसा जुटाने के मकसद से आईपीओ लाती हैं। प्रोमोटर या पुराने निवेशक अगर अपने शेयर बेचना चाहें तो आईपीओ लाते हैं। जब कंपनी अपना कर्ज चुकाने के लिए बाजार से पैसा जुटाती है तो भी आईपीओ लाया जाता है।
- नए कारोबार या पुराने IPO क्या होता है? कारोबार के विस्तार के लिए भी आईपीओ लाया जाता है। दरअसल आईपीओ लाते वक्त पैसा जुटाने का मकसद निवेशकों को बताना पड़ता है।
- लिस्टिंग के बाद कितने शेयर किसके पास हैं इसका लेखा-जोखा IPO क्या होता है? शेयर होल्डिंग पैटर्न से पता चलता है। सेबी के नियम के मुताबिक न्यूनतम 25 फीसदी शेयर आम निवेशक के पास होना जरूरी है। 25 फीसदी का नियम शेयर में लिक्विडिटी सुनिश्चित करने के लिए है।