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आरओआई क्या है?

आरओआई क्या है?

आरटीआई के अंदर क्या-क्या आता है?

सरकारी विभाग से कोई जानकारी लेनी हो, तो घंटों विभाग के चक्कर नहीं काटने होंगे। बस आपको अपने अधिकार पता होने चाहिए। लोकतंत्र भारत में सरकारी विभागों के पारदर्शिता बनाए रखने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्र के सभी नागरिकों के लिए आरटीआई एक्ट 2005 को लाया गया है। आज के “कुछ सीखे” लेख में हम आपको आरटीआई एक्ट क्या है और आरटीआई के अंदर क्या क्या आता है? इसके बारे में विस्तार से बताने आए हैं।

Table of Contents

आरटीआई एक्ट 2005 क्या है?

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 19 के एक भाग में सूचना के अधिकार को शामिल किया गया है। जिसे 2005 में सूचना के अधिकार अधिनियम ( आरटीआई एक्ट ) के तहत लागू किया गया है। इसे राइट टू इनफार्मेशन एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह अधिनियम जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू किया गया है।

भारत सरकार द्वारा इस एक्ट को लाने का मुख्य उद्देश्य सरकारी विभागों को भ्रष्टाचार से मुक्त बनाना और सरकारी के क्रियाकलापों की पूरी आरओआई क्या है? जानकारी आम जनता के सामने लाना है। साधारण शब्दों में कहें तो सरकारी विभागों में आम नागरिकों से संबंधित किए जाने वाले कार्यो की जानकारी कोई भारत का नागरिक प्राप्त कर सकता है। इस एक्ट के दायरे में आने वाले सभी विभाग आम नागरिक द्वारा मांगी गई जानकारी को देने के लिए बाध्य होगा।

आम नागरिक को आरटीआई से क्या फायदा है?

आरटीआई एक्ट के तहत प्रत्येक नागरिक को जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है।

आम नागरिक सरकारी विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर कर सकता है।

वह किसी भी सरकारी विभाग से कोई भी सार्वजनिक जानकारी प्राप्त कर सकता है, फिर चाहे वो उसके निजी हित में हो या ना हो।

आरटीआई एक्ट में कुल कितनी धाराएं हैं?

आरटीआई एक्ट के अंतर्गत कुल 6 अध्याय और 31 धाराएं ( सेक्शन ) और आरओआई क्या है? 2 अनुसूचियां है। आरटीआई एक्ट में सेक्शन 8(1 ) कोई भी सूचना अधिकारी देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा हो या विभाग की आंतरिक जांच को प्रभावित करती हो, ऐसी जानकारी उपलब्ध नहीं कराएगा।

आरटीआई के दायरे में कौन-कौन आता है?

अगर आप आरटीआई के अंदर क्या-क्या आता है?, इसके बारे में डिटेल जानकारी ढूंढ रहे हैं तो यहां हम आरटीआई के दायरे में आने वाले विभाग के बारे में बता रहे हैं। आरटीआई के दायरे में आने वाले विभाग मे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री के दफ्तर, संसद, सभी राज्य सरकार के विधान सभा व विधान मंडल, सेना के तीनों अंग, सभी न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सभी पब्लिक सेक्टर यूनिट्स, सभी सरकारी दफ्तर, आरबीआई और सरकारी बैंक, सरकारी अस्पताल,सरकारी बोर्ड, सरकारी बीमा कंपनी, सरकारी संचार कंपनी, पुलिस स्टेशन और सरकार से फंडिंग करने वाले एनजीओ, सरकारी फंड लेने वाली सभी प्राइवेट कंपनियां शामिल है। ऐसे सभी विभाग, जो सीधे तौर पर जनता के लिए में काम करते हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आते हैं।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्या आरटीआई के दायरे मेंआता है?

यदि आरटीआई के अंतर्गत मरीज की मेडिको लीगल रिपोर्ट (एमएलआर), पोस्ट मॉर्टम और डेथ समरी रिपोर्ट की मांग की जाती है, तो लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के द्वारा सम्बंधित दस्तावेजों को आदेवक को उपलब्ध कराने से इनकार किया जा सकता है, क्योंकि रोगी की संबंधित जानकारी व्यक्तिगत और गोपनीय प्रकृति की है और रोगियों से संबंधित जानकारी अस्पताल के साथ गोपनीय जानकरी के अंतर्गत आती है, जिसे आरटीआई की धारा 8(1)(ई) के तहत छूट प्राप्त है। रोगियों से संबंधित जानकारी में मेडिको लीगल रिपोर्ट (एमएलआर), पोस्ट मॉर्टम और डेथ समरी रिपोर्ट विश्वास की स्थिति को दर्शाता है। ऐसे संबंध की एक अन्य महत्वपूर्ण बात ये है कि जब तक एक बड़े सार्वजनिक हित को नहीं दिखाया जाता है, तब तक इसप्रकार की सूचना को प्रकटीकरण से छूट दी जाती है।

निजी बैंक आरटीआई चौकट मे आते है?

निजी बैंक सीधे तौर पर सूचना के अधिकार के अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं, क्योंकि सूचना का अधिकार अधिनियम सरकारी बैंकों पर लागू होते हैं। यदि निजी बैंकों की जानकारी चाहिए हो, तो आरबीआई के आरओआई क्या है? अंतर्गत सूचना का अधिकार अधिनियम लगाकर उससे संबंधित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

आरटीआई एक्ट के अंतर्गत क्या नहीं आता है?

ऐसे विभाग, जो कि पूरे देश के रक्षा पर आधारित होते हैं और जिनकी जानकारी लिक करने पर राष्ट्र के हित को खतरा हो सकता है। उन्हें आरटीआई से बाहर रखा गया है। इसके अंतर्गत सभी खुफिया एजेंसी की जानकारी और दूसरे देशों के साथ भारत से जुड़े मामलों की जानकारी शामिल है।

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 से किसी सरकारी विभाग में काम कर रहे, थर्ड पार्टी या सभी निजी संस्थानों की जानकारी को बाहर रखा गया है, क्योंकि इससे व्यक्तिगत हानि होने की आशंका है। यदि संबंधित निजी विभागों की जानकारी सरकारी कार्यालयों में उपलब्ध है, तो आरटीआई के तहत सरकारी कार्यालय से उनकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

आरटीआई के अंतर्गत शिक्षा विभाग तो शामिल है, लेकिन सरकारी स्कूल कॉलेजों को इससे बाहर रखा गया है। यदि स्कूल कॉलेज के बारे में कोई जानकारी प्राप्त करनी हो, तो शिक्षा विभाग से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगनी होगी।

ऑनलाइन /ऑफलाइन आरटीआई के लिए कैसे अप्लाई करें?

आरटीआई एक्ट 2005 के अंतर्गत जानकारी प्राप्त करने के लिए सभी संबंधित मंत्रालय, कार्यालय और विभागों मे उच्च से निम्न स्तर तक एक पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफीसर ( पीआईओ ) नियुक्त किया गया है। कोई भी जानकारी प्राप्त करने के लिए पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफीसर को निर्धारित चालान 10 रूपये के साथ एक आवेदन देकर इच्छित जानकारी मांगी जाती है।

एक बात ध्यान देने वाला है कि कुछ खास मामलों में धारा 8 के तहत सभी सरकारी दफ्तरों को सूचना देने में छूट दिया गया है।

आरटीआई एक्ट के तहत मांगी गई जानकारी के लिए ऐसे करें आवेदन –

किसी भी पोस्ट ऑफिस में जाकर निर्धारित आरटीआई काउंटर पर फीस और आवेदन जमा कर सकते हैं। इसके बाद पोस्ट ऑफिस की जिम्मेदारी होगी, कि वो संबंधित विभाग तक आपके को आवेदन पहुंचाए।

₹10 के स्टांप पेपर या डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल आर्डर या फिर ₹10 नगद के साथ आप किसी भी सरकारी ऑफिस में खुद जाकर खुले लिफाफे में आवेदन को जमा करा सकते हैं।

संबंधित विभाग के वेबसाइट पर जाकर आरटीआई लिंक को खोल कर आवेदन के फॉर्म को भर कर स्टांप पेपर / डिमांड ड्राफ्ट/पोस्टल ऑर्डर/नगद के साथ अपने लिखे गए आवेदन को स्कैन करके सबमिट करें।

डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल आर्डर पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफीसर के नाम पर होना चाहिए। साथ ही डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल आर्डर के आरओआई क्या है? पीछे की ओर अपना नाम और पता भी लिखा होना चाहिए।

यदि कोई व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे आता हो और वह सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी चाहता हो, तो उसे फीस नहीं देनी होगी। उसके बदले उसे बीपीएल कार्ड की प्रतिलिपि लगानी होगी।

आरटीआई एक्ट के तहत दिए जाने जानकारी से संबंधित अतिरिक्त फीस –

यदि आप आरटीआई एक्ट के तहत जानकारी मांगना चाहते हैं, तो केवल ₹10 के अलावा भी मांगी गई जानकारी के साथ अतिरिक्त फीस का प्रावधान है। यदि आरटीआई आवेदन पर विभाग द्वारा जानकारी फोटो कॉपी के साथ दी जाती है, तो प्रत्येक पेज फोटोकॉपी के ₹2 लिए जाते हैं। यदि जानकारी आवेदक जाकर खुद देखना चाहता हो, तो पहले घंटे के लिए कोई फीस नहीं ली जाएगी, लेकिन इसके बाद के प्रत्येक घंटे की फीस ₹5 होंगे। आवेदक को जानकारी सीडी में प्राप्त करनी है, तो इसके लिए पूर्व मे ₹50 जमा करना होगा।

आरटीआई एक्ट में मांगी गई जानकारी की समय सीमा

यदि कोई भी अपने नागरिक आरटीआई एक्ट के तहत जानकारी मांगता हो, तो विभाग को उसको 30 आरओआई क्या है? दिन के अंदर जानकारी उपलब्ध करानी होती हैं। साथ ही जीवन और सुरक्षा के मामले में जानकारी 48 घंटे के अंदर दे देनी होती है। थर्ड पार्टी या निजी कंपनियों के मामले में 45 दिन का समय दिया जाता है। यदि विभाग द्वारा दी गई जानकारी से आम नागरिक सेटिस्फाई नहीं है, तो आवेदक वह उच्च स्तर पर इसकी अपील कर सकता है। सही सूचना नहीं देने पर दोषियों के लिए सजा का प्रावधान भी आरटीआई एक्ट के तहत किया गया है।साथ ही समय सीमा के भीतर काम नहीं होने पर ₹25,000 तक का जुर्माना पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफीसर के ऊपर हो सकता है। यदि आवेदक फर्स्ट इंफॉर्मेशन ऑफिसर से संतुष्ट नहीं है तो उस विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं, इसके बाद भी निवारण नहीं होने पर आवेदक केंद्र के इनफार्मेशन कमीशन के पास जा सकते हैं।

तो आज के “कुछ सीखे” लेख में हमने आपको आरटीआई एक्ट क्या है और आरटीआई के अंदर क्या-क्या होता है?, इसके बारे में पूरी जानकारी दी है। अगर लेख आपको पसंद आई हो, तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर लिखें। साथ ही इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें, ताकि और लोगों को भी इसकी जानकारी मिल सके।

आरओआई क्या है?

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आईसीआईसीआई बैंक ने सैलरी अकाउंट वालों के लिए ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी शुरू की, ऐसे करें इस्‍तेमाल

बैंक के मुताबिक, ओवरड्राफ्ट में ली गई राशि को लौटाने के लिए बेहद लचीली शर्तें रखी गई हैं. ग्राहक जितने दिन तक ओवरड्रफ्ट की राशि का उपयोग करते हैं, उन्हें उतने दिन का ही ब्याज देना है.

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'इंस्टाफ्लेक्सी कैश' डिजिटल पेमेंट फैसिलिटी है जिसका इस्‍तेमाल बैंक के इंटरनेट बैंकिंग प्‍लेटफॉर्म के जरिये किया जा सकता है. आईसीआईसीआई बैंक में हेड (अनसिक्योर्ड एसेट्स) सुदीप्त रॉय ने कहा कि कोरोना महामारी के मुश्किल समय में इस तरह की सुविधा से वेतन पाने वाले ग्राहकों की नकदी की समस्‍या दूर होगी. उनके पास तमाम तरह के खर्चों के लिए पैसा उपलब्‍ध रहेगा.

बैंक ने बताया कि इस सुविधा को तुरंत मंजूरी दी जा सकती है. ग्राहक चाहें तो 48 घंटे के अंदर ओडी सीमा का उपयोग भी शुरू कर सकते हैं. बैंक का कहना है कि यदि किसी ग्राहक ने ओवरड्रफ्ट की सुविधा का उपयोग किया तो उसके बदले उनसे ब्याज लिया जाएगा. लेकिन, यह ब्याज की राशि ओवरड्राफ्ट की स्वीकृत आरओआई क्या है? राशि पर नहीं चार्ज किया जाएगा. इसकी बजाय उतनी रकम पर ही लगेगा, जितनी खाते से निकाली जाती है. यानी ब्याज का कैलकुलेशन मंजूर ओडी की पूरी राशि की जगह उस वास्तविक राशि पर होता है जो ग्राहक पाता है.

बैंक के मुताबिक, ओवरड्राफ्ट में ली गई राशि को लौटाने के लिए बेहद लचीली शर्तें रखी गई हैं. ग्राहक जितने दिन तक ओवरड्रफ्ट की राशि का उपयोग करते हैं, उन्हें उतने दिन का ही ब्याज देना है. वे जब भी चाहें इस राशि को चुका सकते हैं. उन्हें इसके लिए कोई फोरक्लोजर चार्ज भी नहीं देना है.

ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी क्या है?
सरकारी और निजी बैंक ओवरड्राफ्ट की फैसिलिटी देते हैं. ज्यादातर बैंक करंट अकाउंट, सैलरी अकाउंट और फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) पर यह सुविधा देते हैं. कुछ बैंक शेयर, बॉन्ड और बीमा पॉलिसी जैसे एसेट के एवज में भी ओवरड्राफ्ट की सुविधा देते हैं. इस फैसिलिटी के तहत बैंक से आप अपनी जरूरत का पैसा ले सकते हैं और बाद में यह पैसा चुका सकते हैं.

इस फैसिलिटी का कैसे इस्‍तेमाल करें?
-अपने इंटरनेट बैंकिंग अकाउंट में लॉग-इन करें
-'ऑफर्स' सेक्‍शन में जाएं
-अपने प्री-अप्रूव्‍ड ओडी को चेक करके अप्‍लाई करें

ऑटो स्‍वीप-इन फैसिलिटी
ऑटो स्‍वीप-इन फैसिलिटी जरूरत पड़ने पर ओडी अकाउंट से सैलरी अकाउंट में अपने आप फंड ट्रांसफर कर देगी. मान लें कि अगर किसी ने 1 लाख रुपये का ओवरड्राफ्ट मंजूर कराया है. लेकिन, उसमें से केवल 50 हजार रुपये का इस्तेमाल किया है तो ब्याज 50 हजार रुपये पर ही लगेगा.

अन्‍य फीचर
-ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी की तुरंत मंजूरी : ग्राहकों को बिना किसी दस्‍तावेज ओडी फैसिलिटी की तुरंत मंजूरी मिलती है.
-ओडी की एक्‍टेंसिव क्रेडिट लिमिट : बैंक सैलरी के तीन गुना तक क्रेडिट लिमिट देता है.
-इस्‍तेमाल किए गए पैसे पर ब्‍याज : ब्‍याज केवल उस पैसे लगाया जाता है जिसका वास्‍तव में इस्‍तेमाल किया जाता है.
-तय रेट से ब्‍याज : फ्लेक्‍सीकैश में एक तय दर से ब्‍याज को कैलकुलेट किया जाता है.
-रिपेमेंट में फ्लेक्सिबिलिटी : ग्राहकों को अपनी सुविधा के अनुसार बकाया लिमिट को साफ करने की फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है.
-कोई फोरक्‍लोजर चार्ज नहीं : इस्‍तेमाल की गई ओडी रकम को रिपे करने में कोई फोरक्‍लोजर चार्ज नहीं लगता है.

फीस और चार्ज
-प्रोसेसिंग फीस : 1,999 रुपये से शुरुआत + जीएसटी
-रिन्‍यूअल फीस : फ्लैट 1,999 रुपये + जीएसटी
-आरओआई : सालाना 12-14 फीसदी के बीच

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सूचना का अधिकार अधिनियम 2005

भारत सरकार ने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम की जगह ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005’ अधिनियमित किया है। किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए, यह अधिनियम नागरिकों को सामान्य प्रकृति की सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक “सार्वजनिक प्राधिकरण” हैं।

अधिनियम के तहत उपलब्ध सूचना

जहां तक ​​बैंकों का संबंध है, संबंधित प्रावधान यथा धारा 4(1), 5(1) और 5(2) पहले ही लागू हो चुके हैं। सूचना के अधिकार के तहत उस सूचना को प्राप्त किया जा सकता है जो सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में बैंक के पास या उसके नियंत्रण में है तथा इसमें कार्य, दस्तावेज, अभिलेखों का निरीक्षण करने, टिप्पणियों, दस्तावेजों/अभिलेखों के उद्धरणों या प्रमाणित प्रतियों और तथ्यों के प्रमाणित नमूने लेने तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप में भी संग्रहीत सूचना को प्राप्त करने का अधिकार शामिल है।

सूचना के प्रकट किए जाने से छूट

अधिनियम के धारा 8 और 9 के तहत कुछ निश्चित श्रेणियों की सूचना को नागरिकों को प्रकट किए जाने से छूट प्राप्त है। सूचना के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत करने से पहले जनता अधिनियम के संबंधित खंडों का भी संदर्भ ग्रहण करें।

सूचना कैसे प्राप्त करें?

कोई भी नागरिक लिखित रूप में या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रधान कार्यालय, इंडियन बैंक, नंबर 66, राजाजी सालै, चेन्नै – 600 001 में पदस्थ लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) को आवेदन पत्र प्रस्तुत करके सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है। इसे बैंक की किसी शाखा/अंचल कार्यालय में भी जमा किया जा सकता है।

नागरिक https://rtionline.gov.in लिंक का उपयोग कर ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भी आवेदन कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में आरटीआई शुल्क का ऑनलाइन भुगतान किया जा सकता है और आवेदन जमा करने पर आवेदनकर्ता को पंजीकरण संख्या मिलती है जिससे वह आवेदन को ट्रैक कर सकता है।

आवेदन का निपटान आरटीआई अधिनियम की धारा 7 के अनुसार किया जाएगा।

1 अप्रैल 2020 से इलाहाबाद बैंक के इंडियन बैंक में समामेलन होने पर बैंक का प्रतिनिधित्व, व्यवसाय और ग्राहकों का विस्तार देश भर में हो गया। बैंक ने चार स्तरीय संगठनात्मक व्यवस्था को अपनाया है जिसमें सिंगापुर और श्रीलंका में स्थित 3 विदेशी शाखाओं के अलावा कॉर्पोरेट कार्यालय, 14 क्षेत्रीय महाप्रबंधक कार्यालय, 78 अंचल कार्यालय और पूरे देश में फैले 5754 शाखाएं (31.12.2021 तक) शामिल हैं।

यथास्थिति 31.12.2021 को इक्विटी पूंजी का 79.86% भारत सरकार की थी और शेष 20.14% आम जनता की थी।

बैंक की गतिविधियां बैंकिंग विनियमन अधिनियम और समय-समय पर जारी आरबीआई के निर्देशों के अनुरूप संचालित की जाती हैं।

शाखाओं का लोकेशन और पता जानने के लिए => शाखा नेटवर्क पर क्लिक करें

इसके अलावा बैंक पूरे देश में फैले एटीएम के माध्यम से 24×7 बैंकिंग सेवा प्रदान करता है। एटीएम का लोकेशन और पता जानने के लिए एटीएम नेटवर्क पर क्लिक करें।

बैंक की 3 विदेशी शाखाएं हैं – एक सिंगापुर में, विवरण के लिए सिंगापुर पर क्लिक करें और 2 श्रीलंका में है। विवरण के लिए कोलंबो और जाफना पर क्लिक करें।

बैंक की दो सहायक कंपनियां हैं: 1. इंडबैंक मर्चेंट बैंकिंग सर्विसेज लिमिटेड, विवरण के लिए इंडबैंक मर्चेंट बैंकिंग सर्विसेज लिमिटेड पर क्लिक करें।

2. इंडबैंक हाउसिंग लिमिटेड

बैंक ने अपने ग्राहकों के आरओआई क्या है? लिए गैर-जीवन बीमा उत्पादों के विपणन के लिए यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के साथ एक संयुक्त उद्यम भी कर रहा है।

हालांकि, जमा, ऋण और अन्य उत्पादों, योजना दिशानिर्देशों, पात्रता आदि के बारे में कुछ जानकारी नीचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध हैं।

जमाएँ ऋण अन्य गतिविधियां
बचत बैंक खाता कृषि वित्तीय समावेशन
चालू खाता निजी/व्यक्तिगत सेवा शुल्क
मियादी जमाएँ एमएसएमई बीमा सेवाएं
एनआरआई खाते शिक्षा म्यूचुअल फंड
जमा दर कॉर्पोरेट नीतियाँ
ऋण दर निविदाएं / नीलामी
लेखा परीक्षक
करियर
विप्रेषण
शिकायत

केंद्र और राज्य सरकार के प्रायोजन विभाग ऐसे कार्यक्रमों के लाभार्थियों को सूचीबद्ध करते हैं और परिचालन से संबंधित क्षेत्र में बैंकों में आवंटित करते हैं। सब्सिडी केंद्र और राज्य सरकार के संबंधित प्रायोजन विभागों द्वारा प्रबंधित की जाती है।

जनता को दिये जानेवाले बैंक के विभिन्न ऋण उत्पाद हैं। विवरण के लिए ऋण मेन्यू का चयन करें।

बचत बैंक जमा के लिए स्टाफ/पात्र सेवानिवृत्त स्टाफ सदस्यों को 1.00% प्रति वर्ष का अतिरिक्त ब्याज प्रदान किया जाता है।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए ₹10 करोड़ तक की राशि तक की घरेलू सावधि जमा के लिए देय अतिरिक्त ब्याज दर 0.50% प्रति वर्ष होगी। अल्पावधि जमा, सावधि जमा और धन गुणक जमा योजनाओं के संबंध में कार्ड दर से 7 दिन से 10 वर्ष तक की जमा राशि पर अतिरिक्त दर प्रदान की जाएगी। इसी प्रकार, आवर्ती जमा खातों के लिए अतिरिक्त ब्याज दर 6 महीने से 120 महीने (3 महीने के गुणक में) की अवधि के लिए पात्र होगी। उपरोक्त उच्चतम सीमा एक या एक से अधिक शाखाओं में प्रधान खाता धारक के रूप में वरिष्ठ नागरिक के नाम पर जमा सभी प्रकार की सावधि जमाओं पर लागू होती है। तथापि, एकल सीआईएफ के अंतर्गत ₹10 करोड़ की समग्र सीमा के भीतर एक दिन में ₹2 करोड़ से अधिक के लिए कोई एकल जमा खाता नहीं खोला जा सकता है।

पूंजीगत लाभ योजना टाइप बी (सावधि जमा) 1988 योजना के तहत खोले गए वरिष्ठ नागरिकों की जमा खाता इस लाभ के लिए पात्र नहीं है। इसी प्रकार एचयूएफ के नाम पर सावधि जमा के मामले में एचयूएफ का कर्ता उच्च ब्याज दर के लिए पात्र नहीं है, भले ही वह एक वरिष्ठ नागरिक हो, क्योंकि जमा का लाभार्थी स्वामी एचयूएफ है, न कि व्यक्तिगत रूप से एचयूएफ का कर्ता।

आरटीआई के तहत प्राप्त आवेदन और प्रदान की गई सूचना का विवरण:

प्राप्त और निपटाए गए आरटीआई आवेदनों का विवरण:

वर्ष प्राप्त आरटीआई आवेदन आरटीआई आवेदनों का निपटान
2020-21 4851 4686
2021-22 4725 4788

प्राप्त अपीलों और जारी आदेश का विवरण:

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वर्ष प्राप्त अपील आवेदनअपीलों का निपटान
2020-21 800 768
2021-22 871 883

सीपीआईओ/एपीआईओ का प्रशिक्षण

सार्वजनिक सूचना: शिकायतों का निवारण आरटीआई अधिनियम के दायरे से बाहर है।

सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4(2) के अनुसार, बैंक ने निम्नलिखित सूचना का प्रकटीकरण किया: विवरण के लिए लिंक पर क्लिक करें।

देश के पहले सूचना आयुक्त हबीबुल्लाह बोले- आरटीआई कानून में संशोधन कर सरकार ने दुरुपयोग के रास्ते खोले

प्रियंक द्विवेदी (नई दिल्ली). सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक पिछले हफ्ते संसद के दोनों से पारित हो गया। अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा। राज्यसभा में विपक्ष ने बिल को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव दिया था। यह प्रस्ताव 75 के मुकाबले 117 वोटों से गिर गया। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने आरटीआई को कमजोर करने का आरोप लगाया, लेकिन सरकार ने कहा कि इस कानून के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जा रही। आरटीआई कानून में क्या संशोधन हुए हैं और उनका असर क्या होगा, यह जानने के लिए दैनिक भास्कर ऐप ने देश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त रहे वजाहत हबीबुल्लाह से बात की। 1968 की बैच के आईएएस अफसर हबीबुल्लाह 2005 से 2010 के बीच मुख्य सूचना आयुक्त थे।

आरटीआई कानून में संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी?

हबीबुल्लाह : यह मुझे भी समझ नहीं आ रहा। क्या इस कानून में कोई कठिनाई आ रही थी? या सूचना आयुक्त किसी तरह के अधिकार मांगने की कोशिश कर रहे थे? जब ऐसा कुछ भी नहीं था, तो इसमें संशोधन क्यों किया गया? आरटीआई संवैधानिक और मौलिक अधिकार है। लिहाजा, इसमें संशोधन की जरूरत थी ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि आरटीआई हर व्यक्ति का संवैधानिक और मौलिक अधिकार है।

आरटीआई (संशोधन) बिल का लगातार विरोध हो रहा है, इसके क्या कारण हैं?

हबीबुल्लाह : विरोध का सबसे बड़ा कारण है कि इससे सूचना आयुक्त कमजोर हो जाएंगे। उनकी नियुक्ति से लेकर वेतन-भत्ते तक सब सरकार तय करेगी। पहले सरकार के पास यह अधिकार नहीं था। इससे आयुक्तों की स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है।

आरटीआई (संशोधन) बिल किस तरह आरटीआई कानून को कमजोर कर रहा है?

हबीबुल्लाह : सूचना आयोग या सूचना आयुक्त जो पहले संवैधानिक पद या संस्था थे, अब वे केंद्र सरकार के अधीन हो जाएंगे। जो आयुक्त पहले जनता की प्रति जवाबदेह थे, वे अब सरकार के प्रति जवाबदेह हो जाएंगे। सरकार भले ही कह रही है कि संशोधन से आरटीआई कानून का दुरुपयोग नहीं होगा, लेकिन सरकार ने इस कानून के दुरुपयोग का रास्ता खोल दिया है। हो सकता है कि मौजूदा सरकार इस कानून का दुरुपयोग न करे, लेकिन भविष्य में अगर दूसरी सरकार आती है तो वह इसका दुरुपयोग नहीं करेगी, यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।

आरटीआई (संशोधन) बिल के पास होने पर क्या फायदे और क्या नुकसान होंगे?

हबीबुल्लाह : मुझे इस संशोधित कानून का कोई फायदा तो नजर नहीं आता, लेकिन इससे नुकसान जरूर हो सकता है। क्योंकि इससे न सिर्फ सरकारी कर्मचारियों की स्वतंत्रता को खतरा है, बल्कि सूचना से जुड़ा कामकाज देख रहे सरकारी कर्मचारियों के अपने वरिष्ठ अफसरों के सामने झुकने की भी आशंका है। सूचना आयोग एक संवैधानिक संस्था है, लेकिन संशोधन से यह संस्था कमजोर हो सकती है।

सरकार के पास अधिकार आने से क्या आयुक्तों को उनके पद से कभी भी हटाया जा सकता है?

हबीबुल्लाह : पहले मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास था। लेकिन अब यह अधिकार भी केंद्र सरकार के पास आ गया है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या सरकार जब चाहे तब आयुक्तों को उनके पद से हटा सकती है? इस बारे में तभी कुछ कहा जा सकता है जब तक सारे नियमों को अंतिम रूप नहीं दे दिया जाता।

केंद्र सरकार के पास अधिकार आने से क्या सरकार से जुड़ी जानकारी मांगने में दिक्कत हो सकती है?

हबीबुल्लाह : आरटीआई के जरिए सरकार से जुड़े फैसलों और उनके कामकाज की जानकारी लेने में पहले भी दिक्कत होती थी। आरटीआई लगने पर किसी बात की जानकारी देने पर आखिरी फैसला सूचना आयोग करता था, लेकिन अब उसी आयोग की स्वतंत्रता कमजोर होने का खतरा रहेगा।

क्या आरटीआई (संशोधन) बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?

हबीबुल्लाह : ऐसी बहस चल रही है कि आरटीआई (संशोधन) बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि यह अब एक संवैधानिक समस्या बन गई है। सरकार को भी आयोग की शक्ति कम करने से पहले सुप्रीम कोर्ट से विचार-विमर्श करना था। अगर इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलती है और सुप्रीम कोर्ट सरकार से इस कानून से संशोधन हटाने को कहती है, तो सरकार को इसे अमल करना होगा।

आरटीआई कानून में और क्या संशोधन हो सकते हैं?

हबीबुल्लाह : आरटीआई कानून में अब संवैधानिक शक्ति की आवश्यकता है, क्योंकि इसमें न सिर्फ सरकार, बल्कि जनता और मीडिया भी हिस्सेदार है। अगर इस कानून को और शक्तिशाली बनाना है तो इसमें जनता की भागीदारी होनी चाहिए। इस बिल को सरकार ने जल्दबाजी में पास करा लिया, लेकिन इसे पास करने से पहले जनता से विमर्श जरूर करना चाहिए था। अगर जनता इसमें कोई संशोधन सुझाती, तो वे संशोधन होने चाहिए थे, क्योंकि यह कानून जनता का अधिकार है।

आरटीआई (संशोधन) बिल में क्या है?

आरटीआई कानून की धारा 13, 16 और 27 में संशोधन किया गया है। यह वे धाराएं हैं, जिनमें मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन और भत्ते तय किए जाते हैं।

पहले मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री का पैनल आरओआई क्या है? करता था। संशोधन के बाद अब केंद्र सरकार ही इनकी नियुक्ति करेगी। पहले आयुक्तों का कार्यकाल 5 साल या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) होता था, लेकिन अब इनका कार्यकाल भी केंद्र सरकार ही तय करेगी।

आरटीआई कानून

पहले क्या था?

अब क्या होगा?

पहले मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त (केंद्र और राज्य स्तर के) का कार्यकाल 5 साल या 65 वर्ष तक आयु तक होता था।

अब इनका कार्यकाल तय नहीं होगा। केंद्र सरकार जब चाहे इन्हें हटा सकती है।

मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त के बराबर होता था। इसी तरह राज्य मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन राज्य के चुनाव आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त का वेतन राज्य के मुख्य सचिव के बराबर होता था।

अब मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों का निर्धारण केंद्र सरकार करेगी।

मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बना सदस्यीय पैनल करता था। इसमें प्रधानमंत्री के अलावा कैबिनेट मंत्री और विपक्षी पार्टी का नेता या विपक्ष का नेता शामिल होता था।

इसी तरह से राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की नियुक्ति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बना पैनल करता था। इसमें मुख्यमंत्री के अलावा एक मंत्री और विपक्षी पार्टी का नेता या विपक्ष का नेता शामिल होता था।

अब मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त (केंद्रीय और राज्य स्तर दोनों) की नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी।

मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त को उनके पद से हटाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास था। राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त को उनके पद से हटाने का अधिकार राज्यपाल के पास था।

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