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Cloudburst: बादल कब और कैसे फटता है, क्या है बादल फटने का कारण?
बादल फटने की घटनाएं (Cloudburst) आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में देखी जाती है. बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है और इसके पीछे के कारण को भी हम समझ नहीं पाते हैं.
By इंडिया रिव्यूज डेस्क Last updated Sep 26, 2022 400 0
केदारनाथ, अमरनाथ में बादल फटने (Cloudburst) की घटना आपने देखी होगी. इसके अलावा भी कई जगह पर बादल फटने से भारी नुकसान होता है. बादल फटने की (Badal Fatna Kya hai?) वजह से आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही लोगों की जान भी चली जाती है.
बादल फटने की घटनाएं आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में देखी जाती है. बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है और इसके पीछे के कारण को भी हम समझ नहीं पाते हैं.
बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?)
बादल फटना यही नाम हम बचपन से अभी तक सुनते आ रहे हैं और इसे सुनकर ऐसा लगता है जैसे मानों बादल का कोई टुकड़ा आकर कहीं एकदम से गिर गया हो. लेकिन ऐसा नहीं है. बादल फटने का मतलब कुछ और होता है.
बादल फटने का मतलब होता है (meaning of cloudburst) अचानक से किसी स्थान पर बहुत तेज बारिश हो जाना. अब तेज का मतलब आपके शहर में होने वाली तेज बारिश नहीं बल्कि उससे भी काफी ज्यादा. इतनी ज्यादा बारिश की एक से दो घंटे में 20 से 30 वर्ग किमी जगह को पूरी डूबा दे.
किसी तेज बारिश को बादल फटना तब माना जाता है जब वो बारिश एक घंटे में 100 MM या उससे ज्यादा हो. किसी स्थान पर 100 MM बारिश के होने का मतलब होता है एक मीटर लंबी और चौड़ी जगह में 100 लीटर पानी का गिरना.
जब इतना पानी कई किमी जगह में एक साथ गिरता है तो आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि वहाँ कितना पानी बरसा होगा. अगर एक वर्ग किमी जगह में ही 100 MM वर्षा हो जाए तो वहाँ एक घंटे में 10 करोड़ लीटर पानी बरस जाएगा. अब आप सोचिए कि यदि यही पानी 30 वर्ग किमी में बरसे तो कितना होगा.
बादल कब और कहाँ फटते हैं? (Why does a cloudburst happen?)
बादल फटने की घटना आमतौर पर मानसून के मौसम में देखी गई है. भारत में ये घटना आमतौर पर जुलाई से अक्टूबर-नवंबर तक देखी गई है. बादल फटने की घटना उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में ज्यादा देखने को मिलती है.
साल 2013 में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में बादल फटने की घटना को सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा में से एक बताया जाता है. इसमें 5000 लोगों की मौत हो जाने की बात कही जाती है.
भारत में बादल फटने की घटना हिमालय के आसपास वाले इलाकों में देखी गई है. यहाँ हिमालय के आसपास ऊंचे क्षेत्रों में बादल ज्यादा फटते हैं.
बादल फटने के कारण? (Reason of Cloudburst)
बादल फटने के कारण को जानने के लिए पहले हम ये जानते हैं कि बारिश कैसे होती है. हम सभी ने स्कूल में पढ़ा है कि समुद्र सूरज की गर्मी से भाप बनाता है जो बादल बनते हैं. ये बादल हवाओं के साथ बहकर जमीन वाले एरिया पर आते हैं.
जब ये धरती पर आते हैं तो हम कहते हैं कि मानसून आ गया. गर्मी के कारण बादल हल्के होते हैं लेकिन जब ये धरती पर आते हैं और ठंडे होते हैं तो ये बादल बूंदों में बदलने लगते हैं, इसे ही बारिश कहते हैं.
दूसरी ओर भारत में जो मानसून आता है वो दक्षिण राज्यों से आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? आता है. मानसून के रूप में ये बादल हिमालय तक जाते हैं और वहाँ इकट्ठा हो जाते है क्योंकि हिमालय काफी ऊंचा क्षेत्र है. ये बादल हिमालय से टकराकर भारी मात्रा में एक जगह पर जमा हो जाते हैं. इसमें एक समय ऐसा आता है जब ये किसी इलाके पर मंडराते हुए किसी पानी से भरी थैली की तरह फट जाते हैं.
इस घटना को ही ‘बादल का फटना’ कहते हैं.
तेज बारिश और बादल फटने में क्या अंतर है? (Difference between cloudburst & heavy rain?)
तेज बारिश और बादल फटने में जमीन आसमान का अंतर है. तेज बारिश का मतलब ये हो सकता है कि किसी स्थान पर बहुत ज्यादा पानी गिरा हो. लेकिन वो बारिश कितने घंटे में हुई और कितना पानी गिर इस पर निर्भर होती है. तेज बारिश में एक दम से 100 MM बरसात नहीं होती है.
बादल फटने का मतलब होता है कि एकदम से बहुत तेज पानी गिर जाना. जैसे ऊपर से किसी ने एकदम से बहुत सारा पानी छोड़ दिया हो, जो आपके या किसी के भी नियंत्रण से बाहर आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? हो. आमतौर पर 100 MM से ज्यादा बारिश को बादल फटने की श्रेणी में माना जाता है.
बादल फटने की प्रमुख घटनाएं (Important Cloudburst Accident in India)
भारत में बादल फटने की घटना कई बार हो चुकी हैं. इनमें से प्रमुख घटनाएं हैं.
– 28 सितंबर 1908 को बादल फटने के कारण मुसी नदी पर बाढ़ आ गई थी, जिस वजह से करीब 15 हजार लोग मारे गए थे.
– 15 अगस्त 1997 को हिमाचल प्रदेश के शिमला आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? के चिरगाव में बादल फटने से 115 लोगों की मौत हुई थी.
– 17 अगस्त 1998 को मालपा गाँव में बादल फटने और भूस्खलन की वजह से 250 लोगों की मौत हुई थी.
– 6 जुलाई 2004 को बद्रीनाथ में बादल फटने से 17 लोग मारे गए थे.
– 16 अगस्त 2007 को हिमाचल प्रदेश के घनवी में बादल फटने के कारण 52 लोगों की मौत हुई थी.
– 6 अगस्त 2010 को जम्मू कश्मीर के लेह में बादल फटने के कारण 179 लोगों की मृत्यु हुई थी.
– सितंबर 2010 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में बादल फटने से दो गाँव डूब गए थे, जिसमें काफी कम लोग ही बच पाए थे.
– जून 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने से भीषण त्रासदी हुई थी. इसमें करीब 5 हजार लोगों की मौत हुई थी.
– जुलाई 2022 में ही अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से कई लोगों को मौत हो गई थी.
बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है लेकिन इसका असर सभी पर होता है. ये एक ऐसी घटना है जो सभी के नियंत्रण से बाहर है. कभी-कभी लोगों के लिए इसके प्रकोप से बच पाना भी नामुमकिन हो जाता है.
Maharashtra के 12 जिले के अस्पताल में बेड्स फुल, Lockdown पर फैसला जल्द
Maharashtra के 12 जिले के अस्पताल में बेड्स फुल, Lockdown पर फैसला जल्द
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 13 अप्रैल 2021,
- अपडेटेड 7:43 PM IST
महाराष्ट्र में करीब 12 जिले ऐसे हैं, जहां हर अस्पताल में बेड्स फुल हैं. महाराष्ट्र में 75 फीसदी आईसीयू बेड्स भी फुल हैं. कोरोना के मामले इस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, कि स्थिति भयावह होती नजर आ रही है. अगर कोरोना संक्रमण नहीं रुका तो स्थिति बेहद गंभीर हो जाएगी. महाराष्ट्र में अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो लॉकडाउन जल्द लागू हो सकता है. लॉकडाउन लगाने के लिए सरकार तैयारी भी कर रही है. देखें वीडियो.
More than 12 hospitals across Maharashtra were left without ventilator beds and ICU beds as Covid-19 cases surge across the state. Covid-19 cases in India continue to surge. Maharashtra, the biggest contributor, saw a slight improvement in its figures on Monday, perhaps attributable to the weekend lockdown that has been put in place in the state. The state is yet to take a call on whether to implement a complete lockdown. Watch this video.
क्या अत्यधिक सकारात्मकता हानिकारक है - विषाक्त सकारात्मकता
जीवन में सकारात्मक होना अच्छा ही नहीं, बल्कि जरूरी भी है । मुश्किल घड़ियों में सकारात्मकता की छोटी सी किरण आपके हौसले को वापस जिंदा कर सकती आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? है। लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि सुख और दुख जीवन की अभिन्न अंग है। कई बार दुख व्यक्त करना बहुत आवश्यक होता है। ऐसे में भी हर वक्त केवल सकारात्मकता की बात करना अच्छे से अधिक नुकसानदेह साबित हो जाता है।
क्या है विषाक्त सकारात्मकता?
आवश्यकता से अधिक सकारात्मकता विषाक्त सकारात्मकता है। ऐसे वक्त आते हैं, जहां आप अपनी समस्याओं के बारे में बात करना चाहते हैं, उन्हें व्यक्त करना चाहते हैं लेकिन हर पल सकारात्मक रहने का विचार आपको ऐसा करने नहीं देता। आपने तय कर लिया होता है, कि आप बुरी चीजों के बारे में ना तो सोचेंगे, ना तो बात करेंगे। इससे आपके मन का दुख आपके मन के अंदर ही दब जाता है । आप बाहर से तो यह दिखाते हैं कि सब कुछ ठीक है, लेकिन दबी हुई भावनाएं आपको अंदर ही अंदर परेशान करती रहती हैं। यही है विषाक्त सकारात्मकता।
एक और पहलू पर गौर करें। आजकल सकारात्मकता ट्रेंड सा बन गया है। हम हमेशा अच्छी बातें करने एवं अच्छा सोचने के लिए कहते हैं, बिना यह जाने कि सामने वाला व्यक्ति किन परिस्थितियों से जूझ रहा है। इससे दूसरों तक संदेश जाता है कि आप केवल अच्छी बातें सुनना चाहते हैं, उनकी समस्याओं को नहीं। परिणामस्वरूप व्यक्ति अपनी समस्याओं को आपके साथ साझा नहीं कर पाता है। आपकी सकारात्मकता दूसरों के लिए विष बन जाती है।
तो दोस्तों, सकारात्मकता और विषाक्त सकारात्मकता के बीच के अंतर को समझें। जीवन में बुरी बातों को भी साथ देना पड़ता है। सकारात्मक होने की दौड़ में कब आप टॉक्सिक पॉजिटिविटी के शिकार हो जाते हैं, आपको पता भी नहीं चलता। अतः सतर्क रहें।
Investment Tips: बुढ़ापे में चाहते हैं बड़ी रकम तो जरूरी है यह बात
नवभारत टाइम्स 18-11-2022
मुंबई
: आप भविष्य (Future) के लिए कुछ रकम जमा करना चाहते हैं। तो निवेश में अनुशासन (Investment Discipline) एक जरूरी चीज है। यदि आप इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं तो आपका निवेश कार्यक्रम (Investment Programme) पटरी से उतर सकता है। आप यदि किसी लक्ष्य के लिए निवेश कर रहे हैं तो आपको इस बात को गांठ बांधने में ही भलाई है।
लंबे समय तक बनाए रखें अनुशासन
प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे ने एक बार कहा था, "स्वतंत्रता स्वयं के प्रति जिम्मेदार होने की इच्छा है"। यह भावना आज भी प्रासंगिक बनी हुई है और निवेश की आदतों से आसानी से जुड़ जाती है। निवेश आपके स्वयं के प्रति जिम्मेदार होने का एक उप-उत्पाद है। इसका आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? अहसास आपके निवेश में अनुशासन पैदा करने में मदद करता है। म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर वैभव अंकुश राणे कहते हैं कि हालांकि, अक्सर निवेशक अपने निवेश में लंबे समय तक चलने वाले अनुशासित दृष्टिकोण का प्रदर्शन करने में असमर्थ होते हैं। नतीजतन, न तो वे धन का सृजन करते हैं और न ही वे वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त कर पाते हैं।
एसआईपी है आदर्श उपकरण
सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान या एसआईपी (SIP) दशकों से लंबी अवधि के धन सृजन के लिए अनुशासन निवेश के पर्याय के रूप में एक आदर्श उपकरण के रूप में उभरा है। राणे बताते हैं कि आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एमएफ ने एसआईपी में एक बूस्टर फीचर जोड़ा है जिसे आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल फ्रीडम एसआईपी कहा जाता है। वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए यह एक उत्कृष्ट निवेश सुविधा है। फ्रीडम एसआईपी न केवल एसआईपी के अनुशासन को सुनिश्चित करता है बल्कि जब एसडब्ल्यूपी के माध्यम से निकासी की बात आती है तो अनुशासनात्मक दृष्टिकोण भी जोड़ता है।
जितनी लंबी अवधि, उतनी अधिक रकम
एसआईपी अनिवार्य रूप से तीन भागों में काम करता है - एक स्रोत योजना में एसआईपी कार्यकाल के दौरान अपना धन बढ़ाएं, कार्यकाल के बाद लक्ष्य योजना पर स्विच करें और अंत में निवेशकों को गुणक प्रभाव के साथ एसडब्ल्यूपी के माध्यम से मासिक आय के रूप में लाभ प्राप्त करने दें। यदि एसआईपी राशि 10 साल के लिए 10,000 रुपये है, तो निकासी एसआईपी राशि का 1.5 गुना होगी, जो 15,000 रुपये में बदल जाती है। इसी तरह, 15, 20, 25 और 30 साल की अवधि के लिए गुणक क्रमशः 3 गुना, 5 गुना, 8 गुना और 12 गुना होगा।
दूसरी आमदनी का शक्तिशाली स्रोत
फ्रीडम एसआईपी के माध्यम से निवेश करने से दूसरी आमदनी के लिए एक शक्तिशाली स्रोत खुल सकता है। आपके पास यह चुनने का विकल्प है कि आप कब सेवानिवृत्त होना चाहते हैं, और यह भी तय कर सकते हैं कि आपको अपनी दूसरी आय से कितनी राशि की आवश्यकता होगी। आपकी भविष्य की योजनाओं के आधार पर, आप एक व्यवस्थित निकासी योजना राशि चुन सकते हैं और इसे अपने फ्रीडम एसआईपी से जोड़ सकते हैं।