विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली

स्थिर मुद्रा क्या है

स्थिर मुद्रा क्या है
क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने के पक्ष में रिजर्व बैंक (File Photo)

मुद्रास्फीति क्या है?

सरल शब्दों में कहें तो, एक निश्चित अवधि में मूल्यों की उपलब्ध मुद्रा के सापेक्ष वृद्धि मुद्रा स्फीति या महंगाई कहलाती है| सम्बंधित रूप में कहें तो, पहले की तुलना में रूपए की क्रय क्षमता आज बहुत कम है|

एक उदाहरण के ज़रिये आइये इसे बेहतर समझें| मान लीजिये आज एक प्लेट छोले मसाला आप Rs.100/- में खरीदते हैं| सालाना मुद्रास्फीति अगर 10% मानकर चलें, यही छोले अगले साल आप Rs.110/- में खरीद पायेंगे| आपकी आमदनी अगर तुलनात्मक रूप से कम से कम इतनी भी नहीं बढ़ती है, आप इसे या इस प्रकार की स्थिर मुद्रा क्या है अन्य वस्तुओं को खरीदने की स्थिति में नहीं होंगे, है न?

मुद्रास्फीति निवेशकों को इस बात से सामना कराती है कि उनके वर्तमान जीवन स्तर को कायम रखने के लिए उनके निवेशों का प्रतिफल दर क्या होना चाहिए| उदाहरण स्वरुप, किसी निवेश में अगर प्रतिफल 4% रहा और मुद्रास्फीति 5% रही, वास्तविक निवेश प्रतिफल -1% माना जाएगा (5%-4%)

म्यूच्यूअल फंड्स आपको ऐसे विकल्प स्थिर मुद्रा क्या है प्रदान करते हैं, जिनमें महंगाई को मात कर प्रतिफल देने की क्षमता है! उपयुक्त म्यूच्यूअल फंड्स स्थिर मुद्रा क्या है में निवेश करने से लम्बी अवधि में क्रय शक्ति को सुरक्षित करना मुम्किन है.

Cryptocurrency News: क्या क्रिप्टोकरेंसी पर लग जाएगा प्रतिबंध? जानिए क्या बताया निर्मला सीतारमण ने

आरबीआई (Reserve Bank of India) ने 6 अप्रैल 2018 को एक परिपत्र (RBI Circular) भी जारी किया जिसमें अपनी विनियमित संस्थाओं को वर्चुअल करेंसी (Virtual Currency) में व्यापार करने या निपटान में किसी भी व्यक्ति या संस्था को सुविधा प्रदान करने के लिये सेवाएं प्रदान करने पर रोक लगाई थी।

Reserve Bank in favor of banning cryptocurrencies (File Photo)

क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित स्थिर मुद्रा क्या है करने के पक्ष में रिजर्व बैंक (File Photo)

नई दिल्ली: क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने सोमवार को लोकसभा में बताया कि किसी देश की मौद्रिक (Monetary) और राजकोषीय (Fiscal) स्थिरता पर क्रिप्टोकरेंसी के अस्थिर प्रभाव से जुड़ी चिंताओं के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस क्षेत्र पर कानून बनाने की सिफारिश की है। वित्त मंत्री के अनुसार आरबीआई का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

राजकोषीय स्थिरता पर दुष्प्रभाव
उन्होंने बताया कि फिएट मुद्राओं का मूल्य मौद्रिक नीति और वैध मुद्रा के रूप में उनकी स्थिति पर निर्भर होता है हालांकि क्रिपटोकरेंसी का मूल्य पूरी तरह से अटकलों एवं उच्च रिटर्न की उम्मीदों पर निर्भर करता है जो स्थिर है। उन्होंने कहा कि इसलिए किसी देश की मौद्रिक और राजकोषीय स्थिरता पर इसका एक अस्थिर प्रभाव होगा। गौरतलब है कि फिएट मनी सरकार द्वारा जारी एक मुद्रा है। इसका अपना कोई मूल्य नहीं है, लेकिन इसका मूल्य सरकारी नियमों से लिया गया है।

रिजर्व बैंक की क्या है सिफारिश
सीतारमण ने बताया कि स्थिर मुद्रा क्या है किसी देश की मौद्रिक और राजकोषीय स्थिरता पर क्रिप्टोकरेंसी के अस्थिर प्रभाव संबंधी चिंताओं के मद्देनजर आरबीआई ने इस क्षेत्र पर कानून बनाने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, ‘‘ आरबीआई का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।’’ उन्होंने बताया कि आरबीआई ने 24 दिसंबर 2013, एक फरवरी 2017 और पांच दिसंबर 2017 को सार्वजनिक नोटिसों के माध्यम से डिजिटल करेंसी के उपयोगकर्ताओं, धारकों और व्यापारियों को आर्थिक, वित्तीय, कानूनी, ग्राहक सुरक्षा और सुरक्षा संबंधी जोखिमों स्थिर मुद्रा क्या है से आगाह कर रहा है।

वर्चुअल करेंसी पर क्या
सीतारमण ने कहा कि आरबीआई ने 6 अप्रैल 2018 को एक परिपत्र भी जारी किया जिसमें अपनी विनियमित संस्थाओं को वर्चुअल करेंसी में व्यापार करने या निपटान में किसी भी व्यक्ति या संस्था को सुविधा प्रदान करने के लिये सेवाएं प्रदान करने पर रोक लगाई थी। उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त, आरबीआई ने 31 मई, 2021 के परिपत्र के माध्यम से अपनी विनियमित संस्थाओं को डिजिटल करेंसी में लेनदेन के लिए ग्राहक की यथोचित परिश्रम प्रक्रियाओं को जारी रखने के लिये विभिन्न मानकों के अनुरूप कार्य के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के प्रासंगिक प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने की सलाह दी है।

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने स्थिर मुद्रा क्या है वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.

अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.

अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.

आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.

डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

हिंदी में पर्सनल फाइनेंस और शेयर बाजार के नियमित अपडेट्स के लिए लाइक करें हमारा फेसबुक पेज. इस पेज को लाइक करने के लिएयहां क्लिक करें

दुर्लभ मुद्रा

कठोर मुद्रा वह धन है जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर राष्ट्र द्वारा जारी किया जाता है। उन्हें सेवाओं और वस्तुओं के भुगतान के रूप में दुनिया भर में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है और उन्हें घरेलू मुद्रा पर प्राथमिकता दी जा सकती है।

Hard Currency

एक कठिन मुद्रा को थोड़े समय की अवधि में अपेक्षाकृत स्थिर होने और विदेशी मुद्रा या विदेशी मुद्रा में अत्यधिक तरल होने का अनुमान हैमंडी. मूल रूप से, ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (AUD), कैनेडियन डॉलर (CAD), स्विस फ़्रैंक (CHF), ब्रिटिश पाउंड (GBP), जापानी येन (जेपीवाई), यूरोपीय यूरो (ईयूआर), यूएस डॉलर (यूएसडी) दुनिया में सबसे अधिक व्यापार योग्य मुद्राएं हैं।

उनमें से सभी अंतरराष्ट्रीय व्यवसायों और निवेशकों का विश्वास रखते हैं क्योंकि वे नाटकीय प्रशंसा के लिए प्रवृत्त नहीं हैं यामूल्यह्रास. चूंकि इसे दुनिया की विदेशी आरक्षित मुद्रा का दर्जा मिला है, इसलिए अमेरिकी डॉलर विशेष रूप से बाहर खड़ा है।

इसी मुख्य कारण से इस मुद्रा में कई अंतरराष्ट्रीय लेनदेन पूरे होते हैं। उसके ऊपर, यदि किसी देश की मुद्रा में नरमी आने लगती है, तो नागरिक अपने पास मौजूद धन की रक्षा के लिए अमेरिकी डॉलर और अन्य सुरक्षित मुद्राएं रखना शुरू कर देंगे।

कठिन मुद्रा उदाहरण

हार्ड करेंसी के समूह के भीतर, ऑस्ट्रेलियाई और कनाडाई डॉलर कमोडिटी की कीमतों के प्रति काफी संवेदनशील हैं; हालांकि, वे उन देशों की तुलना में बेहतर तरीके से गिरावट से गुजरते हैं जो वस्तुओं पर निर्भर हैं।

उदाहरण के लिए, 2014 में ऊर्जा की कीमतों में गिरावट ने कनाडा और ऑस्ट्रेलियाई दोनों बाजारों पर नकारात्मक प्रभाव डाला, लेकिन यह रूसी रूबल के लिए और भी बुरा था। ऐसा कहने के बाद, किसी देश की मुद्रा में मूल्यह्रास आम तौर पर धन की आपूर्ति में वृद्धि या सरकारी, वित्तीय या आर्थिक चिंताओं के कारण भविष्य की क्षमता में विश्वास की कमी के कारण होता है।

नरम या अस्थिर मुद्रा का एक दिलचस्प उदाहरण अर्जेंटीना पेसो है, जिसने डॉलर के मुकाबले 2015 में अपने मूल्य का लगभग 34.6% खो दिया; इसे विदेशी निवेशकों के लिए सबसे अनाकर्षक विकल्प बनाना।

अधिकतर, मुद्रा का मूल्य रोजगार और जीडीपी जैसी आर्थिक अनिवार्यताओं पर आधारित होता है। अमेरिकी डॉलर की अंतरराष्ट्रीय मजबूती अमेरिका की जीडीपी को दर्शाती है, स्थिर मुद्रा क्या है जो दुनिया में पहले स्थान पर है।

जबकि चीन दूसरे स्थान पर है, भारत सातवें स्थान पर है; हालाँकि, न तो भारतीय रुपया और न ही चीनी युआन को कठोर मुद्रा माना जाता है।

रेटिंग: 4.58
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 474
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *