Dividend क्या होता है?

दोस्तों Dividend कंपनी के लाभ का वो हिस्सा है. जो कंपनी अपने शेयर होल्डर्स यानि के जो उसके शेयर पर मालिकाना कुछ% अधिकार रखता है. उसको प्रॉफिट के रूप में देती हैं. यानि जैसे अपने किसी कंपनी के शेयर खरीदे है. मान लीजिये 10 शेयर ख़रीदे है. अब जब कंपनी को अपनी कंपनी में प्रॉफिट हुआ तो जितने% आप कंपनी का मालिकाना अधिकार रखते है तो प्रॉफिट का जितने % आपके हिस्से में आता है वो कंपनी आपको उतना ही प्रॉफिट देती है तो उसे शेयर मार्केट में Dividend कहते हैं। सिर्फ कुछ ही कंपनियां Dividend देती हैं.और ये पर शेयर के हिसाब से दिया जाता है. इन्वेस्टर को ये डिविडेंड का पैसा 3 महीने में या साल बेसिस पर मिलता है।और जो कंपनियां Dividend नहीं देती हैं वह अपने बचे हुए प्रॉफिट को वापस से कंपनी की ग्रोथ में लगा देती है.
Dividend क्या होता है?
लाभांश (Dividends): एक लाभांश एक निगम द्वारा अपने शेयरधारकों को भुगतान किया जाता है, जो आमतौर पर मुनाफे के वितरण के रूप में होता है। जब एक निगम लाभ या अधिशेष अर्जित करता है, तो निगम व्यवसाय में लाभ को फिर से निवेश करने और शेयरधारकों को लाभांश के रूप में लाभ के अनुपात का भुगतान करने में सक्षम होता है।
एक लाभांश मुनाफे का हिस्सा है और एक कंपनी द्वारा अपने शेयरधारकों को भुगतान की गई कमाई को बरकरार रखा जाता है। जब कोई कंपनी लाभ कमाती है और बरकरार रखी गई कमाई जमा करती है, तो उन आय को व्यापार में पुनर्निवेश किया जा सकता है या शेयरधारकों को लाभांश के रूप में भुगतान किया जा सकता है।
शेयर की कीमत से विभाजित प्रति शेयर वार्षिक लाभांश लाभांश उपज है। एक कंपनी द्वारा अपने शेयरधारकों को अपने लाभ (या भंडार) से नियमित रूप से (आमतौर पर सालाना) भुगतान किया जाता है।
प्रस्तावित लाभांश (Proposed Dividend)।
निदेशकों द्वारा सुझाए गए लाभांश को "प्रस्तावित लाभांश" के रूप में जाना जाता है। जब तक अन्यथा नहीं कहा जाता है, दी गई दर पर लाभांश की गणना भुगतान की गई पूंजी पर की जाती है और यह (प्रस्तावित Dividend क्या होता है? लाभांश की राशि) लाभ और हानि विनियोग खाते में डेबिट की जाती है और "प्रावधान" शीर्षक के तहत बैलेंस शीट के देयता पक्ष पर दिखाया जाता है।
एक अंतरिम लाभांश दो वार्षिक आम बैठकों के बीच किसी भी समय निदेशकों द्वारा भुगतान किया गया लाभांश होता है। यह हमेशा लाभ और हानि विनियोग खाते में डेबिट किया जाता है। अंतरिम लाभांश का भुगतान आमतौर पर छह महीने की अवधि के लिए किया जाता है। इसकी गणना लाभांश की दर की भाषा पर निर्भर करती है।
मुनाफे के लिए अंतिम आंकड़े उपलब्ध होने पर निदेशक एक और लाभांश की सिफारिश कर सकते हैं। इस तरह के लाभांश को अंतिम लाभांश के रूप में जाना जाता है। जब अंतिम लाभांश घोषित किया जाता है, तो अंतरिम लाभांश समायोजित नहीं किया जाता है जब तक कि संकल्प अन्यथा निर्दिष्ट नहीं करता है।
लाभांश क्या है? | लाभांशों का कर निर्धारण | Dividend in Hindi
लाभांश (Dividend in Hindi)
लाभांश (Dividend)- साधारण भाषा में लाभांश का अर्थ लाभों का एक हिस्सा होता है। लाभांश अंशधारियों को उनके अंशों के अनुपात में मिलता है। लाभांश की राशि कम्पनी अपने गत वर्ष अथवा चालू वर्ष के लाभों में से बाँटती हैं, यदि लाभांश अंशों के रूप में बाँटा जाता है तो उसे बोनस अंश कहते है।
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लाभांशों का कर निर्धारण (Taxation of Dividends )
[ धारा 2 (22) तीन प्रकार का होता है-
1. भारतीय कम्पनी अथवा घरेलू कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश ।
2. विदेशी कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश ।
3. यू.टी.आई. UTI या अन्य कई आय ।
लाभांशों को कुल आय में शामिल करने के लिए धारा 8 के निम्नलिखित प्रावधान हैं
1. अन्तिम लाभांश या सामान्य (वार्षिक) लाभांश- इस लाभांश को उस वर्ष की कर-मुक्त आय माना जायेगा जिस वर्ष में इसे घोषित अथवा बाँटा गया हो। ऐसे लाभांश की घोषणा कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा में की जाती है।
2. माना गया लाभांश- उस वर्ष के लिए कर मुक्त होगा जिस वर्ष इसे बाँटा या वितरित किया जाता है।
3. अन्तरिम लाभांश- ऐसा लाभांश वर्ष के बीच में ही (वार्षिक साधारण सभा से पहले) घोषित किया जाता है। अन्तरिम लाभांश को गत वर्ष की आय समझा जाता है।
लाभांश के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Points related to dividend) –
1. अंकित मूल्य पर लाभांश मिलना-अंशधारियों को लाभांश अंकित मूल्य पर चुकाया जाता है।
2. लाभांश के विभिन्न रूप- यह आवश्यक नहीं है कि कम्पनी नकदी में ही लाभांश Dividend क्या होता है? का भुगतान करे। कम्पनी लाभांश के लिए प्रतिभूति, अंश या अन्य वस्तु का भुगतान कर सकती है।
3. गत वर्ष का निर्धारण-लाभांश उस गत वर्ष की आय माना जाता है जिस वर्ष में इसे घोषित या वितरित किया गया हो ।
भुगतान जो लाभांश में शामिल माने जाते हैं (Payments considered Included in dividend) –
1. अंशधारियों को किया गया कोई वितरण, जिससे कम्पनी की सम्पत्तियाँ कम हो जायें।
2. अंशधारियों को दिये गये बोनस अंश एकत्रित लाभों की सीमा तक तथा अंशधारियों को वितरित किये गये ऋणपत्र, ऋणपत्र स्टॉक तथा डिपॉजिट सर्टीफिकेट |
3. अंश पूँजी की कटौती के रूप में किया गया कोई वितरण ।
4. अंशधारियों को दिया गया कोई वितरण, जो समापन से पहले के एकत्रित लाभों की सीमा तक हो ।
जिस अंशधारी का नाम कम्पनी के सदस्यों के रजिस्टर में अंकित है वही अंशधारी लाभांश पर आयकर चुकाता है ।
लाभांश की आय में से व्यय के लिये कटौती धारा 57 (i) और 57 (iii)] धारा 115-0 के अतिरिक्त सभी सकल लाभांश आय में से निम्न कटौती दी जा सकती है-
Dividend क्या है ?
Dividend कम्पनी का जो भी नेट प्रॉफिट हुआ है, उसमे से शेअर होल्डर्स को देना | यानी कम्पनी के ग्रॉस इनकम से सभी तरह के खर्चे और टेक्स इत्यादि काटने के बाद जो प्रॉफिट बचता है, जिसमे से किसी और तरह का खर्चा नही निकालना बाकी रह जाता है, उसे नेट प्रॉफिट कहते है | यानी की शुद्ध लाभ, प्रॉफिट ऑफ्टर टेक्स या नेट प्रॉफिट |
अब सवाल यह उठता है की अगर आपके पास सिर्फ 10 शेअर्स हैं और आप देखते हैं की कम्पनी ने 500 करोड़ रूपये का लाभ कमाई है, तो इसका क्या मतलब समझें ?
दरअसल आपको नेट प्रॉफिट की बजाय EPS देखना चाहिए | EPS का मतलब है अर्निंग पर शेअर यानी प्रति शेअर आय (यानी कम्पनी ने एक शेअर पर कितना कमाई की है वह रकम) |
EPS कैसे कॅलक्युलेट किया जाता है ?
कम्पनी के नेट इनकम को टोटल नंबर ऑफ शेअर्स से भाग (बांट) दिया जाता है | उदाहरण के लिए अगर कम्पनी ने नेट प्रॉफिट 100 रूपये कमाई है और कम्पनी के (कुल) टोटल शेअर्स 50 हैं | तो 100 बटा 50 (100/50) = 2 |
यानी कम्पनी ने प्रति शेअर 2 रूपये कमा लिए है | अब ऐसा मत सोचिए की कम्पनी ने प्रति शेअर 2 रूपये कमाई है तो 2 रूपये प्रति शेअर के हिसाब से आपको भी (शेअर होल्डर को) मिल जाएगा | ऐसा नहीं है |
अब कम्पनी की बोर्ड मीटिंग होगी और वहाँ पर यह तय किया जाएगा, की EPS का कितना प्रतिशत शेअर होल्डर को देना है | मान के चलते हैं की फैसला होता है की शेअर होल्डर्स को EPS का 50% ही देना है | तो EPS का 50% प्रतिशत यानी की 2 रूपये का 50% प्रतिशत होता है 1 रुपया जो आपको प्रति शेअर मिलेगा | और इसी “1″ रूपए को Dividend कहाँ जाता है |
Dividend कैसे तय होता है ?
सबसे पहले कम्पनी के प्रमोटर्स और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग होती है | इस मीटिंग में यह तय किया जाता है की कितना Dividend शेअर होल्डर को देना है | प्रमोटर्स और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा तय किए हुए डिविडेंड को इंटिरिम (अंतरिम) Dividend कहा जाता है | अब क्यूंकि यह कम्पनी एक पब्लिक कम्पनी है और कम्पनी के मालिक सिर्फ प्रमोटर्स और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ही नहीं है, बल्कि शेअर होल्डर्स भी कम्पनी के मालिक ही है | इसलिए शेअर होल्डर्स का भी एक अधिकार होता है की वो अंतरिम Dividend के साथ सहमत हो |
इसीलिए इंटिरिम डिविडेंड या अंतरिम डिविडेंड की घोषणा के साथ ही शेअर होल्डर्स को वोटिंग राइट भी दिया जाता है | वोटिंग राइट यानी की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने जो भी Dividend तय किया है उसके साथ ही, दो और कीमतें दी जाती है, जिन पर शेअर होल्डर्स को वोटिंग करनी होती है |
Voing of Shareholders
उदाहरण के लिए अंतरिम डिविडेंड EPS का 50% प्रतिशत है यानी की “1” एक रुपया | तो फिर शेअर होल्डर्स को ऑप्शन दिया जाता है, शेअर होल्डर्स निम्न तीन ऑप्शन में से किसी एक ऑप्शन पर वोटिंग (मतदान) करते हैं |
ऑप्शन नंबर (1) | 51% प्रतिशत डिविडेंड दिया जाए | |
ऑप्शन नंबर (2) | 52% प्रतिशत डिविडेंड दिया जाए | |
ऑप्शन नंबर (3) | 53% प्रतिशत डिविडेंड दिया जाए | |
जब वोटिंग पूरी हो जाती है तो ये पता चलता हैं की सबसे ज्यादा वोटिंग “51% प्रतिशत” इस पर हुई है | तो डिविडेंड की रकम रूपये के मामले में बहुत ज्यादा नहीं बदल जाएगी |
Dividend यील्ड क्या होता है?
डिविडेंड यील्ड का अर्थ है कि, शेयर की कीमत पर कंपनी कितने फीसद का डिविडेंड देती है. दूसरे शब्दों में बात करें तो Dividend यील्ड एक ratio है, जो यह दर्शाता है कि कंपनी ने 1 शेयर पर जितना Dividend दिया है. वो कंपनी के वर्तमान मार्केट कीमत का कितना फीसदी (%) है.
उदाहरण― जैसे अगर Vama Industries Ltd कंपनी के शेयर की कीमत ₹100 है और Vama Industries Ltd कंपनी ने 5 रुपये per share का डिविडेंड दिया है.तो कंपनी का Dividend यील्ड होगा। /100) × 100 = 5%
और इसका मतलब है Vama Industries Ltd कंपनी में इन्वेस्टमेंट करने पर आपको साल का 5% का डिविडेंड मिलेगा.
डिविडेंड वाले शेयर में इन्वेस्टमेंट करने के फायदे-
दोस्तों इन्वेस्टर डिविडेंड को लेकर इसीलिए उत्तेजित रहते हैं. क्योंकि शेयर मार्किट में आप लाभ दो तरीके से कमाते हैं―
1 शेयर को कम कीमत में खरीद कर ज्यादा में बेचना
2 . डिविडेंड से .
- निवेशक Dividend देने वाले शेयर में इसलिए निवेश करते हैं. क्योंकि 1, तो शेयर होल्डर्स को हर साल शेयर का जो प्राइस बढ़ेगा उसमे तो प्रॉफिट होगा ही इसके साथ ही एक साल में एक या दो बार एक fixed Amount भी मिलेगा
- दोस्तों कुछ इन्वेस्टर यह भी सोच कर इन्वेस्ट करते हैं कि अगर शेयर कीमत बढ़ेगी भी नहीं तो भी वो अगर 10% डिविडेंड yield वाली कंपनी में इन्वेस्ट कर देते हैं. तब भी FD के 6% से ज्यादा रिटर्न तो कमा ही लेंगे। ये भी डिविडेंड वाली कंपनी में निवेश करने का फायदा है।
- दोस्तों Demat अकाउंट के पोर्टफोलियो में जितने अधिक शेयर होंगे उतना ही ज्यादा आपको Dividend मिलेगा. इसलिए इन्वेस्टर इसे स्टॉक मार्केट से नियमित Income या निष्क्रिय Income कमाने का जरिया भी मानते हैं.
4 शेयर मार्केट में कुछ अच्छे Dividend देने वाले मजबूत स्टॉक भी हैं जैसे; Britania Industries जिसमे इन्वेस्ट करने से आपका पैसा वक़्त के साथ Grow होता रहता है और side में Dividend Income भी मिलती रहता है.
दोस्तों दुनिया के किसी भी अमीर आदमी को देख लो चाहे वो इंडिया के मुकेश अंबानी या गौतम अडानी हों, टेस्ला के Elon Musk, Microsoft के बिल गेट्स या फिर Amazon के जैफ बेजॉस ये सभी इस वजह से आमिर नहीं की, इनकी कंपनियों के अधिक शेयर हैं. दोस्तों ये तो इसलिए आमिर है क्योंकि ये सभी सालाना अपनी कंपनियों से हजारों करोड़ों रुपए की Dividend Income कमाते हैं
Dividend को समझना बहुत जरूरी है-
केवल Dividend से हम किसी भी कंपनी के प्रवर्तक के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं. जैसे; प्रबंधन की प्रकृति,, ईमानदारी, योजनाएँ और वो कंपनी को लेकर कितने Serious है और वो कंपनी को किस नज़र से देखते हैं.
हमें देखना होगा कि कंपनी कैसे Dividend देती है.और उसका Past Dividend Track क्या रहा है.
डिविडेंड आखिर कौन -कौन सी कंपनियां देती हैं?
आपको बता दे की Dividend सदैव वो ही कंपनियां देती है. जो लाभ में होती है.नुकसान में होने वाली कंपनियां कभी भी Dividend नहीं देती है. Dividend वो कंपनियां देती है. जो काफी बड़ी और Mature हो चुकी होती है.और जो नई कंपनियां होती है.वो अपने आगे का फ्यूचर देखती है.और उसकी ग्रोथ में ही सारा प्रॉफिट लगाती है. क्युकी उनको फ्यूचर का कुछ पता नहीं होता. इसके अलावा दोस्तों ऐसा भी नहीं है. की जो कंपनियां डिविडेंड नहीं देती है. तो निवेशक को लाभ नहीं होता है.आपको बता दे की अगर कंपनी अपने लाभ को डिविडेंड देने की बजाय सही जगह लगाकर अपने बिजनेस की ग्रोथ को बढ़ाती जाएगी. तो उसका नेट प्रॉफिट भी बढ़ता रहेगा. इससे अगर लाभ बढ़ेगा तो फायदा भी इन्वेस्टर्स को ही मिलेगा. दोस्तों इसमें 2 तरीके से शेयर होल्डर्स को लाभ मिलेगा ― एक तो कंपनियों का लाभ बढ़ने से शेयर कीमत भी बढेगा और इसका प्रॉफिट शेयर होल्डर को ही मिलेगा.और दूसरा ये भी है की अगर वो कंपनी फ्यूचर में डिविडेंड देती है.तो वह आज के डिविडेंड से बहुत ज्यादा होगा. क्योंकि जब तक आने वाले समय में कंपनी बहुत बड़ी हो चुकी होगी और उसका प्रॉफिट भी बहुत ज्यादा हो चुका होगा.
Dividend kya hota hai?
डिविडेंड का हिंदी मतलब लाभांश होता है | लाभांश दो शब्दों से मिलकर बना है (लाभ + अंश) यानी कि प्रॉफिट का पार्ट | जब कोई कंपनी अपने नेट प्रॉफिट का हिस्सा अपने शेयर होल्डर के साथ शेयर करती है, तो उसे डिविडेंड कहते हैं | डिविडेंड देना या ना देना यह कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर तय करते हैं | डिविडेंड हमेशा फेस वैल्यू पर ही मिलता है, ना कि शेयर के प्राइस पर |
उदाहरण के लिए – मान लीजिए xyz नाम की कोई कंपनी है जिसके एक शेयर की कीमत ₹1,000 है, और कंपनी का फेस वैल्यू ₹10 है, और आपके पास उस कंपनी के 20 शेयर है | तो इस हिसाब से देखें तो 10 * 20 = ₹200 आपको डिविडेंड के रूप में मिलेंगे |
ध्यान दें – ज्यादातर कंपनी अपने फेस वैल्यू को ₹10 ही रखती हैं | इसका सीधा कारण है, कि कैलकुलेशन करने में आसानी रहती है | पर कुछ कंपनी के फेस वैल्यू इससे कम और ज्यादा भी हो सकते हैं |
Dividend के टाइप
Interim Type Dividend | Final Type Dividend |
जब कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स कंपनी का quarter रिजल्ट डिस्कस करते हैं, और अगर कंपनी ने अच्छा परफॉर्म किया है | तब आपको जो डिविडेंड मिलता है, उसे interim डिविडेंड कहते है, यह साल में एक बार भी मिल सकता है या कई बार भी मिल सकता है | | जब कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर कंपनी की एनुअल रिपोर्ट / रिजल्ट AGM(Annual General Meeting) में डिस्कस करते हैं, और अगर कंपनी ने अच्छा परफॉर्मेंस किया है, तब आपको जो डिविडेंड मिलता है, उसे final डिविडेंड कहते है | |
Interim type में डिविडेंड कम मिलता है, Final type डिविडेंड के कंपैरिजन में | | Final type में डिविडेंड ज्यादा मिलता है, Interim type डिविडेंड के कंपैरिजन में | |
ध्यान दें – Interim type डिविडेंड में कंपनी आपसे डिविडेंड वापस भी ले सकती है, अगर कंपनी को फाइनेंसियल ईयर में लॉस होता है | अब आप सोचेंगे डिविडेंड तो हमेशा बैंक अकाउंट में दिया जाता है, तो ऐसे में कंपनी आपसे डिविडेंड वापस कैसे ले सकती है? तो हम आपको बता दें कि अगर आपने कंपनी के शेयर होल्ड करके रखे हैं, तो कंपनी आपके शेयर को कम करके अपना लॉस पूरा करती है | | Final type डिविडेंड में कंपनी आपसे डिविडेंड वापस नहीं ले सकती | |
Dividend का लाभ लेने के लिए किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
डिविडेंड का लाभ लेने के लिए हमें ex-dividend date से पहले शेयर को खरीद लेना चाहिए |
डिविडेंड पर शेयर के हिसाब से मिलता है, मतलब आपके पास जितने ज्यादा शेयर होंगे, उतना ही Dividend क्या होता है? ज्यादा आप डिविडेंड का लाभ उठा सकते हैं |
उदाहरण के लिए – मान लीजिए किसी xyz कंपनी के 50 शेयर आपके पास हैं | और कंपनी ने ₹10 के हिसाब से डिविडेंड देने की घोषणा की, तो इस तरह 10 * 50 = ₹500 आपने डिविडेंड से कमाए |
इसके दो कारण है – जब प्रॉफिटेबल कंपनी को लगता है, कि नेट प्रॉफिट को कंपनी की ग्रोथ में लगाया जा सकता है | तो कंपनी डिविडेंड नहीं देती या कम देती है, और जब प्रॉफिटेबल कंपनी को लगता है, कि नेट प्रॉफिट को कंपनी की ग्रोथ में लगाना मुश्किल है | तब वह डिविडेंड देती है |
Dividend Yield क्या होता है?
डिविडेंड यील्ड एक तरह का मेथड है जिससे हम यह जान सकते हैं, की किसी कंपनी ने कितना ज्यादा या कम डिविडेंड दिया है | इसका यूज करके हम बहुत ही आसानी से दो कंपनी का कंपैरिजन कर सकते हैं |
डिविडेंड यील्ड का फार्मूला होता है – Dividend per share/Current market price of one share *100
उदाहरण के लिए मान लीजिए – एक xyz नाम की कंपनी है, और एक abc नाम की कंपनी है | आइए दोनों का कंपैरिजन करते हैं, कि कौन सी कंपनी हमें ज्यादा डिविडेंड कमाने का मौका दे रही है, और कौन सी कम |
xyz कंपनी | abc कंपनी |
xyz कंपनी का शेयर प्राइस ₹1,000 है, और फेस वैल्यू ₹10 है | इस कंपनी ने 200% डिविडेंड देने की घोषणा की है | | abc कंपनी का शेयर प्राइस ₹3000 है, और फेस वैल्यू ₹10 ही है | इस कंपनी ने भी 200% डिविडेंड देने की घोषणा की है | |
आइए इसे डिविडेंड यील्ड फॉर्मूले से समझते हैं – | |
xyz कंपनी का डिविडेंड यील्ड होगा = 10/1,000*100 = 1% | abc कंपनी का डिविडेंड यील्ड होगा = 10/3,000*100 = 0.66% |