विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली

सप्ताहांत पर व्यापार क्यों

सप्ताहांत पर व्यापार क्यों

80 करोड़ का निवेश, 50 करोड़ का हुआ व्यापार: सुल्तानगंज के 2 हजार व्यापारियों की उम्मीदों पर फिरा पानी, 40% कम रही कांवरियों की भीड़

श्रावणी मेले की आज आखिरी सोमवारी है,मेला अंतिम चरण में है। लेकिन इस बार मेले का बाजार पूरी तरह फीका रहा। दो साल बाद मेले की शुरुआत होने के बावजूद व्यापार पहले की तरह नहीं चमक पाया। सुल्तानगंज में मेले की शुरुआत में 2 हजार व्यापारियों ने तकरीबन 80 करोड़ का निवेश कर अपने अपने दुकान लगाए थे। लेकिन 4 हफ्ते में करीब 50 करोड़ का व्यापार ही हो पाया। जिसको लेकर दैनिक भास्कर की टीम ने सुलतानगंज जाकर व्यापारियों से बातचीत की और जानने की कोशिश किया कि आखिर व्यापर मंदा होने की क्या वजह रही। पढ़िए पूरी ग्राउंड रिपोर्ट.

भागलपुर स्थित सुलतानगंज जहां अजगैबीनाथ धाम से स्नान कर श्रद्धालु जल लेकर देवघर के लिए प्रस्थान करते है। जिसको लेकर आस पास के इलाके में कपरे से लेकर कांवर,खाने पीने से लेकर रंग बिरंग के करीब 2 हजार दुकानें सजती है। वहां के दुकानदार हर साल लाखों की कमाई करते है। लेकिन पिछले दो साल कोरोना की वजह से मेला नही लगा था। जिससे उनकी दुकानदारी पूरी तरह ठप रही। लेकिन इस साल 2022 में जब उन्हें सूचना मिली की इस बार फिर से श्रावणी सप्ताहांत पर व्यापार क्यों मेला लगने जा रहा है। उनके अंदर खुशी की लहर दौड़ी, उम्मीदें जगी कि इस बार फिर से पहले की तरह अच्छी कमाई होगी।

इस साल 80 करोड़ का निवेश, बिक्री 50 करोड़

इस साल सुलतानगंज इलाके में सप्ताहांत पर व्यापार क्यों करीब 2 हजार दुकानदारों ने करीब 80 करोड़ रुपए का निवेश किया। लेकिन सावन महीने का चौथा सप्ताह चल रहा है। अब सावन भी खत्म होने को है। लेकिन उनके बिक्री का आंकड़ा 50 करोड़ रुपए ही है। जिससे सभी दुकानदारों की पूंजी भी फंसी रह गई। उन्होंने ने जिस कमाई की उम्मीदें की थी वो पूरी नहीं हो पाई। नतीजन सभी दुकानदारों को निराशा हाथ लगी।

दैनिक भास्कर की टीम ने स्थानीय दुकानदार विष्णु देव से बातचीत की।,विष्णु देव ने बताया कि जब 2019 तक मेले लगते थे तो,विष्णु अपनी दुकान में 5 लाख रुपए की पूंजी निवेश करते थे और 6 से 7 लाख तक सप्ताहांत पर व्यापार क्यों का व्यापर होता था। जिससे विष्णु को 1 से 2 लाख रुपए तक का फायदा होता था। लेकिन इस बार विष्णु देव ने अपनी दुकान में 5 लाख की पूंजी तो लगाई मगर 3 लाख रुपए तक का ही व्यापार हो पाया। जिससे विष्णु के 2 लाख रुपए पूंजी फंसे रह गए।

ठीक उसी तरह दूसरे व्यापारी गणेश गुप्ता ने बताया कि पहले वो अपने दुकान में 5 से 6 लाख रुपए लगाते थे। 7 से 8 लाख उनकी कमाई हो जाती थी। लेकिन इस बार 60% सामान ही बिक पाई है। गणेश ने बताया कि इस पूरे इलाके के दुकानदारों का आंकड़ा देखेंगे तो 80 करोड़ के आस पास निवेश होता है। लेकिन इस बार मुश्किल से 50 करोड़ का ही व्यापर हो पाया होगा।

वहीं तीसरे व्यापारी विनय कुमार ने बताया कि पहले कमाई अच्छी होती थी। इस बार स्थिति खराब हो गई। सप्ताहांत पर व्यापार क्यों उन्होंने कहा कि दुकानदारों को इस बार दोहरी मार परी है। पिछली बार के मुताबिक दुकानों के किराया भी ज्यादा लग रहा है। लेकिन कमाई पिछली बार से काफी कम है।

कांवरियों की भीड़।

क्यों मंदा रहा व्यापार?

दैनिक भास्कर ने इस साल व्यापार ढीली होने के वजह जाननी चाही तो इसका सबसे बड़ा कारण निकला कांवरियाओ की भीड़ में कमी। साल 2019 तक पूरे सावन महीने में औसतन 40 लाख से 50 लाख कांवरिया जल चढ़ाने सुल्तानगंज से देवघर जाते थे। लेकिन इस साल अभी तक 2,341,155 कांवरिया ही जल चढ़ाएं। जिसमे 2,294,713 साधारण कांवरिया और 46,442 डाक कांवरिया शामिल है। तो पहले के मुकाबले कांवरियाओ की संख्या 50% से 60% के आस पास ही रही जिसकी वजह से लोगो ने सामानों की उतनी खरीदारी नही की।

कांवरियों की संख्या में क्यों आई गिरावट?

इस साल मेले की शुरुआत होने के बावजूद कांवरियों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली। जिसको लेकर दैनिक भास्कर ने पर्यटन विभाग के गाइड प्रभात चंद्र ने इसके कई कारण बताए। उन्होंने बताया कि इस बार कांवरिया की संख्या कम रहने का सबसे बड़ा कारण है कि दो साल बाद मेले की शुरुआत हुई। तो लोग कही न कहीं कोरोना को लेकर थोड़े भय में है। कि इस बार का व्यवस्था कैसा होगा,लोग एक दूसरे को देख रहे हैं कि कोई जा रहा है की नही। तो इसको समझने में लोगो को थोड़ा समय लगेगा फिर शायद अगले साल से लोगो की भिड़ देखने को मिले।

तेज धूप में कांवरियों को चलने में काफी परेशानी होती है।

बारिश कम होने की वजह से भी कमी भीड़

प्रभात चंद्रा ने बताया कि भीड़ के कम होने की वजह बारिश का काम होना भी है। इस बार गर्मी काफी तेज पर रही ही। लोग धूप को झेल नहीं पा रहे है। लोग बारिश होने का इंतजार कर रहे थे कि बारिश हो तो कांवर उठाने जाए।लेकिन लोगो के उम्मीद के मुताबिक बारिश उतनी नही हुई जिसकी वजह से भीड़ में कमी आई।

महंगाई में तोड़ा दम

कंवरियो की भीड़ में कमी का कारण बढ़ती महंगाई भी बनी। कोरोना काल के बाद बेरोजगारी चरम सीमा पर पहुंची। लोगो की आमदनी कम हो गई और बढ़ती महंगाई ने भी कांवर उठाने से कई लोगो के हिम्मत तोड़ दिए।

इकोनॉमी के लिए बुरी खबर, नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा देश का व्यापार घाटा

जून, 2022 में वस्तुओं का निर्यात 23.52 प्रतिशत बढ़कर 40.13 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। वहीं, वस्तुओं का आयात सालाना आधार पर 57.55 प्रतिशत के उछाल के साथ 66.31 अरब डॉलर पर पहुंच गया है।

इकोनॉमी के लिए बुरी खबर, नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा देश का व्यापार घाटा

इकोनॉमी के मोर्चे पर एक बुरी खबर आई है। दरअसल, जून माह में व्यापार घाटा रिकॉर्ड 26.18 अरब डॉलर के सप्ताहांत पर व्यापार क्यों स्तर पर पहुंच गया है। इसका मतलब ये हुआ कि जून महीने में भारत ने विदेशों से आयात ज्यादा किया है। इस वजह से विदेशी मुद्रा भंडार भरने की बजाए खाली ज्यादा हो रहा है, जो इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं है। आपको बता दें कि जून के आखिरी सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 5.008 अरब डॉलर घटकर 588.314 अरब डॉलर रह गया था।

क्या कहते हैं आंकड़े: जून, 2022 में वस्तुओं का निर्यात 23.52 प्रतिशत बढ़कर 40.13 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। वहीं, वस्तुओं का आयात सालाना आधार पर 57.55 प्रतिशत के उछाल के साथ 66.31 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इससे व्यापार घाटा बढ़कर रिकॉर्ड 26.18 अरब डॉलर हो गया है। जून, 2021 में व्यापार घाटा 9.60 अरब डॉलर रहा था।

तिमाही आधार पर क्या हाल: चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून में निर्यात 24.51 प्रतिशत बढ़कर 118.96 अरब डॉलर रहा है। वहीं इस दौरान आयात 49.47 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 189.76 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष की पहली तिमाही में व्यापार घाटा बढ़कर 70.80 अरब डॉलर हो गया, जो 2021-22 की पहली तिमाही में 31.42 अरब डॉलर था।

चालू खाता घाटा भी बढ़ने की आशंका: इस बीच, वित्त मंत्रालय द्वारा जारी मासिक आर्थिक समीक्षा (एमईआर) में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान चालू खाता घाटे (सीएडी) में इजाफा हो सकता है। मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव और सुस्त व्यापारिक निर्यात के बीच महंगा खाद्य और ऊर्जा वस्तुओं की वजह से आयात बिल बढ़ा है। इस वजह से चालू खाता घाटा बढ़ने की आशंका है।

व्यापार घाटा अगस्त में बढ़कर 28.68 अरब डॉलर पहुंचा, इंपोर्ट में 37% का इजाफा

अगस्त 2022 में आयात 37% बढ़ा है। जबकि, अगस्त में एक्सपोर्ट फ्लैट रहा है। अगस्त 2021 के मुकाबले देश का व्यापार घाटा दोगुना से ज्यादा बढ़ गया है। पिछले साल अगस्त में व्यापार घाटा 11.71 अरब डॉलर था।

व्यापार घाटा अगस्त में बढ़कर 28.68 अरब डॉलर पहुंचा, इंपोर्ट में 37% का इजाफा

देश का सप्ताहांत पर व्यापार क्यों व्यापार घाटा (ट्रेड डेफिसिट) इस साल अगस्त में बढ़कर 28.68 अरब डॉलर पहुंच गया है। यह बात सरकारी डेटा में कही गई है। वहीं, अगस्त 2022 में आयात (इंपोर्ट) 37 पर्सेंट बढ़ा है। जबकि, अगस्त में एक्सपोर्ट फ्लैट रहा है। पिछले साल अगस्त के मुकाबले देश का व्यापार घाटा दोगुना से ज्यादा बढ़ गया है। पिछले साल अगस्त में व्यापार घाटा 11.71 अरब डॉलर था। चालू वित्त वर्ष के आखिर तक एक्सपोर्ट के 450 अरब डॉलर पार करने की उम्मीद है।

इंपोर्ट 37 पर्सेंट बढ़कर 61.68 अरब डॉलर पहुंचा
अगस्त 2022 में देश का इंपोर्ट 37 पर्सेंट बढ़कर 61.68 अरब डॉलर पहुंच गया है। वहीं, एक्सपोर्ट 33 अरब डॉलर पर फ्लैट रहा है। अगर सेक्टर-वाइज परफॉर्मेंस की बात करें तो अगस्त 2022 में ऑयल इंपोर्ट 86.44 पर्सेंट बढ़कर 17.6 बिलियन डॉलर रहा। वहीं, गोल्ड इंपोर्ट 47.54 पर्सेंट सप्ताहांत पर व्यापार क्यों घटकर 3.51 अरब डॉलर रहा। महीने दर महीने (मंथ-ऑन-मंथ) आधार पर भारत का ट्रेड डेफिसिट 4.4 पर्सेंट घटा है। इस साल जुलाई में ट्रेड डेफिसिट 28.7 अरब डॉलर था।

जुलाई के मुकाबले एक्सपोर्ट और इंपोर्ट दोनों में गिरावट
इस साल जुलाई के मुकाबले अगस्त 2022 में एक्सपोर्ट और इंपोर्ट दोनों में गिरावट देखने को मिली है। जुलाई के मुकाबले अगस्त में इंपोर्ट 7 पर्सेंट घटा है। जुलाई 2022 में इंपोर्ट 66.27 अरब डॉलर था। वहीं, एक्सपोर्ट 9 पर्सेंट घटा है। जुलाई 2022 में एक्सपोर्ट 36.3 अरब डॉलर था। इस साल अप्रैल-अगस्त के बीच देश का एक्सपोर्ट 192.59 बिलियन डॉलर रहा, इसमें 17.12 पर्सेंट की ग्रोथ देखने को मिली है। वहीं, इंपोर्ट 45.64 पर्सेंट बढ़कर 317.81 अरब डॉलर रहा है।

भारत से व्यापार बंद होने पर ठंडे पड़े इन पाकिस्तानी मज़दूरों के चूल्हे

फल मंडी

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने की ख़बर जब मोहम्मद रशीद जैसे कई मज़दूरों तक पहुंची तो उन्हें अंदाज़ा हो गया था कि घर का चूल्हा जलाने का वो रास्ता जिसके खुलने का उन्हें इंतज़ार था, अब शायद लंबे समय तक बंद ही रहेगा.

इसलिए उन्हें पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के इस फ़ैसले से हैरत नहीं हुई कि भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार स्थगित रहेगा.

मोहम्मद रशीद नियंत्रण रेखा पर चकोठी क्रॉसिंग पॉइंट पर मज़दूरी करते हैं. वह श्रीनगर से आने वाले और मुज़फ़्फ़राबाद से नियंत्रण रेखा के उस पर जाने वाले ट्रकों पर सामान लादने और उतारने का काम करते हैं और उसी से उनका घर चलता था.

मोहम्मद रशीद कहते हैं, "व्यापार चलता था तो हम हर सप्ताह छह या सात हज़ार रुपये कमा लेते थे. पहले उम्मीद थी कि बातचीत होगी, कोई रास्ता निकलेगा और यहां नियंत्रण रेखा पर काम फिर शुरू होगा, हम सप्ताहांत पर व्यापार क्यों तो इसी उम्मीद पर थे, मगर नरेंद्र मोदी ने नया क़ानून बनाकर ही सही कसर भी निकाल दी है."

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भारत में भी मज़दूर बेहाल

ये तस्वीर सिर्फ़ नियंत्रण रेखा के दूसरी ओर की नहीं हैं बल्कि व्यापारियों का कहना है कि व्यापार रास्ते बंद होने से भारत प्रशासित कश्मीर में मज़दूर वर्ग की हालत भी बदतर हुई है.

जम्मू और कश्मीर को जोड़ता श्रीनगर रोड उन दो रास्तों में से एक है जिनके ज़रिये नियंत्रण रेखा के आर-पार व्यापार का सिलसिला चलता है लेकिन यहां अब चहल-पहल खासी कम है.

पाकिस्तान और भारत की सरकारों ने तक़रीबन 11 साल पहले नियंत्रण रेखा पर व्यापार की शुरुआत की थी. दोनों देशों ने 21 वस्तुओं के व्यापार की सूची तैयार की और उड़ी, मुज़फ़्फ़राबाद रोड और पुंछ, रावलकोट रोड को व्यापार के लिए खोल दिया.

कई दशकों के बाद यहां सामान से लदे ट्रकों के आने-जाने की शुरुआत हुई.

कश्मीरियों को एक-दूसरे से मिलने का, कारोबार का मौक़ा मिला और हज़ारों लोगों की रोज़ी-रोटी का ज़रिया भी बना. ये व्यापार सामान के आदान-प्रदान के बाद शुरू हुआ. अब भी सामान के बदले सामान की प्रणाली लागू की जाती है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भारत के साथ व्यापार बंद करने की घोषणा की है लेकिन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के नियंत्रण रेखा के पार होने वाला व्यापार पहले से ही बंद है और ये ख़ुद भारत ने बंद किया था.

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चकोठी सेक्टर के क्रॉसिंग पॉइंट को पिछले साल भारत ने बंद कर दिया था

'सबसे पहले कश्मीर का आंदोलन'

चकोठी सेक्टर में क्रॉसिंग पॉइंट को भारत ने पिछले साल अप्रैल में बंद कर दिया था. भारत ने आरोप लगाया था कि इस रास्ते से पाकिस्तान वादी में हथियार और ड्रग्स की स्मगलिंग कर रहा है जिसकी वजह से व्यापार उस वक़्त तक स्थगित रहेगा जब तक कि पाकिस्तान कड़ी कार्रवाई नहीं कर लेता.

पाकिस्तान ने उस वक़्त इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए भारत की कार्रवाई को अफ़सोसजनक बताया था.

यही वजह है कि मोहम्मद रशीद समझते हैं कि उनकी आर्थिक आपदा का ज़िम्मेदार भारत है.

उन्होंने कहा, "भारत ने चार महीने पहले व्यापार बंद करने का ऐलान किया, मेरी तरह तीन सौ से अधिक मज़दूर घर बैठ गए, हमारे चूल्हे ठंडे पड़ गए हैं."

बीबीसी से बात करते हुए नियंत्रण रेखा पर होने वाले व्यापार से जुड़े गौहर अहमद कश्मीरी कहते हैं कि उनके लिए सबसे पहले तो कश्मीर का आंदोलन है.

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उन्होंने कहा, "लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि व्यापारी इस वक़्त परेशान हैं और ये परेशानी नियंत्रण रेखा के दोनों ओर है. ख़ासतौर पर जो मज़दूर वर्ग है वह अब बिलकुल असहाय बैठा है क्योंकि उनके लिए रोज़गार का एक रास्ता बन गया था जो अब बंद हो गया है."

"वह मज़दूर अब किस हाल में है, इसका न नियंत्रण रेखा के उस तरफ़ किसी को पता है न ही हमारी तरफ़ किसी को ख़याल है."

वह कहते हैं कि चकोठी सेक्टर पर गोदाम चार महीने से भरे पड़े हैं. "मगर अब वह माल न हम वहां से वापिस ला सकते हैं न नियंत्रण रेखा की दूसरी ओर लेकर जा सकते हैं. सिस्टम जाम करके रख दिया है. फ़ैसलाबाद, लाहौर, पंडी की मंडियों से सामान इसलिए ख़रीदा था क्योंकि सामान उन पार भेजना था मगर उन्होंने जो पाबंदी लगाई उसने सब ख़त्म कर दिया."

"व्यापारी भी मारा गया, दुकानदार भी मारा गया और मंडियां भी तबाह हो गई हैं. उस वक़्त कोशिश हो रही थी कि रास्ता आज नहीं तो कल खुल जाएगा मगर अब भारत ने जो हालात पैदा कर दिए हैं अब कोई हल नज़र नहीं आ रहा."

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दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.

गौहर अहमद कश्मीरी के मुताबिक़ दोनों ओर से जिन 21 लेन-देन की चीज़ों की अनुमति थी उनमें सबसे मशहूर श्रीनगर से आने वाले कश्मीरी शॉलें थीं जो हाथों हाथ बिकती थीं. इसके अलावा दोनों तरफ़ फल, मसालों, क़ालीन और फ़र्नीचर वग़ैराह का कारोबार किया जा रहा था.

भारत प्रशासित कश्मीर से आने वाले सामानों में जड़ी-बूटियां और सब्ज़ियों के अलावा क़ालीन, लकड़ी के फ़र्नीचर, कढ़ाई वाले कपड़े शामिल हैं जबकि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से आने वाले सामानों में चावल, अखरोट, दालें, इतर, कपड़े आदि शामिल हैं.

पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में जब हमने सरकार से जानने की कोशिश की कि इस नए ऐलान के बाद सामान से लदे ट्रकों का आना-जाना तो ख़त्म हो गया है क्या अब यात्रियों का आना-जाना भी बंद हो जाएगा तो प्रशासन का कहना था कि उन्हें इस बारे में अभी कुछ मालूम नहीं है.

सेंट्रल ट्रेड यूनियन मुज़फ़्फ़राबाद के चेयरमैन शौकत नवाज़ मीर कहते हैं कि तमाम व्यापारियों के लिए कश्मीर का आंदोलन पहली प्राथमिकता है और व्यापार दूसरे नंबर पर है.

उन्होंने कहा, "एक कश्मीरी की हैसियत से मैं समझता हूं कि अगर मुझे लाखों-करोड़ों का नुक़सान भी हो गया तब भी मेरे लिए कश्मीर का आंदोलन पहली प्राथमिकता और व्यापार दूसरी प्राथमिकता रहेगा."

मोदी सरकार के फ़ैसले पर कश्मीर के युवाओं का ग़ुस्सा

सामान के बदले सामान से होता था व्यापार

वह कहते हैं कि ये ख़ौफ़ ज़रूर था लेकिन दोनों ओर ये तसल्ली थी कि रास्ता तो ख़ुला है, कुछ तो व्यापार है चाहे वह चीज़ों के बदले चीज़ है.

"आज दोनों तरफ़ का व्यापारी बिलकुल परेशान है, मगर ये भी स्पष्ट है कि नियंत्रण रेखा की दोनों ओर मौजूद व्यापारी कभी भी व्यापार को कश्मीर के मुद्दे पर प्राथमिकता नहीं देगा. पाकिस्तान ने जो फ़ैसला किया वह मजबूरी में किया है, भारत ने पहले कश्मीर में ग़ैर-क़ानूनी क़दम उठाए और कश्मीरियों के अधिकार पर डाका डाला है. कश्मीरी अपने पेट पर पत्थर बांध लेगा, मगर कश्मीर पर कभी समझौता नहीं कर सकता."

ध्यान देने वाली बात है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के बीच सालाना 3 अरब रुपये से अधिक का व्यापार होता है. दोनों ओर से केवल 35-35 ट्रक आने और जाने की इजाज़त थी.

ये ट्रक हफ़्ते में चार दिन सुबह नौ बजे से शाम चार बजे के बीच सीमा पार जाते थे जबकि यहां 300 रजिस्टर्ड व्यापारी हैं जिनके लिए व्यापार के सख़्त नियम हैं. यहां बार्टर ट्रेड होता है यानी पैसों से चीज़ें नहीं ख़रीदी जातीं बल्कि लेन-देन में 'माल के बदले माल' दिया जाता है.

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हमारा क्या कसूर, हमें क्यों नहीं मिली व्यापार की छूट

हमारा क्या कसूर, हमें क्यों नहीं मिली व्यापार की छूट

जासं, रांची: राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के लगाई गयी पाबंदियों में छूट देने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। रांची, धनबाद, बोकारो, जमशेदपुर, देवघर, गुमला, गढ़वा, हजारीबाग व रामगढ़ जिले को छोड़कर राज्य के 15 जिलों में कपड़े, जूते, गहने व श्रृंगार की दुकानें खुलेंगी। राज्य में कपड़ा, जूता चप्पल, ज्वेलर्स, कॉस्मेटिक सहित अन्य प्रतिष्ठान बंद होने के कारण व्यापारियों में काफी रोष है। अब सिर्फ जून-जुलाई माह में शादी विवाह के लग्न हैं। ऐसे में प्रतिष्ठान बंद रहने से व्यापारियों को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। इन व्यवसाय से जुड़े छोटे- छोटे व्यापारियों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। दुकान का किराया, बिजली का बिल, माल का बकाया, बैंक लोन और घर का खर्च इन सबके आगे व्यापारी हार रहे हैं। कपड़ा व्यापार संघ का अनुमान है कि मार्च से मई तक में कपड़ा व्यापारियों को सौ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

Jharkhand Foundation Day: झारखंड स्थापना दिवस समारोह में सीएम हेमंत सोरेन, सांसद शिबू सोरेन व झारखंड कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय।

व्यापारियों का कहना है कि सरकार को यही लग रहा है कि कोरोना कपड़ा व्यवसाय की देन है, इसलिए कपड़ा व्यवसाय को नजरअंदाज कर दिया गया है। सरकार ने बुनियादी चीजों में कपड़े, रेडिमेड, जूते और टेलरों को नजर अंदाज कर विलासिता की दुकानों को अहमियत दी है। राज्य में कपड़ा और जूता उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े 20 लाख कामगार जुड़े हैं। इसमें से आठ लाख लोग इन नौ जिलों में काम कर रहे हैं। पिछले वर्ष अनलाक में भी कपड़ा, जूता, ज्वेलरी और कास्मेटिक दुकानों को व्यापार की इजाजत सबसे आखिर में मिली थी। अभी व्यापारी संभले भी नहीं थे कि संक्रमण के कारण फिर से लाकडाउन लगाना पड़ा। कैसे देंगे कर्मचारियों का वेतन:

व्यापारियों का कहना है कि हमारे कर्मचारियों को कौन वेतन देगा, सरकार यह नहीं सोच रही है। व्यवसाय पूरी तरह ठप रहने से व्यापारी ही नहीं कर्मचारी दोनों परेशान हैं। कपड़ा और जूता व्यापार के लिए सबसे पीक सीजन मार्च से लेकर जून तक का होता है। ये लगन का पूरा समय कोरोना की बलि चढ़ गया है। छोटे के साथ बड़े व्यापारियों की हालत भी पतली हो रही है। राज्यों के बाजार खुल जाने के बाद महाजनों ने व्यापारियों से बकाया वसूली तेज कर दी है। ये स्थिति व्यापारियों के लिए कोढ़ में खाज के जैसी हो गई है।

ठंड के लिए कपड़ों का नहीं सप्ताहांत पर व्यापार क्यों कर पा रहे आर्डर:

रांची के व्यापारी ठंड के मौसम के कपड़ों का ऑर्डर देना जून के महीने से शुरू कर देते हैं। मगर इस साल लाकडाउन की वजह से वो ये भी नहीं कर पा रहे हैं। अचानक अप्रैल महीने में हुए लॉकडाउन के कारण कई बड़े व्यापारियों का भी माल ट्रांसपोर्ट में फंसा हुआ है। ऐसे में दो महीने में इनका खराब हो जाना तय है। दूसरी तरफ दो महीने से दुकानें बंद होने के कारण ज्यादातर दुकानों में चूहों ने लाखों के कपड़े बर्बाद कर दिए होंगे। वहीं पापलिन आदि के कई कपड़े ऐसे होते हैं जिन्हें कुछ समय पर पलटना पड़ता है। एक अवस्था में रखे रहने पर ये खराब हो जाते हैं। ऐसे में व्यापारियों पर ये भी किसी मार से कम नहीं होगी।

मुश्किल में आभूषण विक्रेता:

लाकडाउन के कारण जिले के आभूषण विक्रेता भी बड़ी मुश्किल में हैं। विक्रेता बताते हैं कि मार्च से लेकर जून तक लगन से लेकर कई ऐसे पर्व और त्योहार हैं जिसमें आभूषणों की बेहतर बिक्री होती थी। मगर लगातार दो वर्ष इस सीजन में लाकडाउन से व्यापारियों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। हालांकि पिछले वर्ष की लाकडाउन का घाटा वर्ष के अंत तक लगभग मेकअप हो गया था। मगर इस वर्ष फिर लाकडाउन ने व्यापारियों को अंदर से हिला दिया है। लाखों लोग जुड़े कपड़े और जूते के व्यापार से:

कपड़ा और जूतों का कारोबार असंगठित व्यापार है। रांची में लगभग 500 जूते और कपड़े की दुकानें हैं। इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 15 हजार से ज्यादा लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है। वहीं 220 के आसपास रांची में आभूषण विक्रेता हैं। इससे करीब एक हजार लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। सरकार द्वारा इस सेक्टर की अनदेखी से 16 हजार सप्ताहांत पर व्यापार क्यों परिवारों के सामने खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया है।

क्या कहते हैं व्यापारी

व्यापार शुरू होने से आर्थिक स्थिति में सुधार आता। हमारे दो सीजन का व्यापार कोरोना को भेंट चढ़ गया है। व्यापारियों पर कर्ज भी काफी ज्यादा है। ऐसे में सरकार को अब हमारे बारे में सोचना चाहिए।

- प्रकाश अरोड़ा, अध्यक्ष, झारखंड थोक वस्त्र विक्रेता संघ

सरकार के द्वारा कपड़े और जूते के सेक्टर में व्यापार को शुरू करने की इजाजत नहीं देना अजीब फैसला है। वो भी तब जब हमारे राज्य में वैक्सीनेशन तेज हैं और संक्रमितों का दर भी सबसे कम है।

पूरे सीजन का बड़ा नुकसान हुआ है। महाजन के पैसे से लेकर दुकान और गोडाउन तक का किराया अभी देना है। लाकडाउन का वक्त व्यापारियों के लिए मानसिक तनाव का होता है। दुकान पर रहकर कुछ किया जा सकता है।

- प्रमोद सारस्वत, कार्यकारिणी सदस्य, झारखंड थोक वस्त्र विक्रेता संघ

लाकडाउन के कारण दुकानें बंद रही। ऐसे में शादी और अक्षय के व्यापार का बड़ा नुकसान हुआ है। हर आभूषण विक्रेता की हालत पतली है। ऐसे में सरकार को पाबंदियों के साथ ही मगर व्यापार की इजाजत देनी चाहिए।

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