संयुक्त विकल्प व्यापार

India-Russia Trade: भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब नई ऊंचाई पर, एक्सपर्ट व्यू
भारत अपनी आवश्यकता का करीब 80 प्रतिशत कच्चा तेल विदेश से खरीदता है। इसका लगभग एक चौथाई हिस्सा अब रूस से आ रहा है। इसके चलते दोनों देशों के बीच व्यापार में उछाल आया है। यह अब तक के अपने उच्चतम स्तर 1822 करोड़ डालर पर पहुंच गया है।
प्रो. लल्लन प्रसाद। India-Russia Trade भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब तक के अपने उच्चतम स्तर 1,822 करोड़ डालर पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में दोनों देशों के बीच मात्र 814 संयुक्त विकल्प व्यापार करोड़ डालर का व्यापार हुआ था, जो वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 1,312 करोड़ पर पहुंचा। इस वित्त वर्ष यानी 2022-23 में दोनों देशों के बीच व्यापार में जो उछाल आया है वह यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के कारण रूस के ऊपर अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध और रूस की ओर से भारत को रियायती दर पर पेट्रोलियम पदार्थ यानी कच्चा तेल देने की वजह से हुआ है। वर्ष 2020 में रूस भारत के व्यापारिक साझेदार के रूप में 25वें स्थान पर था, अब सातवें पर आ गया है।
अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इराक और इंडोनेशिया अभी भी भारत के व्यापारिक साझेदार के रूप में रूस से ऊपर हैं। कोविड के प्रारंभ होने के पूर्व भारत अपनी आवश्यकता का मात्र दो प्रतिशत कच्चा तेल ही रूस से खरीदता था, अब करीब 23 प्रतिशत खरीद रहा है। यद्यपि द्विपक्षीय व्यापार में भारी वृद्धि का लाभ दोनों देशों को हो रहा है, किंतु व्यापार संतुलन रूस के पक्ष में है। वैसे 1997 से 2003 तक यह व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में था, किंतु उसके बाद से यह रूस के पक्ष में होने लगा।
इस वित्त वर्ष में अब तक भारत ने रूस को मात्र 99 करोड़ डालर का माल निर्यात किया है, जबकि रूस से 1,723 करोड़ डालर का आयात किया है। यह वृद्धि रूस से कच्चे तेल और उर्वरकों के आयात में भारी वृद्धि के कारण ही हुआ है। अब दोनों देश आपसी व्यापार रुपया-रूबल के माध्यम से करने के लिए भी राजी हो गए हैं। हालांकि अभी भुगतान डालर में ही हो रहा है। जुलाई 2022 में ही आरबीआइ ने इसकी इजाजत दे दी थी।
आरबीआइ ने कहा है कि जो व्यापारी रुपये के माध्यम से व्यापार करेंगे वे विदेशी व्यापार नीति के अंतर्गत मिलने वाली सारी सुविधाओं का लाभ ले सकेंगे। भारत जिन वस्तुओं का रूस को निर्यात करता है उनमें प्रमुख हैं: दवा, मशीनरी, चाय, काफी, मसाले, आर्गेनिक रसायन, इलेक्ट्रानिक वस्तुएं, ताजे फल, मांस, चावल, प्रसंस्कृत फल और जूस एवं अन्य कृषि पदार्थ। सबसे अधिक निर्यात दवाओं का होता है। भारत की बड़ी-बड़ी दवा कंपनियां रूस से व्यापार करती हैं। रूस में चाय की 30 प्रतिशत आवश्यकता की पूर्ति भारत करता है। जिन वस्तुओं का भारत रूस से आयात करता है उनमें प्रमुख हैं: पेट्रोलियम पदार्थ एवं प्राकृतिक गैस, उर्वरक, खाद्य तेल, रक्षा संयंत्र-युद्धपोत, लड़ाकू जहाज, स्पेसक्राफ्ट, लोहा एवं इस्पात, न्यूक्लियर प्लांट, ब्वायलर्स, पेपर, सीमेंट, जस्ता, तांबा एवं हीरे-जवाहरात आदि।
वर्षों से रूस भारत का रक्षा संयंत्रों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है, अब वह कच्चे तेल का भी एक बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। व्यापार असंतुलन को ठीक करने के लिए भारत को अपने निर्यात की टोकरी में गुणात्मक वृद्धि करनी होगी। इंजीनियरिंग उत्पाद, कृषि उत्पाद, दवाओं एवं अन्य उपभोक्ता पदार्थों की आपूर्ति बढ़ाने की अच्छी संभावना है। पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत रूस से बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम पदार्थ खरीद रहा है जिससे वे नाराज हैं।
भारत अपनी आवश्यकता का करीब 80 प्रतिशत कच्चा तेल विदेश से खरीदता है। इसका लगभग एक चौथाई िहस्सा अब रूस से आ रहा है। भारत को अपनी ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को देखते हुए रूस से कम दाम में कच्चा तेल खरीदने में ही लाभ है। रूस कूटनीतिक संबंधों एवं रक्षा की जरूरतों में ही नहीं, बल्कि आर्थिक मामलों में भी आवश्यकता पड़ने पर भारत का साथ देता रहा है। दोनों देशों के संबंध आपसी विश्वास की तुला पर खरे उतरे हैं।
आर्थिक-सामरिक संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए दोनों देशों के शीर्ष नेता, वरिष्ठ मंत्री और अधिकारी बराबर संपर्क बनाए रखते हैं। इसके लिए दोनों देशों के बीच एक संस्थागत व्यवस्था भी की गई है, जिसके अंतर्गत इंटरगवर्नमेंटल कमीशन फार ट्रेड, इकोनमिक, साइंटिफिक एंड कल्चरल कोआपरेशन एवं इंडिया रशिया स्ट्रेटजिक इकोनमिक डायलाग आते हैं। यूरेशिया इकोनमिक यूनियन के माध्यम से रूस और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार संबंधों पर विचार-विमर्श होता रहता है। ईस्टर्न इकोनमिक फोरम में भी भारत-रूस सक्रिय हैं।
दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश के 2025 तक के लक्ष्य क्रमशः 50 अरब एवं 30 अरब डालर रखे गए हैं। जिन क्षेत्रों में निवेश हो रहा है उनमें हाइड्रोकार्बन, ऊर्जा, कोयला, न्यूक्लियर पावर, उर्वरक, आइटी, खनिज, इस्पात, दवा एवं इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शामिल हैं। दोनों देशों के चैंबर आफ कामर्स भी आपस में व्यापारिक संबंधों पर बराबर चर्चा करते रहते हैं। सेंट पीटर्सबर्ग इकोनमिक फोरम के साथ भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) ने एक एमओयू साइन किया है। फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर्स आफ कामर्स ने महिला उद्यमियों का एक प्रतिनिधिमंल रूस भेजा था।
कई राज्यों ने भी रूस के विभिन्न क्षेत्रीय संगठनों के साथ एमओयू पर साइन किए हैं, इनमें गुजरात, गोवा, हरियाणा और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। नीति आयोग और रूस के सुदूर पूर्व एवं आर्कटिक क्षेत्रों के फेडरेशन के बीच आर्थिक संबंधों पर वार्ता हुई है। कुछ रूसी बैंकों ने भारत में और भारतीय बैंकों ने रूस में अपनी शाखाएं खोली हैं, जो रुपया-रूबल के माध्यम से व्यापार मे सहायक होंगी। यह व्यवस्था डालर के विकल्प के रूप में भी देखी जा रही है, इसका सफल प्रयोग अनेक देशों के साथ रुपये में व्यापार को बढ़ावा देगा, जो डालर की कमी से जूझ रहे हैं।
[पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनमिक्स विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय]
Pithoragarh News: व्यापार मंडल के संयुक्त सचिव ने की खुदकुशी, पांच पेज का छोड़ा सुसाइड नोट
पिथौरागढ़ में रविवार देर रात नगर उद्योग व्यापार मंडल के संयुक्त सचिव हरिओम धामी ने व्यापार भवन में जहरीला पदार्थ खा लिया
पिथौरागढ़ में रविवार देर रात नगर उद्योग व्यापार मंडल के संयुक्त सचिव हरिओम धामी ने व्यापार भवन में जहरीला पदार्थ खा लिया. उन्हे जिला अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
बताया जा रहा है कि शहर के गांधी चौक में दुकान चलाने वाले हरिओम धामी ने देर रात व्यापार भवन पहुंचने के बाद जहरीला पदार्थ खा लिया. आसपास के लोगों को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्हे अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां उसकी मौत हो गई।
धामी ने व्यापार भवन में पांच पेज का सुसाइड नोट छोड़ा है, जिसे पुलिस ने जब्त कर लिया है। सुसाइड नोट में लिखी बातों का अभी खुलासा नहीं हो सका है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
कोरोना के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी: संयुक्त राष्ट्र व्यापार रिपोर्ट
व्यापार पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने से विकासशील देशों के लिए गंभीर संकट पैदा होगा लेकिन चीन और भारत इससे बच सकते हैं. The post कोरोना के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी: संयुक्त राष्ट्र व्यापार रिपोर्ट appeared first on The Wire - Hindi.
व्यापार पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने से विकासशील देशों के लिए गंभीर संकट पैदा होगा लेकिन चीन और भारत संयुक्त विकल्प व्यापार इससे बच सकते हैं.
नोएडा में अनिश्चितकाल के लिए बंद ग्रेट इंडिया मॉल. (फोटो: द वायर)
संयुक्त राष्ट्र/वाशिंगटन: व्यापार पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण खरबों डॉलर के अनुमानित नुकसान के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था इस साल मंदी में चली जाएगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, यूएन व्यापार रिपोर्ट में विकासशील देशों के लिए गंभीर चिंताएं जताई गई हैं जिसमें भारत और चीन अपवाद हो सकते हैं.
कोविड-19 संकट से अभूतपूर्व आर्थिक नुकसान झेल रहे विकासशील देशों में रहने वाली दुनिया की दो-तिहाई आबादी वाले इन देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र 2.5 ट्रिलियन डॉलर के बचाव पैकेज की मांग कर रहा है.
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (यूएनसीटीएडी) के नए विश्लेषण के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास निकाय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि निर्यातक देश अगले दो वर्षों में विदेशों से निवेश में दो ट्रिलियन से तीन ट्रिलियन डॉलर की गिरावट का सामना करेंगे.
जी-20 देशों के हवाले से यूएनसीटीएडी ने कहा कि विश्व की उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और चीन ने बड़े सरकारी पैकेजों को एक साथ रखा है जिससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं को 5 ट्रिलियन डॉलर की मदद मिलेगी.
यूएनसीटीएडी ने कहा, ‘यह एक बड़े संकट में उठाया गया एक अभूतपूर्व कदम है, इससे इस संकट से आर्थिक और मानसिक रूप से निपटने में मदद मिलेगी.’
इससे बड़ी जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में एक से दो लाख करोड़ डॉलर की मांग पैदा होगी और वैश्विक उत्पादन में दो प्रतिशत का अंतर पड़ेगा.
यूएनसीटीएडी ने कहा, ‘हालांकि इसके बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था इस साल मंदी में चली जाएगी, जिससे अरबों-खरबों की वैश्विक आय में कमी होगी. यह विकासशील देशों के लिए गंभीर संकट पैदा करेगा, जिससे चीन और भारत बच सकते हैं.’
हालांकि, रिपोर्ट में इस बारे में यह विस्तार से नहीं बताया गया है कि क्यों और कैसे भारत और चीन अपवाद होंगे क्योंकि दुनिया को वैश्विक आय में मंदी और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है जो विकासशील देशों को प्रभावित करेगा.
यूएनसीटीएडी ने कहा कि जिस गति से महामारी से विकासशील देशों को आर्थिक झटका लगा है, वह साल 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट की तुलना में नाटकीय है.
बता दें कि, कोरोना वायरस महामारी से मरने वालों की संख्या 35,000 हो गई है, जबकि विश्व स्तर पर पुष्ट मामलों की संख्या 750,000 से ऊपर है.
एशिया की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ रही वैश्विक महामारी कोरोना वायरस: विश्व बैंक
विश्व बैंक ने अनुमान जाहिर किया है कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण इस साल चीन तथा अन्य पूर्वी एशिया प्रशांत देशों में अर्थव्यवस्था की रफ्तार बहुत धीमी रहने वाली है, जिससे लाखों लोग गरीबी की ओर चले जाएंगे.
विश्व बैंक ने सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह आंशका व्यक्त की है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र में इस वर्ष विकास की रफ्तार 2.1 फीसदी रह सकती है जो 2019 में 5.8 फीसदी थी.
बैंक का अनुमान है कि 1.1 करोड़ से अधिक संख्या में लोग गरीबी के दायरे में आ जाएंगे. यह अनुमान पहले के उस अनुमान के विपरित है जिसमें कहा गया था कि इस वर्ष विकास दर पर्याप्त रहेगी और 3.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठ जाएंगे.
इसमें कहा गया है कि चीन की विकास दर भी पिछले साल की 6.1 फीसदी से घटकर इस साल 2.3 फीसदी रह जाएगी.
बता दें कि, पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा था कि कोरोना वायरस महामारी के कारण विनाशकारी प्रभाव के सामने है और स्पष्ट रूप से दुनिया मंदी में प्रवेश कर गई है. हालांकि, आईएमएफ ने अगले साल सुधार का अनुमान जताया है.
आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलिना जॉर्जीवा ने कहा था कि हमने 2020 और 2021 के लिए विकास की संभावनाओं का दोबारा मूल्यांकन किया है. यह साफ है कि दुनिया मंदी के दौर में पहुंच गई है जो कि 2009 या उससे भी बुरी है. हम 2021 में सुधार कर सकते हैं.
उन्होंने कहा था कि 2021 में अर्थव्यवस्था तभी मंदी से उबर सकती है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय हर जगह वायरस को फैलने से रोक पाएगा.
भारत से यूएसए के लिए शीर्ष कूरियर सेवाएं (शिपिंग दरें शामिल हैं!)
अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग दुनिया भर में एक आगामी घटना है। 2021 में, खुदरा ई-कॉमर्स की संयुक्त विकल्प व्यापार बिक्री दुनिया भर में राशि लगभग। 4.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर . यह आंकड़ा अगले चार वर्षों में 50 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है, जो 7.4 तक लगभग 2025 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। ये आंकड़े दुनिया भर में आक्रामक ईकामर्स बाजार के विकास के बिना संभव नहीं हैं। ऐसा ही एक व्यापार चैनल है भारत और अमेरिका के बीच ईकामर्स।
जब से सरकार ने निर्यातकों, विभिन्न विक्रेताओं को प्रोत्साहन योजनाओं की पेशकश की है अब विदेश भेजना चाहते हैं। बाजार ताजा है और आसानी से टैप किया जा सकता है। 2016 में, यूएसए का डी मिनिमिस मूल्य घटकर 800 USD हो गया, जिससे . में वृद्धि हुई अंतरराष्ट्रीय व्यापार।
Amazon India की रिपोर्ट के अनुसार बताया गया है कि चादरें, पारंपरिक कला, गृह सज्जा, स्पष्ट मक्खन, और अन्य स्वदेशी सामान जैसे आइटम अमेरिका में उच्च मांग में हैं; मुद्दा यह है कि उन्हें वहां भेजने में आपकी सहायता करने के लिए सही भागीदार कौन है। आइए जानते हैं।
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भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र
कांडला में 1965 में एशिया के पहले ईपीजेड के खोले जाने के साथ, भारत निर्यात को बढावा देने में निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (ईपीजेड) मॉडल की प्रभावोत्पादकता स्वीकार करने वाले पहले देशों में एक था । नियंत्रणों एवं मंजूरियों की विविधता; विश्व स्तरीय अवसरंचना का अभाव; और एक अस्थिर वित्तीय व्यवस्था के कारण सामने आने वाली दिक्कतों का सामना करने तथा भारत में अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए, अप्रैल 2000 में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) नीति की घोषणा की गई ।
इस नीति का उद्देश्य केंद्र एवं राज्य दोनों ही स्तर पर न्यूनतम संभावित विनियमनों के साथ आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहन तथा गुणवत्ता – पूर्ण अवसंरचना की सहायता से सेज को आर्थिक विकास का वाहक बनाना था । भारत में सेज 1.11.2000 से 09.02.2006 तक विदेश व्यापार नीति के प्रावधानों के तहत कार्यरत रहा और आवश्यक वैधानिक प्रावधानों के माध्यम से वित्तीय प्रोत्साहनों को प्रभावी बनाया गया ।
निवेशकों में आत्मविश्वास भरने और एक स्थिर सेज नीति व्यवस्था के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का संकेत देने के लिए तथा सेज व्यवस्था में स्थिरता लाने के द्वारा अधिक आर्थिक् कार्यकलाप और रोजगार सृजन करने के उद्देश्य से हितधारकों के साथ विस्तृत परामर्शों के बाद एक व्यापक प्रारूप सेज विधेयक का निर्माण किया गया । वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री तथा वरिष्ठ अधिकारियों दोनों द्वारा इस उद्देश्य के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में कई बैठकें की गईं । संसद द्वारा मई, 2005 में विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 पारित किया गया जिसे 23 जून, 2005 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई । प्रारूप सेज नियमों पर व्यापक चर्चा की गई और सुझाव/टिप्पणियां आमंत्रित करते हुए इन्हें वाणिज्य विभाग की वेबसाइट पर डाला गया । प्रारूप नियमों पर लगभग 800 सुझाव प्राप्त हुए । व्यापक परामर्शों के बाद, सेज नियमों द्वारा समर्थित सेज अधिनियम 2005, 10 फरवरी , 2006 को प्रभावी हुआ जिसमें प्रक्रियाओं में सरलीकरण तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों से संबंधित मामलों पर सिंगल विंडो मंजूरी का प्रावधान था ।
सेज अधिनियम के मुख्य उद्देश्य है :
- अतिरिक्त आर्थिक कार्यकलाप का सृजन
- वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात का संवर्धन
- घरेलू एवं विेदेशी स्रोतों से निवेश का संवर्द्धन
- रोजगार अवसरों का सृजन
- अवसंरजना सुविधाओं का विकास
ऐसी उम्मीद है कि इससे सेज में, अवसंरचना एवं उत्पादक क्षमता में बड़ी मात्रा में विदेशी एवं घरेलू निवेश की आवक होगी जिससे अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियों एवं रोजगार अवसरों का सृजन होगा ।
सेज अधिनियम 2005 में निर्यात संवर्धन एवं संबंधित बुनियादी ढांचे के सृजन में राज्य सरकारों के लिए एक प्रमुख भूमिका की परिकल्पना की गई है । 19 सदस्यीय अंत: मंत्रिस्तरीय मंजूरी बोर्ड (बीओए) के जरिये सिंगल विंडों सेज मंजूरी तंत्र की व्यवस्था की गई है । संबंधित राज्य सरकार/संघ शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा उपयुक्त रूप से अनुशंसित आवेदनों पर बीओए द्वारा सावधिक रूप से विचार किया जाता है । बोर्ड की मंजूरियों से संबंधित सभी निर्णय सर्वसहमति से लिए जाते हैं ।
सेज नियमों में सेज के विभिन्न वर्ग के लिए विभिन्न न्यूनतम भूमि आवश्यकता का प्रावधान है प्रत्येक सेज एक प्रसंस्करण क्षेत्र जहॉं केवल सेज की इकाइयां ही स्थापित हो सकेंगी और एक गैर – प्रसंस्करण क्षेत्र में विभाजित होता है जहॉं सहायक अवसरंचना का सृजन किया जाना है ।
सेज नियमों में प्रावधान है :
- विशेष आर्थिक क्षेत्रों के विकास , परिचालन एवं रखरखाव तथा सेज में इकाइयों एवं व्यवसाय संचालन के लिए सरल नियम ;
- सेल की स्थापना के लिए सिंगल विंडो मंजूरी ;
- एक विशेष आर्थिक क्षेत्र में एक इकाई की स्थापना के लिए सिंगल विंडो मंजूरी;
- केंद्र एवं राज्य सरकारों से संबंधित मामलों पर सिंगल विंडो मंजूरी ;
- स्व प्रमाणन पर जोर के साथ सरल अनुपालन प्रक्रियाएं एवं प्रलेखन
सेज का मंजूरी तंत्र एवं प्रशासनिक ढांचा
मंजूरी तंत्र
डेवेलपर संबंधित राज्य सरकार के समक्ष सेज की स्थापना के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करता है । राज्य सरकार को ऐसे प्रस्ताव की प्राप्ति की तिथि से 45 दिनों के भीतर अपनी अनुशंसा के साथ प्रस्ताव को मंजूरी संयुक्त विकल्प व्यापार बोर्ड को अग्रेषित करना पड़ता है । आवेदन के पास प्रस्ताव को सीधे मंजूरी बोर्ड को प्रस्तुत करने का विकल्प भी होता है ।
मंजूरी बोर्ड का गठन केंद्र सरकार द्वारा सेज अधिनियम के तहत प्रदत अधिकारों के तहत किया गया है । मंजूरी बोर्ड में सभी निर्णय सर्वसहमति से लिए जाते हैं । मंजूरी बोर्ड में 19 सदस्य होते है । इनकी संरचना निम्न प्रकार से है :