घाटे का सौदा

ऐसे बढ़ गया खर्च : 8 साल पहले एक बीघा में गेहूं की खेती पर 4 से 5 हजार रुपए का खर्च आता था। वह अब 15 हजार तक हो गया है। एक बीघा में जुताई, बीजरोपण, खाद, स्प्रे, कुएं से सिंचाई, मजदूरी लगाना, गेहूं निकालना सहित मिलाकर 15 हजार रुपए प्रति बीघा खर्च आता है। वहीं उत्पादन प्रति बीघा 6 से 7 क्विटंल होता है। समर्थन मूल्य के हिसाब से 12 हजार मिलता है, उसमें भी मंडी तक लाने में भी काफी खर्च होता है। इस बार मंडी में सर्मथन मूल्य 2015 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार में 2400 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक रहा है। इससे किसानों ने मंडी के बजाय बाहर खुले में गेहूं बेचा।
प्याज की खेती अब घाटे का सौदा, नहीं मिल रहे खरीददार, कैसे होगा किसान की बेटी का ब्याह और कैसे चुकाएंगे महाजन का कर्ज
Sheikhpura: टाल क्षेत्र के कई गांव के किसानों की जीविका प्याज की खेती पर निर्भर है। जिले में एकसारी, डीहकुसुम्भा, घाटकुसुम्भा, बाउघाट, भदौसी, बेलौनी, चांदी, वृंदावन सहित दर्जनों गाँवों में वृहद पैमाने पर प्याज़ की खेती की जाती है। परन्तु इस बार इसकी खेती करने वाले किसानों के लिए यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है। एक ओर जहां इसकी खेती को प्रकृति की मार झेलनी पड़ी है। तो वहीं मेहनत से उगाई गयी फसल का खरीददार नहीं मिलने से जिले के प्याज़ घाटे का सौदा उत्पादक किसानों की बेचैनी बढ़ी हुई है।
नई आबकारी नीति…महंगा और घाटे का सौदा
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उत्पादकों के लिए घाटे का सौदा बना हुआ है प्राकृतिक गैस का उत्पादन : इक्रा
Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: April 03, 2021 16:14 IST
Photo:FILE
उत्पादकों के लिए घाटे का सौदा बना हुआ है प्राकृतिक गैस का उत्पादन : इक्रा
नयी दिल्ली। भारत में ज्यादातर क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस का उत्पादन अपस्ट्रीम उत्पादकों के लिए घाटे का सौदा बना हुआ है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने कहा कि सरकार द्वारा तय गैस के दाम अपने निचले स्तर पर बने हुए हैं और इससे उत्पादन पर नुकसान हो रहा है। एक अप्रैल से छह महीने के लिए घरेलू गैस का मूल्य घाटे का सौदा 1.79 डॉलर प्रति इकाई (एमबीटीयू) तय घाटे का सौदा किया गया है। नया रंगराजन फॉर्मूला लागू होने के बाद यह इसका सबसे निचला स्तर है।
घाटे का सौदा; गेहूं की फसल पर 1 बीघा में खर्च 15 हजार, समर्थन मूल्य पर मिल रहे ~12 हजार
एक घाटे का सौदा बीघा फसल पर खर्च
किसान समर्थन मूल्य और महंगाई के जाल में पूरी तरह फंस गया है। बीते 8 साल में जहां किसानों की खेत में लागत ढाई गुना तक बढ़ गई है। वहां समर्थन मूल्य 20 प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। कृषि उपज मंडी सूनसान है।
साल 2021-22 में जिले में 37.24 लाख क्विंटल से भी ज्यादा गेहूं का उत्पादन हुआ है। मंडी में एक भी किसान गेहूं की फसल बेचने नहीं पहुंचा है। एक बीघा में किसान का खर्च 15 हजार से ज्यादा बढ़ गया है। इसे समर्थन मूल्य की कीमतों से जोड़-बाकी करें तो किसान को एक बीघा के उत्पादन पर महज 12 हजार रुपए घाटे का सौदा ही मिलते हैं। इसका सीधा मतलब है-तीन हजार रुपए का सीधा घाटा। इसी वजह से किसान कृषि मंडी की बजाए सीधे व्यापारियों तक पहुंच बना रहे हैं। किसानों की तकलीफ यही नहीं है। जिले में मक्का, सोयाबीन, धान, चना सहित 6 फसलें भी होती हैं, उसके बावजूद पिछले एक दशक से इन फसलों के लिए खरीद केंद्र तक नहीं खोला गया है। प्रदेश में मक्का सबसे ज्यादा 20 लाख क्विंटल से भी अधिक उत्पादन होता है। उसके बाद भी खरीद केंद्र नहीं खुलना किसानों के लिए सबसे बड़ा दर्द है।
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2012 व 17 में हुई थी लहसुन की खरीद
सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2012 में लहसुन के भाव औंधे मुंह गिरने पर बाजार हस्तक्षेप योजना के घाटे का सौदा तहत 1600 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में लहसुन की खरीद हुई थ्ीा। गत वर्ष भी बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत राजफेड के माध्यम से 3200 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में लहसुन खरीदा गया था।