अचेतन लाभ और हानि

ग्लोबल वार्मिंग में नया अर्थशास्त्र
ग्लोबल वार्मिंग का प्रकोप हम चारों तरफ देख रहे हैं। बीते दिनों चेन्नई में पानी का घोर संकट उत्पन्न हुआ, तो इसके बाद मुंबई में बाढ़ का। इन समस्याओं का मूल कारण है कि हमने अपने उत्तरोत्तर बढ़ते भोग को पोषित करने के लिए पर्यावरण को नष्ट किया है और करते जा रहे हैं। जैसे मुंबई से अहमदाबाद बुलेट ट्रेन बनाने के लिए हम हजारों मैन्ग्रोव पेड़ों को काट रहे हैं। ये वृक्ष समुद्री तूफानों से हमारी रक्षा करते हैं। बिजली के उत्पादन के लिए छत्तीसगढ़ के घने जंगलों अचेतन लाभ और हानि को काट रहे हैं। ये जंगल हमारे द्वारा उत्सर्जित कार्बन को सोख कर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में सहायता करते हैं। हमने बिजली बनाने के लिए भाखड़ा और टिहरी जैसे बांध बनाए हैं, जिनकी तलहटी में पेड़ पत्तियों के सड़ने से मीथेन गैस का उत्पादन होता है। यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड से 20 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देती है। भोग की पराकाष्ठा यह है कि मुंबई के एक शीर्ष उद्यमी के घर का मासिक बिजली का बिल 76,00,000 रुपए है। उस घर में केवल चार प्राणी रहते हैं। इस प्रकार की खपत से हम पर्यावरण का संकट बढ़ा रहे हैं तथा सूखे और बाढ़ से प्रभावित हो रहे हैं।
इस संकट का मूल अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि अधिक भोग से व्यक्ति सुखी होता है, जैसे अर्थशास्त्र में कहा जाता है कि जिस व्यक्ति के पास एक केला खाने को उपलब्ध है, उसकी तुलना में वह व्यक्ति ज्यादा सुखी है, जिसके पास दो केले खाने को उपलब्ध हैं। फिर भी हमारा प्रत्यक्ष अनुभव बताता है कि जिन लोगों को भारी मात्रा में भोग उपलब्ध है, जो एयर कंडीशंड लग्जरी कारों में घूमते हैं अथवा फाइव स्टार होटलों जैसे घरों में रहते हैं, वे प्रसन्न नहीं दिखते। उन्हें ब्लड प्रेशर और शुगर जैसी बीमारियां पकड़ लेती हैं। उन्हें नींद नहीं आती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि भोग से सुख नहीं मिलता है, लेकिन अर्थशास्त्र इस बात को नहीं मानता है। अर्थशास्त्र यही कहता है कि ऐसे व्यक्ति को किसी रिजॉर्ट में भेज दो। दूसरी तरफ यह भी सही है कि जिन्हें दो टाइम भोजन नहीं मिलता है, उन्हें हम दुखी देखते हैं अथवा जो कर्मी अपनी बाइक से दफ्तर आता है, वह बस से आने वाले की तुलना में ज्यादा सुखी दिखता है। भोग के इन दोनों के परस्पर अंतर्विरोधी प्रभावों को समझने के लिए हमें मनोविज्ञान में जाना होगा। मनोविज्ञान में मनुष्य की चेतना के दो स्तर- चेतन एवं अचेतन बताए गए हैं।
मनोविज्ञान के अनुसार यदि चेतन और अचेतन में सामंजस्य होता है, तो व्यक्ति सुखी अचेतन लाभ और हानि अचेतन लाभ और हानि होता है। उसे रोग इत्यादि कम पकड़ते हैं, लेकिन अर्थशास्त्र में चेतन एवं अचेतन का कोई विचार समाहित नहीं किया गया है। हमारा अर्थशास्त्र केवल चेतन स्तर पर कार्य करता है और चेतन स्तर पर अधिक भोग को ही अर्थव्यवस्था का अंतिम उद्देश्य मानता है। इसलिए हम अचेतन लाभ और हानि देखते हैं कि अर्थशास्त्र के अनुसार विश्व में उत्पादन एवं भोग में भारी वृद्धि के साथ-साथ रोग भी बढ़ते जा रहे हैं। अतः हमें नया अर्थशास्त्र बनाना होगा। नए अर्थशास्त्र के दो सिद्धांत होने चाहिएं। पहला सिद्धांत यह कि मनुष्य के अंतर्मन में छिपी इच्छाओं को पहचाना जाए और तदानुसार भोग किया जाए। जैसे यदि व्यक्ति की इच्छा आइसक्रीम खाने की हो और उसे केला खिलाया जाए, तो उस भोग से सुख नहीं मिलता है, लेकिन यदि उसके अंतर्मन की इच्छा आइसक्रीम खाने की है और उसे आइसक्रीम उपलब्ध कराई जाए, तो वास्तव में उसका सुख बढ़ता है। इसलिए वर्तमान अर्थशास्त्र के चेतन स्तर को पलटकर अचेतन से जोड़ना होगा। परिणाम होगा कि यदि अचेतन की इच्छा सितार बजाने की है अथवा प्रकृति में सैर करने की है, तो उसे उस दिशा में भोग उपलब्ध कराया जाए। अर्थशास्त्र में मार्केटिंग के माध्यम से हम जनता के चेतन में नई-नई भोग की इच्छाएं पैदा करते हैं। जैसे टेलीविजन के माध्यम से हमने मैगी-नूडल खाने की संस्कृति बना ली है। बच्चे के मन में मैगी खाने की इच्छा है या नहीं, यह हम नहीं देखते हैं। हम केवल यह देखते हैं कि बच्चे के चेतन में मैगी खाने की इच्छा पैदा करें। उसे मैगी खरीदने के लिए उकसाएं और मैगी बेचकर लाभ कमाएं। अतः अर्थशास्त्र का उद्देश्य ही बदलना होगा। अधिक भोग को उत्तरोत्तर बढ़ाने के स्थान पर हमें व्यक्ति को वह भोग उपलब्ध कराना होगा, जो उसके अंतर्मन के अनुकूल हो। वर्तमान अर्थशास्त्र में यदि व्यक्ति बीमार पड़ जाए और अस्पताल में भर्ती हो जाए, तो जीडीपी बढ़ जाता है। इस व्यवस्था को बदलना होगा। आधुनिक अर्थशास्त्र का दूसरा सिद्धांत है कि दीर्घकालीन उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए, जिसे सस्टेनेबल डिवेलपमेंट कहते हैं।
यह सिद्धांत ठीक अचेतन लाभ और हानि है और इसे ज्यादा प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। जैसे यदि व्यक्ति के अचेतन मन में आइसक्रीम खाने की इच्छा है, तो आइसक्रीम का उत्पादन इस प्रकार होना चाहिए कि उसमें बिजली की खपत कम हो और वह स्वास्थ्य को हानि न पहुंचाए। यानी पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन होना चाहिए। अपने अंतर्मन की तीव्र यात्रा की इच्छा को पूरा करने के लिए बुलेट ट्रेन चलाना ठीक है, लेकिन बुलेट ट्रेन को चलाने के लिए मैन्ग्रोव जंगलों को काटना अर्थशास्त्र के दीर्घकालिक सिद्धांतों के विपरीत है अथवा बिजली का उत्पादन करना एक बात है, लेकिन बिजली के उत्पादन को जंगल काटना, जिससे कम कार्बन सोखा जाए एवं बडे़ बांध बनाना, जिससे मीथेन का उत्सर्जन हो, यह अर्थशास्त्र के सिद्धांत के विपरीत है।
हमें नए अर्थशास्त्र को अपनाना होगा, जिसके दो सिद्धांत हैं। पहला सिद्धांत कि भोग से सुख नहीं मिलता है, अचेतन लाभ और हानि बल्कि अचेतन और चेतन के सामंजस्य से अथवा अचेतन में निहित इच्छाओं की पूर्ति मात्र से सुख मिलता है। इस सिद्धांत की परिभाषा करनी होगी और इसके अनुसार भोग का नया फार्मूला बनाना पड़ेगा। दूसरी बात कि अचेतन में निहित इच्छाओं की पूर्ति भी उत्पादन की ऐसी प्रक्रिया से करनी होगी, जो कि टिकाऊ तथा दीर्घकालिक विकास यानी सस्टेनेबल डिवेलपमेंट के अनुकूल हो। एयर कंडीशंड कमरों में रहने की अंतर्मन की इच्छा हो, लेकिन एयर कंडीशनर लगाने के लिए ऊर्जा की उपलब्धता न हो, तो अचेतन को समझाना होगा कि एयर कंडीशनर के स्थान पर वाटर कूलर से काम चलाया जाए। जब तक हम अर्थशास्त्र के इन दो सिद्धांतों को परिवर्तित नहीं करेंगे, तब तक आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी और संकट आते रहेंगे।
अचेतन लाभ और हानि
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Unrealized: हिंदी अनुवाद, अर्थ, समानार्थक शब्द, विलोम, उच्चारण, उदाहरण वाक्य, प्रतिलेखन, परिभाषा, वाक्यांश
american |ˌʌnˈriːəlaɪzd|
british |ʌnˈrɪəlʌɪzd|
समानार्थी
शब्द के साथ वाक्य «unrealized»
वाक्यांश
- it is unrealistic to expect - उम्मीद करना अवास्तविक है
- it is unrealistic / impossible - यह अवास्तविक / असंभव है
- it is unrealistic - यह अवास्तविक है
- feelings of unreality - असत्य की भावना
- seems to be unrealistic - अवास्तविक लगता है
- unrealized savings - अप्राप्त बचत
- unrealized losses - अप्राप्त नुकसान
- utterly unrealistic - पूरी तरह से अवास्तविक
- highly unrealistic - अत्यधिक अवास्तविक
- may be unrealistic - अवास्तविक हो सकता है
- appears unrealistic - अवास्तविक प्रतीत होता है
- not unrealistic - अवास्तविक नहीं
- unrealized gains or losses - अप्राप्त लाभ या हानि
- wholly unrealistic - पूरी तरह से अवास्तविक
- totally unrealistic - पूरी तरह से अवास्तविक
- unrealistic to expect - उम्मीद करने के लिए अवास्तविक
- simply unrealistic - बस अवास्तविक
- unrealised reserve - अवास्तविक रिजर्व
- Suddenly smitten with unreality - अचानक असत्य से मारा गया अचेतन लाभ और हानि
- be unrealistic about - के बारे में अवास्तविक होना
- somewhat unrealistic - कुछ हद तक अवास्तविक
- very unrealistic - बहुत अवास्तविक
- yet unrealised - अभी तक अचेतन
- Which is completely unrealistic - जो पूरी तरह से अवास्तविक है
- seemed unrealistic - अवास्तविक लग रहा था
- balances and unrealised gains - शेष और अप्राप्त लाभ
- it unrealistic - यह अवास्तविक
- any unrealised gains - कोई अप्राप्त लाभ
- an unrealized or unrealizable desire - एक अवास्तविक या अवास्तविक इच्छा
- completely unrealistic - पूरी तरह से अवास्तविक
- › «unrealized» अरबी अनुवाद
- › «unrealized» बंगाली अनुवाद
- › «unrealized» स्पेनिश अनुवाद
- › «unrealized» हिंदी अनुवाद
- › «unrealized» पुर्तगाली अनुवाद
- › «unrealized» हंगेरियन अनुवाद
- › «unrealized» यूक्रेनी अनुवाद
- › «unrealized» तुर्की अनुवाद
- › «unrealized» इतालवी अनुवाद
- › «unrealized» ग्रीक अनुवाद
- › «unrealized» क्रोएशियाई अनुवाद
- › «unrealized» फ़्रेंच अनुवाद
- › «unrealized» जर्मन अनुवाद
- › «unrealized» पोलिश अनुवाद
- › «unrealized» चेक अनुवाद
- beauty
- adorable
- exotic
- graduate
- noticing
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आज की प्रेरणा
प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना पड़ता है. मनुष्य अपने गुण धर्म के अनुसार काम करता है, फल पाता है. जब मनुष्य का मन प्राकृतिक गुणों के कारण विचलित होता है तो वो अपने काम को सम्पूर्णता से नहीं कर पाता. इसका मुख्य कारण मनुष्य कार्य करते हुए उसके लाभ हानि के विषय में सोचता है. कर्म से विमुख होकर कर्म फल से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है. भौतिकतावादी मनुष्यों के हृदय को पवित्र करने के लिए कर्मों का विधान किया गया है. जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों को वश में तो कर लेता है, किन्तु जिसका मन इन्द्रिय विषयों का चिंतन करता रहता है. वह निश्चित रूप से स्वयं को अचेतन लाभ और हानि धोखा देता है. वर्तमान जीवन में मनुष्य को जरूरत है कि अपने भीतर और बाहर दोनों का संतुलन बनाए रखे, मनुष्य अपना संतुलन रोजमर्रा के काम करते हुए प्राप्त कर सकता है. जो आशा रहित है तथा जिसने शरीर को संयमित किया है, जिसने सब परिग्रहों का त्याग किया है, ऐसा पुरुष शारीरिक कर्म करते हुए भी पाप को नहीं प्राप्त होता है. मनुष्य अपनी सारी बाहरी नई सुविधाओं के साथ आनंदमय नजर आएगा, बस जरूरत है कि आसक्ति हुए बिना अपने कार्य को श्रेष्ठ बनाया जाए. मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है, जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है. चेतन मन का लगभग 10वां हिस्सा होता है, जिसमें स्वयं तथा वातावरण के बारे में जानकारी रहती है. दैनिक कार्यों में व्यक्ति मन के इसी भाग को व्यवहार में लाता है. अचेतन मन का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा है, जिसके कार्य के बारे में व्यक्ति को जानकारी नहीं रहती. यह मन की स्वस्थ एवं अस्वस्थ क्रियाओं पर प्रभाव डालता है. अर्धचेतन या पूर्व चेतन मन के सचेतन तथा अचेतन के बीच का हिस्सा है. जिसे मनुष्य चाहने पर इस्तेमाल कर सकता है.