शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है

क्या है सेंसेक्स और कैसे घटता-बढ़ता है शेयर बाजार?
(Economy) और इससे जुड़े तथ्यों को आम जीवन से जोड़कर नहीं देख पाते. यही कारण है कि इन तथ्यों को बिजनेस की बातें समझकर हम ज्यादातर ध्यान नहीं देते हैं. हां, पर जब कोई न्यूज ब्रेकिंग न्यूज बनकर अखबारों, न्यूज चैनलों की सुर्खियों में होती है तो हम समझना जरूर चाहते हैं कि आखिर यह है क्या और इतना महत्वपूर्ण क्यों है? ऐसी ही खबरों में आजकल सेंसेक्स (Sensex) की खबर है. सेंसेक्स (Sensex) की खबरें यूं तो हर दिन होती हैं, किंतु आजकल लगभग हर अखबार और न्यूज चैनल पर इसकी खबरें प्रमुखता से आ रही हैं. रुपया गिरा तो सेंसेक्स गिरा, नारायण मूर्ति(Narayan Murthy) ने इंफोसिस (Infosys) दुबारा ज्वाइन किया तो सेंसेक्स उठा आदि. आखिर क्या है यह सेंसेक्स (Sensex) और इसके गिरने-उठने के कारण क्या हैं?
सेंसेक्स (Sensex) या संवेदी सूचकांक भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) का एक महत्वपूर्ण कारक है. सेंसेक्स (Sensex) का सामान्य अर्थ है सेंसिटिव इंडेक्स (sensitive index) या संवेदी सूचकांक. भारत में इसके अंतर्गत दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज मुंबई शेयर बाजार (Bombay Stock Exchange या BSE) तथा एनएसई (National Stock Exchange या NSE) आते हैं. सामान्यतया यह बीएसई (BSE) के लिए जाना जाता है. बीएसई (BSE) के अंतर्गत 30 प्रमुख भारतीय कंपनियां आती हैं. ये कंपनियां एक प्रकार से भारतीय बाजार का ट्रेंड सेट करने का काम करती हैं. सरल शब्दों में भारत की बड़ी कंपनियों के शेयरों की कीमतों (Shares Price) को आंकने के लिए एक सूचकांक बनाया गया है जो बाजार में इन कंपनियों के शेयरों की बढ़ती-घटती कीमतों पर नजर रखता है. यही सूचकांक सेंसेक्स (Sensex) कहलाता है.
कैसे बढ़ते-घटते हैं शेयरों के मूल्य?
(Shares Price) गिर रहे हैं, तो सेंसेक्स (Sensex) गिर जाता है.
शेयरों की कीमतों के गिरने-उठने का महत्वपूर्ण कारण होता है कंपनी का प्रदर्शन. अगर कंपनी ने बाजार में कोई नया, बड़ा, हिट प्रोजेक्ट लांच किया, तो कंपनी के शेयरों के दाम (Shares Price) बढ़ जाते हैं. इसी प्रकार कंपनी अगर किसी क्राइसिस या मुश्किल से गुजर रही हो, तो इसके शेयर के दाम (Shares Price) घट जाते हैं. अभी कुछ दिनों पहले इंफोसिस (Infosys) के भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों में दूसरे पायदान पर आने से उसके शेयरों के दाम (Shares Price) लगातार गिर रहे थे. इसी दबाव में इसके फाउंडर नारायण मूर्ति (Narayan Murthy) ने दुबारा कंपनी ज्वाइन की. लेकिन उनके ज्वाइन करते ही इंफोसिस (Infosys) के शेयर मूल्य (Shares Price) बढ़ गए. शेयरों के दाम घटना ‘सेंसेक्स में गिरावट’ कहलाता है और शेयरों के दाम (Shares Price) बढ़ना ‘सेंसेक्स में उछाल’ कहलाता है.
सेंसेक्स मापने का तरीका
(Free Float Market Capitalisation) विधि के द्वारा सेंसेक्स (Sensex) मापा जाता है.
सेंसेक्स का महत्व
शेयर बाजार किसी भी देश की अर्थव्यवस्था (Economy) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह बाजार में आवश्यक मनी फ्लो को बनाए रखता है. दूसरे शब्दों में बाजार तथा अर्थव्यवस्था (Economy) की तरलता को बनाए रखने में शेयर बाजार का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है.
जब शेयर मार्केट गिरता है तो कहां जाता है आपका पैसा? यहां समझिए इसका गणित
Share market: जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. आइए इसका जवाब बताते हैं.
- शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है
- अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है उसके शेयर के दाम बढ़ेंगे
- राजनीतिक घटनाओं का भी शेयर मार्केट पर पड़ता है असर
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नई दिल्ली: आपने शेयर मार्केट (Share Market) से जुड़ी तमाम खबरें सुनी होंगी. जिसमें शेयर मार्केट में गिरावट और बढ़त जैसी खबरें आम हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. इस सवाल का जवाब है नहीं. आपको बता दें कि शेयर मार्केट में डूबा हुआ पैसा गायब हो जाता है. आइए इसको समझाते हैं.
कंपनी के भविष्य को परख कर करते हैं निवेश
आपको पता होगा कि कंपनी शेयर मार्केट में उतरती हैं. इन कंपनियों के शेयरों पर निवेशक पैसा लगाते हैं. कंपनी के भविष्य को परख कर ही निवेशक और विश्लेषक शेयरों में निवेश करते हैं. जब कोई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उसके शेयरों को लोग ज्यादा खरीदते हैं और उसकी डिमांड बढ़ जाती है. ऐसे ही जब किसी कंपनी के बारे में ये अनुमान लगाया जाए कि भविष्य में उसका मुनाफा कम होगा, तो कंपनी के शेयर गिर जाते हैं.
डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है शेयर
शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है. लिहाजा दोनों ही परिस्थितियों में शेयरों का मूल्य घटता या बढ़ता जाता है. इस बात को ऐसे लसमझिए कि किसी कंपनी का शेयर आज 100 रुपये का है, लेकिन कल ये घट कर 80 रुपये का हो गया. ऐसे में निवेशक को सीधे तौर पर घाटा हुआ. वहीं जिसने 80 रुपये में शेयर खरीदा उसको भी कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन अगर फिर से ये शेयर 100 रुपये का हो जाता है, तब दूसरे निवेशक को फायदा होगा.
कैसे काम करता है शेयर बाजार
मान लीजिए किसी के पास एक अच्छा बिजनेस आइडिया है. लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए पैसा नहीं है. वो किसी निवेशक के पास गया लेकिन बात नहीं बनी और ज्यादा पैसे की जरूरत है. ऐसे में एक कंपनी बनाई जाएगी. वो कंपनी सेबी से संपर्क कर शेयर बाजार में उतरने की बात करती है. कागजी कार्रवाई पूरा करती है और फिर शेयर बाजार का खेल शुरू होता है. शेयर बाजार में आने के लिए नई कंपनी होना जरूरी नहीं है. पुरानी कंपनियां भी शेयर बाजार में आ सकती हैं.
शेयर का मतलब हिस्सा है. इसका मतलब जो कंपनियां शेयर बाजार या स्टॉक मार्केट में लिस्टेड होती हैं उनकी हिस्सेदारी बंटी रहती है. स्टॉक मार्केट में आने के लिए सेबी, बीएसई और एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) में रजिस्टर करवाना होता है. जिस कंपनी में कोई भी निवेशक शेयर खरीदता है वो उस कंपनी में हिस्सेदार हो जाता है. ये हिस्सेदारी खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करती है. शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. कंपनी और शेयरधारकों के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर्स ही करते हैं.
निफ्टी और सेंसेक्स कैसे तय होते हैं?
इन दोनों सूचकाकों को तय करने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है कंपनी का प्रदर्शन. अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो लोग उसके शेयर खरीदना चाहेंगे और शेयर की मांग बढ़ने से उसके दाम बढ़ेंगे. अगर कंपनी का प्रदर्शन खराब रहेगा तो लोग शेयर बेचना शुरू कर देंगे और शेयर की कीमतें गिरने लगती हैं.
इसके अलावा कई दूसरी चीजें हैं जिनसे निफ्टी और सेंसेक्स पर असर पड़ता है. मसलन भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बारिश अच्छी या खराब होने का असर भी शेयर मार्केट पर पड़ता है. खराब बारिश से बाजार में पैसा कम आएगा और मांग घटेगी. ऐसे में शेयर बाजार भी गिरता है. हर राजनीतिक घटना का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. चीन और अमेरिका के कारोबारी युद्ध से लेकर ईरान-अमेरिका तनाव का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. इन सब चीजों से व्यापार प्रभावित होते हैं.
इन तीन वजहों से शेयर बाजार में आई साल की सबसे बड़ी गिरावट, दो दिन में निवेशकों के 10 लाख करोड़ डूबे
Stock Market Crash Reasons: शेयर बाजार इकोनॉमी का सटीक बैरोमीटर तो नहीं है लेकिन इसके उतार-चढ़ाव से सेंटिमेंट का पता चलता है. पिछले दो सत्र में तीन बड़ी वजहों से सेंसेक्स में गिरावट आई है. जानिए शेयर बाजार में गिरावट के क्या हैं मुख्य कारण.
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 14 फरवरी 2022,
- (अपडेटेड 14 फरवरी 2022, 10:06 PM IST)
- Nifty के सभी 50 शेयर टूटे
- Nifty Bank भारी दबाव में रहा
BSE Sensex सोमवार को 1,747.08 अंक (3 फीसदी) लुढ़कर 56,405.08 अंक पर बंद हुआ. NSE Nifty भी इसी प्रकार 531.95 अंक (3.06 फीसदी) गिरकर 16,842.80 अंक पर बंद हुआ. घरेलू शेयर बाजारों में करीब एक साल भर में यह सबसे गिरावट रही. इससे पहले 26 फरवरी, 2021 को सेंसेक्स में 1,940 अंक और निफ्टी में 568 अंक की गिरावट आई थी. पिछले दो सत्र में शेयर बाजार में भारी गिरावट से निवेशकों को काफी अधिक नुकसान हुआ है. पिछले दो सत्र में बिकवाली की वजह से निवेशकों के 12.43 लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं. BSE का Combined Market Cap गुरुवार को 267.81 लाख करोड़ रुपये पर रहा था जो सोमवार को गिरकर 255.38 लाख करोड़ रुपये पर रह गया.
इन तीन वजहों से आई ये भारी गिरावट
1. रूस-यूक्रेन विवादः Hem Securities के हेड-पीएमएस मोहित निगम ने सेंटिमेंट में आई इस भारी गिरावट को लेकर कहा, "यूक्रेन-रूस के बीच बढ़ते तनाव, क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल और दशक में सबसे ज्यादा महंगाई की वजह से यूएस शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है फेड द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने की उम्मीद की वजह से थोड़े समय के लिए बाजार में निगेटिव सेंटिमेंट है. लेकिन हमारा मानना है कि यूक्रेन संकट की वजह से मौजूदा गिरावट देखने को मिल रही है और इसमें नरमी आने के बाद हम बाजार में दोबारा मजबूत तेजी देख सकते हैं."
2. ABG Shipyard Fraud: सीबीआई ने पिछले सप्ताह इस मामले में FIR दर्ज की. यह देश के सबसे बड़े बैंकिंग फ्रॉड में से एक है. यूक्रेन संकट के साथ-साथ एबीजी शिपयार्ड (ABG Shipyard Ltd) फ्रॉड से जुड़े डेवलपमेंट की वजह से शेयर बाजार में और अधिक गिरावट देखने को मिली. इस फ्रॉड की वजह से प्राइवेट सेक्टर और पीएसयू बैंक (Bank Share) दोनों के शेयरों पर असर देखने को मिला. इस घोटाले के दंश की वजह से सोमवार को Nifty Bank 4.18 फीसदी लुढ़क गया.
3. FPI की निकासी: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने फरवरी के पहले 11 दिन में 14,935 करोड़ रुपये की निकासी की है. इस तरह देखा जाए तो लगातार चौथे महीने में FPIs बिकवाल बने हुए हैं. इसका असर भी घरेलू शेयर बाजार पर देखने को मिल रहा है. FPI निवेश से मोटे तौर पर बाजार में सेंटिमेंट का पता चलता है.
Nifty के सभी 50 शेयर टूटे
पिछले दो सत्र में निफ्टी इंडेक्स के सभी 50 शेयर लाल निशान के साथ बंद हुए. इंडेक्स पर पिछले दो सत्र में HDFC Life Insurance के शेयरों में सबसे ज्यादा 8.04 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है. इसके बाद HDFC (7.50 फीसदी), स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (7.46 फीसदी) और Tata Motors (7.18 फीसदी) का स्थान आता है. UPL, Shree Cement, Kotak Mahindra Bank, JSW Steel, ICICI Bank, ITC, Tech Mahindra, Larsen & Toubro, Bajaj Finance, Ultratech Cement, Adani Ports, Tata Steel और Maruti Suzuki के शेयरों में पांच फीसद से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है.
शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव क्यों होता है?
जब किसी कंपनी के शेयरों को खरीदने वाले लोग अधिक हों और उसके कम शेयर बिक्री के लिए उपलब्ध हों, तो शेयरों का भाव बढ़ जाता है
अब हम आपको बताते हैं कि किस वजह से शेयर बाजार शेयर मार्केट डाउन क्यूँ होता है में उतार-चढ़ाव आता है और शेयरों के भाव चढ़ते-गिरते हैं:
आम समझ यह है कि जब किसी कंपनी के शेयरों को खरीदने वाले लोग अधिक हों और उसके कम शेयर बिक्री के लिए उपलब्ध हों, तो शेयरों का भाव बढ़ जाता है. इसके साथ ही कई अन्य वजहें भी हैं, जिनकी वजह से शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव आता है.
यदि दो देशों के बीच कारोबारी और रणनीतिक संबंध बेहतर बनने की उम्मीद हो तो अर्थव्यवस्था की तरक्की के हिसाब से निवेशक शेयर बाजार में पैसे लगाते हैं.
मसलन भारत-चीन के बीच बेहतर कारोबारी संबंध से अमेरिकी या यूरोपीय निवेशकों को भारत की ग्रोथ रेट बेहतर होने की उम्मीद बढ़ जाती है. वे भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना शुरू करते हैं.
इन कारणों का भी पड़ता है असर:
* भारत कृषि प्रधान देश है. अगर मौसम विभाग मानसून की अच्छी बारिश का अनुमान लगाता है तो शेयर बाजार में तेजी आती है. निवेशक यह अनुमान लगाते हैं कि अच्छी बारिश से अनाज का ज्यादा उत्पादन होगा. मतलब यह कि कृषि आधारित उद्योग की तरक्की ज्यादा होगी.
इन उद्योग में ट्रैक्टर, खाद, बीज, कीटनाशक, बाइक एवं FMCG कंपनियां शामिल हैं. निवेशकों को लगता है कि इन कंपनियों का कारोबार और मुनाफा बढ़ेगा. इनसे जुड़ी कंपनियों के शेयरों की खरीदारी बढ़ जाती है.
* यदि रिज़र्व बैंक मैद्रिक नीति की घोषणा में ब्याज दर में कमी करे तो कर्ज की दर सस्ती होगी. इससे बैंक से लोन लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी और अंत में बैंकों का लाभ बढ़ेगा. इस वजह से निवेशक बैंक एवं NBFC के शेयरों की खरीदारी करते हैं और उनके भाव में तेजी आती है.
* RBI की मौद्रिक समीक्षा (ब्याज दर में कमी या वृद्धि), सरकार की राजकोषीय नीति (कर की दरों में तेजी-नरमी), वाणिज्य नीति, औद्योगिक नीति, कृषि नीति आदि में किसी बदलाव की वजह से इन क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों के शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव होता है.
*अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बदलाव पर दुनिया भर की नजरें होती हैं. निवेशक मानते हैं कि अगर अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ीं तो विदेशी निवेशक भारत जैसे बाजार से पैसे निकल कर वहां लगायेंगे. इस वजह से यहां शेयर बाजार में बिकवाली शुरू हो जाती है. इससे बाजार में कमजोरी आती है.
*अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम भी शेयरों के भाव पर असर डालते हैं. हाल में शुरू ट्रेड वार, उत्तर-कोरिया विवाद, रूस-अमेरिका विवाद की वजह से युद्ध की आशंका की वजह से निवेशक शेयर से पैसे निकाल कर सोने में निवेश करते हैं. इस वजह से शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव होता है.
* बजट पेश करने के दौरान की गयी सरकार की पॉजिटिव या निगेटिव घोषणाओं की वजह से भी शेयरों के भाव ऊपर-नीचे होते हैं.
* देश में राजनीतिक स्थिरता (बहुमत की सरकार या गठबंधन की), राजनीतिक वातावरण जैसे कारण भी निवेशकों के निर्णय को काफी हद तक प्रभावित करते हैं. राज्यों के विधानसभा नतीजे भी शेयर बाजार पर असर डालते हैं. मौजूदा सरकार की जीत से उसकी नीतियों के जारी रहने का भरोसा बना रहता है, इससे निवेशक खरीदारी शुरू करते हैं जिससे बाजार में तेजी आती है.
* समूह प्रभाव (herd effect) की वजह से भी शेयर बाजार में अधिक बिकवाली या खरीदारी की जाती है. इसकी वजह कभी कोई अफवाह या गुप्त जानकारी हो सकती है. बड़ी संख्या में एक साथ बिकवाली या खरीदारी की वजह से शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव होता है. कभी-कभी शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव डर या अनिश्चितता की वजह से भी होता है.
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आखिर क्यों गिर रहे हैं भारतीय शेयर बाजार? हर निवेशक को जानने चाहिए ये कारण
ग्लोबल संकट की वजह से न केवल भारत बल्कि दूसरे देशों के बाजारों में भी भारी बिकवाली हो रही है.
ग्लोबल संकट की वजह से न केवल भारत बल्कि दूसरे देशों के बाजारों में भी भारी बिकवाली हो रही है. इसके पीछे कई फैक्टर काम कर रहे हैं, जैसे कि रूस-यूक्रेन का संकट, अमेरिका में महंगाई दर का ऊपरी स्तर पर पहुंचना, इत्यादि.
- News18Hindi
- Last Updated : May 12, 2022, 15:54 IST
नई दिल्ली. आप सोच रहे होंगे कि भारतीय शेयर बाजार पिछले कुछ महीनों से क्यों गिर रहे हैं? सेंसेक्स 2022 में ही 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दिखा चुका है. इसी तरह निफ्टी में भी लगभग इसी समय के दौरान इतनी ही गिरावट आई है. आज, 12 मई, गुरुवार को भी निफ्टी और सेंसेक्स गैपडाउन खुले और फिर और गिर गए. खबर लिखे जाने तक (2:35 बजे तक) सेंसेक्स 1280 और निफ्टी 418 अंकों की गिरावट के साथ ट्रेड कर रहे थे. दरअसल, यह गिरावट केवल भारत के शेयर बाजार में ही नहीं है, दुनियाभर के बाजारों में इसी तरह का संकट है.
चूंकि ये संकट दुनियाभर के तमाम बाजारों में है तो इसके लिए किसी एक देश के हालातों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. इसे ग्लोबल संकट कहा जाए तो गलत नहीं. और इसमें कोई एक फैक्टर काम नहीं कर रहा है, बल्कि कई अलग-अलग फैक्टर हैं. तो इस खबर में आपको उन तमाम फैक्टर्स के बारे में बताएंगे, जो फिलहाल बाजार को सिर उठाने नहीं दे रहे.
रूस-यूक्रेन का संकट
इसी साल 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता था, जोकि रूस को नागवार गुजरा. नाटो ने यूक्रेन को पीछे से सपोर्ट किया, लेकिन खुलकर यूक्रेन की तरफ से मैदान में नहीं उतरा. माना जा रहा था कि 10-15 दिनों में मामला शांत हो जाएगा. लेकिन एक महीना बीता, फिर दो और लगभग 3 महीने पूरे होने को हैं, मगर अभी तक कोई हल नहीं निकला है.
इस संकट के चलते दुनियाभर में महंगाई बढ़ने लगी. क्रूड ऑयल के दाम आसमान छूने लगे. गेहूं के बड़े उत्पादकों में शामिल यूक्रेन इस बार दूसरे देशों को गेहूं नहीं दे पाएगा. ऐसे में महंगाई लगातार बढ़ रही है. महंगाई के चलते दुनियाभर की सरकारें इकोनॉमी के लेकर कड़े फैसले लेने को मजबूर हैं, जो सीधा-सीधा बाजारों को प्रभावित कर रहे हैं. रूस-यूक्रेन संकट अगर और लंबा खिंचा तो बाजार में और गिरावट की भी संभावना है.
अमेरिका की महंगाई दर
जैसा कि आप जानते ही हैं कि भारतीय बाजार अमेरिका शेयर बाजार को काफी फॉलो करते हैं. लेकिन नैस्डैक 30 मार्च 2022 में ही 20 फीसदी से अधिक गिर चुका है. ऐसे में भारतीय बाजारों में भी नकारात्मकता बनी हुई है. दरअसल, अमेरिकी बाजारों के गिरने की मुख्य वजह वहां की महंगाई दर है, जोकि अपने 40 सालों के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है.
ऐसे में अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पास ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प बचा नहीं था. फेड दो बार आधा-आधा फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है. अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से भारत सहित उभरते बाजारों में बड़े निवेशकों की दिलचस्पी कम हुई है. विदेशी फंडों को लगातार बाजारों के लिए खींचा जा रहा है.
मनीकंट्रोल की एक खबर के मुताबिक, फॉरेन इनवेस्टर्स पिछले साल से ही भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. अब उन्होंने बिकवाली और बढ़ा दी है. इस साल अब तक फॉरेन फंडों ने इंडियन मार्केट्स में 1,44,565 करोड़ रुपये की बिकवाली की है. सिर्फ मई महीने में वे 17,403 करोड़ रुपये की बिकवाली कर चुके हैं. हालांकि म्यूचुअल फंड्स जैसे घरेलू बड़े निवेशकों ने खरीदारी कर बाजार को संभालने की कोशिश की है.
अब आगे क्या?
रूस-यूक्रेन के संकट का समाधान शायद जल्द नहीं होने वाला. लेकिन अमेरिका में महंगाई में मामूली गिरावट जरूर आई है. लेकिन एक्सपर्ट्स इसे अभी बहुत पॉजिटिव नहीं मानते. मार्च में अमेरिका में महंगाई की दर 8.5 फीसदी थी. बुधवार को अमेरिका में अप्रैल की महंगाई दर का आंकड़ा 8.3 फीसदी आया है, जोकि अनुमान (8.1 फीसदी) से अधिक है. ऐसे में समझा जा रहा है कि आने वाले समय में फेडरल रिजर्व आक्रामक रूप से इंटरेस्ट रेट बढ़ा सकता है.
यही वजह रही कि बुधवार को अमेरिकी बाजारों में एक बार फिर बड़ी गिरावट आई. इसका असर इंडिया सहित दूसरे मार्केट्स पर पड़ा है. उधर, डॉलर दो दशक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है. इसकी वजह भी अमेरिका में इंटरेस्ट रेट बढ़ना है. डॉलर में मजबूती का असर भी भारत सहित उभरते बाजारों पर पड़ रहा है. दुनिया की प्रमुख 6 करेंसियों के बास्केट के मुकाबले डॉलर इंडेक्स बढ़कर 103 के पार निकल गया है. यह भारत सहित तमाम उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ठीक नहीं है.
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