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लेनदेन इतिहास

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एडिटोरियल

यह एडिटोरियल 16/11/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “How we can further our efforts in curbing terror financing” लेख पर आधारित है। इसमें आतंकी वित्तपोषण और इससे संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

आज पूरी दुनिया में आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। अस्पष्ट रूप एवं चरित्रों के विभिन्न आतंकवादी समूह, नए किस्म का साइबर आतंकवाद, बढ़ते ‘लोन वुल्फ’ हमले—ये सभी हिंसा के अशुभ खतरों को बढ़ा रहे हैं। भारत ने आतंकवाद का आघात झेला है और पिछले कुछ दशकों में कई बड़े शहरों में विवेकहीन हिंसक विस्फोटों में जान-माल की गंभीर हानि देखी है।

प्रौद्योगिकी और संचार में परिवर्तनों एवं प्रगति के साथ जैसे-जैसे दुनिया सिकुड़ती जा रही है, आतंकवादियों, हथियारों और धन का राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार जाना भी सरल होता जा रहा है। इस परिदृश्य में विभिन्न देशों के कानून प्रवर्तन प्राधिकारों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग स्थापित करना ऐसी सीमा पार चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये अनिवार्य हो गया है।

आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये भारत की प्रमुख पहलें

  • 26/11 आतंकवादी हमले के बाद भारत ने आतंकवाद को लेकर एक बेहद गंभीर रुख अपनाया है। लेनदेन इतिहास जनवरी 2009 में आतंकी अपराधों से निपटने के लिये राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) की स्थापना की गई थी।
  • भारत में गैरकानूनी गतिविधियाँ(रोकथाम) संशोधन अधिनियम(Unlawful Activities (लेनदेन इतिहास Prevention) Amendment Act- UAPA) प्राथमिक आतंकवाद विरोधी कानून है।
  • सुरक्षा से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिये नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) की स्थापना की गई है।
  • आतंकवादी हमलों पर त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड(National Security Guard- NSG) हेतु एक ऑपरेशनल हब का सृजन किया गया है ।

आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पहलें

भारत में आतंकवाद से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • आतंकवाद की कोई वैश्विक परिभाषा नहीं: आतंकवाद के संघटन के संदर्भ में इसकी कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, इसलिये किसी गतिविधि/कृत्य विशेष को आतंकवादी कृत्य के रूप में वर्गीकृत करना कठिन है, जो फिर आतंकवादियों को एक बढ़त प्रदान करती है और कुछ देशों को चुप रहने तथा वैश्विक संस्थाओं के पटल पर किसी भी कार्रवाई को वीटो करने का अवसर देती है।
  • आतंकवादका बढ़ता जाल: इंटरनेट एक अपेक्षाकृत अनियमित एवं अप्रतिबंधित स्थान प्रदान करता है जहाँ आतंकवादी वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों की असीमित संख्या के माध्यम से अपना प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। वे इनके इस्तेमाल से अपने संगठन में शामिल होने और उनकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिये हज़ारों संभावित नए रंगरूटों को लक्षित कर सकते हैं।
  • आतंकवाद का वित्तपोषण:अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक के अनुसार अपराधियों द्वारा प्रत्येक वर्ष अनुमानित रूप से दो से चार ट्रिलियन डॉलर की मनी-लौन्डरिंग की जाती है। आतंकवादियों द्वारा धन के लेनदेन को दान और वैकल्पिक प्रेषण प्रणालियों की आड़ में भी अंजाम दिया जाता है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को कलंकित करता है और प्रणाली की अखंडता में जनता के भरोसे का क्षरण करता है।
    • इसके अलावा, क्रिप्टोकरेंसी के विनियमन की कमी इसे आतंकवादियों के लिये अनुकूल ‘ब्रीडिंग ग्राउंड’ बना सकती है।
    • विश्व भर में खाद्य सुरक्षा को बाधित करने के लिये उष्णकटिबंधीय कृषि रोगजनकों या कीटों को भी एंटीक्रॉप एजेंटों के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

    आगे की राह

    • साइबर-रक्षा तंत्र का विकास: साइबर आतंकवाद से निपटने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है, चाहे वह साइबर सर्च अभियान के संचालन के संबंध में हो या साइबर हमलों के लेनदेन इतिहास लेनदेन इतिहास विरुद्ध प्रतिउपायों के दायरे का विस्तार करने के संबंध में हो।
      • साइबर सुरक्षा पर एक स्पष्ट सार्वजनिक रुख सरकार में नागरिकों के भरोसे को बढ़ावा देगा और इस प्रकार एक अधिक संलग्नकारी, स्थिर और सुरक्षित साइबर पारितंत्र को सक्षम करेगा।
      • आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा को स्वीकार करना और आतंकवाद के प्रायोजक राष्ट्रों पर वैश्विक प्रतिबंध लगाना शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
      • इसके साथ ही, त्वरित परीक्षण (speedy trials) करने के लिये भारत को अपनी राष्ट्रीय आपराधिक न्याय प्रणाली को उन्नत करने और आतंकवाद के विरुद्ध सख्त कानूनी प्रोटोकॉल लागू करने की भी आवश्यकता है।
      • भारत द्वारा दिल्ली में ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन की मेजबानी करना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
      • इसके साथ ही, आर्थिक और सामाजिक असमानताओं से निपटने के लिये नीतियों के निर्माण से असंतुष्ट युवाओं को आतंकवाद की ओर आकर्षित होने से रोकने में मदद मिलेगी।

      अभ्यास प्रश्न: प्रौद्योगिकीय प्रगति के साथ-साथ आतंकवाद के विकास पर चर्चा कीजिये। आतंकवाद के खतरे को रोकने के लिये अपनाए जा सकने वाले उपायों के सुझाव भी दीजिये।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न

      प्रिलिम्स

      प्र. 'हैंड-इन-हैंड 2007' एक संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय सेना के अधिकारियों और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (2008)

      (A) चीन
      (लेनदेन इतिहास B) जापान
      (C) रूस
      (D) अमेरिका

      उत्तर: (A)

      मेन्स

      प्र . आतंकवाद का अभिशाप राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती है। इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिय आप क्या उपाय सुझाएंगे? आतंकवादी फंडिंग के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)

      हड़प्पा सभ्यता की मुहरें

      हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से पृथ्वी में दबी मुहरें निकलीं, जो पत्थर, टेराकोटा और तांबे से बनी थीं। वो आयताकार, गोलाकार या बेलनाकार भी होती हैं।

      हड़प्पा सभ्यता की मुहरें खुदाई से पृथ्वी से निकलीं, जो साबुन के पत्थर, टेराकोटा और तांबे से बनी थीं। इन छोटी वस्तुओं को पत्थर से खूबसूरती से उकेरा गया है और फिर उन्हें और अधिक टिकाऊ बनाने के लिए निकाल दिया गया है। अब तक 3,500 से अधिक मुहरें मिल चुकी हैं। मुहरें आयताकार, गोलाकार या बेलनाकार भी होती हैं।

      मुहरें हमें सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में उपयोगी जानकारी देती हैं। मुहरों पर पाए जाने वाले जानवरों में गैंडा, हाथी, गेंडा और बैल शामिल हैं। पीठ पर एक प्रक्षेपण है, संभवतः मिट्टी जैसे अन्य सामग्रियों में मुहर को दबाते समय पकड़ना। अनुमानों में धागे के लिए एक छेद भी होता है, संभवतः इसलिए मुहर को पहना जा सकता है या हार की तरह ले जाया जा सकता है।

      मुहर पर लेखन

      मुहर के शीर्ष पर प्रतीकों को आमतौर पर सिंधु घाटी भाषा की लिपि बनाने के लिए माना जाता है। इसी तरह के निशान बर्तनों और नोटिस बोर्ड सहित अन्य वस्तुओं पर भी पाए गए हैं। ये इंगित करते हैं कि लोगों ने पहली पंक्ति को दाएं से बाएं, दूसरी पंक्ति को बाएं से दाएं, और इसी तरह लिखा।

      लगभग 400 विभिन्न प्रतीकों को सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन लिपि अभी भी समझ में नहीं आई है। मुहरों पर शिलालेख व्यापारिक लेनदेन से संबंधित माना जाता है, संभवतः व्यापारियों, निर्माताओं या कारखानों की पहचान का संकेत देते हैं।

      मुहरों ने हमें व्यापार के बारे में क्या बताया?

      जार के मुंह को सील करने के लिए मुहरों को नरम मिट्टी में दबाया गया था और जैसा कि कुछ मुहर छापों के पीछे कपड़े की छाप से सुझाव दिया गया था, लेनदेन इतिहास अनाज जैसे व्यापारिक सामानों की बोरियों के लिए मिट्टी के टैग बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था।

      सिंधु घाटी की मुहरें मध्य एशिया के उम्मा और उर शहरों में और अरब प्रायद्वीप के तट पर मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) के रूप में दूर तक पाई गई हैं। पश्चिमी भारत में लोथल बंदरगाह पर बड़ी संख्या में मुहरें मिली हैं।

      सिंधु घाटी के शहरों में खोजे गए मेसोपोटामिया के खोज इस बात की पुष्टि करते हैं कि इन दो सभ्यताओं के बीच व्यापार हुआ था। कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि मेसोपोटामिया में सोने, तांबे और गहनों के व्यापार के लिखित रिकॉर्ड सिंधु घाटी का उल्लेख कर सकते हैं। सिंधु सभ्यता एक व्यापक लंबी दूरी के व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा थी।

      महत्वपूर्ण मुहर

      पशुपति मुहर: इस मुहर में एक योगी, शायद भगवान शिव को दर्शाया गया है। सींगों का एक जोड़ा उसके सिर का ताज पहनाता है। वह एक गैंडे, एक भैंस, एक हाथी और एक बाघ से घिरा हुआ है। उसके सिंहासन के नीचे दो हिरण हैं। इस मुहर से पता चलता है कि शिव की पूजा की जाती थी और उन्हें जानवरों का भगवान (पशुपति) माना जाता था।

      गेंडा सील: गेंडा एक पौराणिक जानवर है। इस मुहर से पता चलता है कि सभ्यता के बहुत प्रारंभिक चरण में, मनुष्यों ने पक्षी और पशु रूपांकनों के आकार में कल्पना की कई रचनाएँ बनाई थीं जो बाद की कला में बची रहीं।

      बैल सील: इस मुहर में बड़े जोश के कूबड़ वाले बैल को दर्शाया गया है। यह आंकड़ा कलात्मक कौशल और पशु शरीर रचना का अच्छा ज्ञान दिखाता है।

      द यूनिकॉर्न एंड पीपल ट्री सील: 1920 के दशक में व्हीलर द्वारा मिली मोहनजो-दारो की एक सील। उनके 1931 के पाठ से: “[मुहर] पर पौधे की पहचान एक पीपल के पेड़ के रूप में की गई है, जो भारत में सृजन का पेड़ है। व्यवस्था बहुत पारंपरिक है और तने के निचले हिस्से से दो सिर समान हैं। तथाकथित गेंडा।”

      मोहनजो-दड़ो से बहु-पशु मुहर: मोहनजो-दारो से सील जानवरों के संग्रह और कुछ लिपि प्रतीकों को दर्शाती है। इस टेराकोटा सीलिंग का उपयोग विशिष्ट अनुष्ठानों में एक कथात्मक टोकन के रूप में किया गया हो सकता है जो एक महत्वपूर्ण मिथक की कहानी बताता है।

      वर्ल्ड वाइड वेब: आविष्कार, इतिहास और उपयोग

      पहला वेब ब्राउज़र वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) 1980 के दशक के सेकंड हाफ में टिम बर्नर्स-ली द्वारा खोजा गया था. यह मूल रूप से इंटरनेट सर्वर की एक प्रणाली है जो विशेष रूप से स्वरूपित दस्तावेजों का समर्थन करती है. आइये इस लेख के माध्यम से वर्ल्ड वाइड वेब के बारे में आविष्कार, इतिहास, लाभ, नुकसान इत्यादि विस्तार से अध्ययन करते हैं.

      World Wide Web: Invention, History and Uses

      हमारे जीवन में इंटरनेट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आजकल थोड़ी-सी जानकारी के लिए भी हम इंटरनेट पर निर्भर रहते हैं जैसे कि रिसर्च करना, अपने धन का प्रबंधन करना, देश भर में प्रियजनों के साथ संपर्क रखना इत्यादि. देखा जाए तो व्यापार की दुनिया भी ज्यादातर इंटरनेट पर निर्भर है, वित्तीय लेनदेन सेकंड में नियंत्रित किए जाते हैं और संचार भी तात्कालिक इन्टरनेट के माध्यम से हो जाता है. यहां तक कि सरकारें भी अपने दैनिक कार्यों इत्यादि का प्रबंधन करने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं. वर्ल्ड वाइड वेब इंटरनेट का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है क्योंकि इसके बिना एक-दूसरे से जुड़ना बहुत मुश्किल है.

      इन्टरनेट का इस्तेमाल करते वक्त क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि किसी भी वेबसाइट के एड्रेस से पहले लगने वाला www का क्या अर्थ होता है? इसका अविष्कार किसने किया और कब? इसका इतिहास क्या है? इसके क्या फायदे और नुक्सान हैं इत्यादि. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

      वर्ल्ड वाइड वेब क्या है?

      यह हाइपरटेक्स्ट मार्क-अप भाषा या HTML का उपयोग करके हाइपरमीडिया को संदर्भित करता है. इसे WWW, W3 या web के नाम से भी जाना जाता है. यह इन्टरनेट पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली सर्विस है. इसके जरिये कई सारे वेब servers और क्लाइंट्स एक साथ जुड़ते है. ये हम सब जानते हैं कि वेब सर्वर के HTML डाक्यूमेंट्स में images, videos और अलग-अलग प्रकार के ऑनलाइन कंटेंट्स स्टोर रहते हैं जिन्हें वेब की मदद से एक्सेस किया जा सकता है. यहीं आपको बता दें कि हाइपरटेक्स्ट डॉक्यूमेंट में कोई भी शब्द एक पॉइंटर के रूप में एक अलग हाइपरटेक्स्ट डॉक्यूमेंट में निर्दिष्ट किया जा सकता है जहाँ उस शब्द से संबंधित अधिक जानकारी मिल सकती है.

      WWW एक प्रकार का इनफार्मेशन स्पेस है जहां पर डाक्यूमेंट्स और अन्य संसाधनों की पहचान यूनिफ़ॉर्म रिसोर्स लोकेटर यूआरएल जैसे https://www.example.com द्वारा की जाती है जो हाइपरटेक्स्ट द्वारा इंटरलिंक हो सकते हैं और इंटरनेट के लेनदेन इतिहास माध्यम से एक्सेस किए जा सकते हैं. WWW संसाधनों को वेब ब्राउज़र के रूप में जाना जाने वाले सॉफ़्टवेयर एप्लिकेशन के माध्यम से उपयोगकर्ताओं द्वारा एक्सेस किया जाता है.

      इसलिए, ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि दुनियाभर में जितने भी वेबसाइटस और वेब पेजेज हैं जिन्हें आप अपने वेब ब्राउज़र पर देखते हैं वे सभी वेब से जुड़े होते हैं और इन्हें एक्सेस करने के लिए हाइपरटेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया जाता है. ये सारे वेब servers का एक प्रकार का कलेक्शन ही तो है. अधिक समझने के लिए जब किसी ब्राउज़र के एड्रेस बार पर किसी वेबसाइट के URL से पहले www लगा हो तो इसका अर्थ है कि वह वेबसाइट किसी वेब सर्वर पर स्टोर है जो कि वेब से जुड़ा हुआ है इसीलिए ही तो उसे एक्सेस करने के लिए www की मदद ली जाती है.

      क्या आप जानते हैं कि हाइपरटेक्स्ट क्या होता है?

      हाइपरटेक्स्ट का मतलब है कि यह एक ऐसा टेक्स्ट है जिसमें अन्य टेक्स्ट के 'लिंक' होते हैं और जरूरी नहीं है कि वह लीनियर हों. यह शब्द 1965 के आसपास टेड नेल्सन द्वारा इस्तेमाल किया गया था.

      वर्ल्ड वाइड वेब का इतिहास?

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      1989 में, CERN में काम करते हुए, ब्रिटिश वैज्ञानिक टीम बेर्नेर्स–ली ने वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) का आविष्कार किया. यह दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और संस्थानों में वैज्ञानिकों के बीच स्वचालित सूचना-साझाकरण की मांग को पूरा करने के लिए विकसित किया गया था. क्या आप जानते हैं कि CERN एक अलग प्रयोगशाला नहीं है; इसमें 100 से अधिक देशों के लगभग 17,000 वैज्ञानिक शामिल हैं. WWW का मूल विचार कंप्यूटर, डेटा नेटवर्क और हाइपरटेक्स्ट की विकसित तकनीकों को वैश्विक सूचना प्रणाली का एक शक्तिशाली और आसान उपयोग में विलय करना था.

      आपको बता दें कि मार्च 1989 में टीम बर्नर्स-ली ने WWW के लिए पहला प्रस्ताव और मई 1990 में लेनदेन इतिहास अपना दूसरा प्रस्ताव लिखा था. नवंबर 1990 में, रॉबर्ट कैलीयू (Robert Cailliu) के साथ बेल्जियम के सिस्टम इंजीनियर के रूप में इस प्रणाली को प्रबंधन प्रस्ताव के रूप में औपचारिक रूप दिया गया था. इस डाक्यूमेंट्स में हाइपरटेक्स्ट डॉक्यूमेंट के वेब ब्राउज़र को देखा जा सकता है. 1992 में इलिनोइस विश्वविद्यालय ने पहला वेब ब्राउज़र पेश किया, एक ऑनलाइन सर्च टूल, जो वेब पर मौजूद सभी सूचनाओं को "surfs" करता है, मैच का पता लगाता है, और फिर रिजल्ट्स को रैंक करता है.

      वर्ल्ड वाइड वेब कैसे कार्य करता है?

      जब कोई यूजर वेब डॉक्यूमेंट को खोलता है तो वह इसके लिए एक प्रकार की एप्लीकेशन का इस्तेमाल करता है जिसे वेब ब्राउज़र कहते हैं. जब किसी वेब ब्राउज़र मैं डोमेन या URL का नाम लिखा जाता है तो ब्राउज़र http के डोमेन एड्रेस को खोजने की रिक्वेस्ट generate करता है क्योंकि हर डोमेन का अपना अलग एड्रेस होता है. इसके बाद ब्राउज़र डोमेन name को सर्वर IP एड्रेस में बदल देता है. जिसको www उस सर्वर में सर्च करता है. जब एड्रेस वह सर्वर जिससे डोमेन को होस्ट किया गया है वह मैच हो जाता है तो सर्वर उस पेज को ब्राउज़र के पास वापस भेज देता है. जिसको आप अपने वेब ब्राउज़र पर आसानी से देख सकते है.

      वर्ल्ड वाइड वेब के लाभ

      - जानकारी की उपलब्धता और दुनिया भर से आसानी से कांटेक्ट स्थापित किया जा सकता है.
      - प्रकटीकरण (divulgation) की लागत को कम करता है.
      - रैपिड इंटरैक्टिव संचार जो विभिन्न सेवाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
      - प्रोफेशनल कांटेक्ट की स्थापना के साथ-साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान.
      - प्रारंभिक कनेक्शन की कम लागत.
      - जानकारी के विभिन्न स्रोतों तक पहुंच को सुगम बनाता है, जो लगातार अपडेट किया जाता है.
      - यह एक प्रकार का वैश्विक मीडिया (global media) बन गया है.

      कुछ नुकसान इस प्रकार हैं:
      - ओवरलोड और अधिक जानकारी का खतरा.
      - कुशल सूचना खोज रणनीति की आवश्यकता है.
      - सर्च धीमा हो सकता है.
      - जानकारी को फ़िल्टर करना और प्राथमिकता देना मुश्किल हो सकता है.
      - नेट भी ओवरलोड हो जाता है क्योंकि बड़ी संख्या में उपयोगकर्ता इसका इस्तेमाल करते हैं.
      - उपलब्ध डेटा इत्यादि पर गुणवत्ता का नियंत्रण करना कठिन हो सकता है.

      ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि वर्ल्ड वाइड वेब हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज या HTML का उपयोग करने वाला हाइपरमीडिया है. यह अनूठी भाषा उपयोगकर्ता को उन सूचनाओं तक पहुंचने में मदद करेगी जो लिंक की जाती हैं ताकि जब कोई व्यक्ति किसी लिंक के एक हिस्से पर चयन या क्लिक करे तो स्वचालित रूप से निर्दिष्ट जानकारी मिल जाए. अनूठी विशेषता यह है कि यह उपयोगकर्ताओं को एक शब्द पर 'क्लिक' करने का अधिकार देता है और इससे संबंधित वेब स्थान पर भी ले जाता है.

      ऐसे ऑनलाइन देख सकते हैं अपने आधार प्रमाणीकरण का इतिहास, जानें

      ऐसे ऑनलाइन देख सकते हैं अपने आधार प्रमाणीकरण का इतिहास, जानें

      कई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े होने की वजह से आधार आपके द्वारा धारण किए जानें वाला सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों में से एक है। इसके साथ ही यह पहचान का एक महत्वपूर्ण प्रमाण भी है, जो हर जगह काम आता है। अगर आपको लगता है कि आपके आधार डाटा के साथ छेड़छाड़ की गई है, तो आप आधार कार्ड के प्रमाणीकरण इतिहास की जाँच ऑनलाइन कर सकते हैं। इसके लिए आपको बस यह करना होगा।

      अपना आधार प्रमाणीकरण देखने के लिए सबसे पहले आधिकारिक UIDAI वेबसाइट पर क्लिक करना होगा। इसके बाद 'मेरा आधार' ड्रॉप-डाउन मेन्यू के अंतर्गत 'आधार सेवाएँ' अनुभाग में 'आधार प्रमाणीकरण इतिहास' लिंक पर क्लिक करें। वहाँ आप अपना UID/VID और स्क्रीन पर दिख रहा सुरक्षा कोड दर्ज करें। उसके बाद 'Send OTP' पर क्लिक करें। इसके बाद आधार से रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक OTP आएगा, उसे दर्ज करें और सबमिट पर क्लिक करें।

      आधार से संदिग्ध लेनदेन होने पर इसके संबंध में शिकायत दर्ज करवाने के लिए लेनदेन इतिहास AUA (प्रमाणीकरण उपयोगकर्ता एजेंसी) से संपर्क कर सकते हैं। आप UIDAI को 1947 पर कॉल भी कर सकते हैं या अपनी शिकायत [email protected] पर मेल कर सकते हैं।

      आधार प्रमाणीकरण से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के 26 सितंबर, 2018 के फ़ैसले के बाद, इसको लेकर ज़्यादातर लोगों में भ्रम पैदा हो गया है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि कहा आधार ज़रूरी है और कहा नहीं है। आपको बता दें आधार, बैंक खातों, दूरसंचार सेवाओं और स्कूल प्रेवश/प्रवेश परीक्षाओं के लिए अनिवार्य नहीं है। वहीं पैन कार्ड, इनकम टैक्स रिटर्न दाख़िल करने और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार ज़रूरी है।

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