मुद्रा पहलू

जानिए, दुनिया की टॉप-5 मुद्राएं, भारत के राष्ट्रपति की सैलरी महज़ 1174 कुवैती दिनार होगी
आज हम आपको बता रहे हैं कि मुद्रा पहलू दुनिया की सबसे महंगी मुद्राएं कौन-कौन सी हैं और इनकी भारतीय रुपये में क्या कीमत है. इस लेख में हम ये भी बताएंगे कि अगर भारत के राष्ट्रपति को इन मुद्राओं में वेतन दिया जाए तो उनकी कितनी सैलरी होगी.
By: एबीपी न्यूज़ | Updated at : 20 Dec 2017 07:30 PM (IST)
नई दिल्ली: आज हम आपको बता रहे हैं कि दुनिया की सबसे महंगी मुद्राएं कौन-कौन सी हैं और इनकी भारतीय रुपये में क्या कीमत है. इस लेख में हम ये भी बताएंगे कि अगर भारत के राष्ट्रपति को इन मुद्राओं में वेतन दिया जाए तो उनकी कितनी सैलरी होगी.
- कुवैती दिनार- कुवैती दिनार कुवैत की आधिकारिक मुद्रा है. कुवैती दिनार हमेशा से ही दुनिया की सबसे ज्यादा महंगी मुद्रा रही है. हालांकि मार्केट में बदलाव के चलते मुद्रा थोड़ा बहुत कम या ज्यादा होती रहती है. आपको बता दें कि एक कुवैत दिनार की कीमत लगभग 213 रुपये हैं. यानि कि अगर एक दिनार आप भारत ले कर आते हैं तो बदले में आपको 213 रूपये मिलेंगे. भारत के राष्ट्रपति की तनख्वाह इस समय 2.5 लाख रुपये है. अगर इसी राशि को कुवैती दिनार में देंगे तो यह 1174 दिनार होगा.
- बहरैनी दिनार- बहरैनी दिनार बहरीन की मुद्रा है. एक बहरैनी दिनार का मूल्य भारत में लगभग 170 रुपया है. इस हिसाब से भारत के राष्ट्रपति की तनख्वाह लगभद 1,470 दिनार होगी.
- ओमानी रियाल- ओमानी रियाल ओमान की मुद्रा है. भारत में एक ओमानी रियाल की कीमत लगभग 167 रूपया है. अगर भारत के राष्ट्रपति की सैलरी को ओमानी रियाल में जोड़ें तो यह लगभग 1497 ओमानी रियाल होगा.
- जॉर्डन का दिनार- जॉर्डेनियन दिनार जॉर्डन की मुद्रा है. यह मुद्रा जॉर्डन के अलावा वेस्ट बैंक में भी इस्तेमाल किया जाता है. एक जॉर्डेनियन दिनार का मूल्य लगभग 90 रूपया है. इस हिसाब से भारत की राष्ट्रपति की सैलरी 2778 दिनार होगी.
- ब्रिेटेन का पाउंड- दुनिया भर में पाउंड तेजी से व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता है. एक पाउंड की कीमत लगभग 86 रुपये है. इस हिसाब से भारत के राष्ट्रपति की तनख्वाह 2906 पाउंड होती है.
Published at : 20 Dec 2017 07:02 PM (IST) Tags: currency हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi
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सुशासन की दिशा में सफलता की इबारत – लोक सेवा गारंटी Reading Time : 7 minutes -->
इसी भावना एवं लक्ष्य को केंद्र में रखता है – मध्य प्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम, जो सुशासन के लिए प्रदेश का गौरव भी बन गया है और पहचान भी। इस अधिनियम ने जनता के अधिकार को प्राथमिकता तो दी ही, सरकारी स्तर पर होने वाले अनावश्यक विलंब एवं उससे उपजने वाली स्थितियों में आवश्यक सुधार करने की पहल भी की। सुधार के इस क्रांतिकारी कदम के बाद मध्य प्रदेश सुशासन की दिशा में अग्रणी राज्य के रूप में उभरकर सामने आया है।
इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए भारत में ज़मीनी स्तर पर कई तरह के अहम कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है। इसी प्रगति की अहम कड़ी है, मध्य प्रदेश शासन का लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम। मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के शब्दों में – “यह अधिनियम नागरिकों को अधिकार संपन्न बनाने का नया आयाम है, यह क़ानून नागरिकों के अधिकारों को मज़बूत करने के साथ ही लोक सेवकों को अधिक संवेदनशील एवं जवाबदेह बनाता है।“
2010 में भारत का पहला राज्य बना मध्य प्रदेश, जिसने लोक सेवा गारंटी कानून लागू किया। इस अधिनियम के बाद मुद्रा पहलू आम जनता याचना की मुद्रा में नहीं है, बल्कि अधिकार को अधिकार के रूप में प्राप्त करने की मुद्रा में है।
कानून की प्रमुख विशेषताएं –
- हर सेवा प्रदान करने के लिए एक समय सीमा तय की गयी है जिसके भीतर ज़िम्मेदार अधिकारी को सेवा प्रदान करनी होगी।
- समय सीमा में कार्य न करने या अनावश्यक विलंब करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों को अर्थ दंड का प्रावधान है।
- प्रावधान के अनुसार दोषी अधिकारियों/कर्मचारियों से दंडस्वरूप मिलने वाली राशि पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति के रूप में प्रदान की जा सकती है।
- प्रदेश में अब तक इस अधिनियम के अंतर्गत 44 विभागों की 372 सेवाओं को अधिसूचित किया जा चुका है।
सुशासन के 3 प्रमुख पहलू होते हैं और इन तीनों ही पहलुओं पर यह क़ानून अपनी सार्थकता सिद्ध करते हुए खरा उतरता है –
- जवाबदेही: यह क़ानून लोगों को अधिसूचित सेवाएं प्रदान करने के लिए विभाग स्तर पर अधिकारियों की जवाबदेही तय करता है।
- पारदर्शिता: इस क़ानून के लागू होने के बाद व्यवस्था और नागरिकों के बीच कार्यवाहियों को लेकर पारदर्शिता बढ़ी है।
- समयबद्ध कार्यवाही: इस क़ानून के प्रावधान के अंतर्गत हर सेवा के प्रदाय के लिए एक समय सीमा तय की गयी है जिसमें आवेदन का निराकरण किया जाना है।
मध्य प्रदेश सरकार इस कानून को और अधिक प्रबल करने की दिशा में लगातार गतिशील है। वास्तव में, शक्ति एवं लाभ के केंद्र में आम आदमी को लाने की दृष्टि रखने वाली इस क्रांतिकारी पहल को शुरुआत से ही बेहतर प्रतिसाद प्राप्त हुआ। 2010 में इस कानून के लागू होन के एक साल में ही 70 लाख और 2014 तक 2.75 करोड़ लोग लाभान्वित हो चुके हैं और लगातार हो रहे हैं। प्रदेश सरकार सतत दृष्टि रख रही है कि इस दिशा में सुधार की और चुनौतियां क्या हैं और सटीक समाधान क्या हो सकता है।
हर बढ़ते चरण में, और सेवाओं को इस कानून के दायरे में लाना, गांव.गांव तक सेवा को सुलभ कराना, प्रक्रिया को और सरल बनाना, तकनीक की मदद से क्रियान्वयन करना आदि विषयों को लेकर मध्य प्रदेश सजग रहा है। हर संभव प्रयास के लिए कृत संकल्पित प्रदेश सरकार मुद्रा पहलू लोक सेवा प्रदाय गारंटी देते हुए अंतिम व्यक्ति तक अपनी पहुंच बनाने का मिशन और विज़न रखती है। लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम “सबका साथ, सबका विकास” सूत्रवाक्य की परिकल्पना को चरितार्थ भी कर रहा है। अतिशयोक्ति नहीं है कि सुशासन एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के मामले में मध्य प्रदेश, देश में लगातार मिसाल बन रहा है।
मुद्रा का विज्ञान, योग-आधारित कल्याण रणनीतियों पर पुस्तक, हिमालयन सिद्ध अक्षर द्वारा लॉन्च की गई
योग एक विश्व प्रसिद्ध समग्र अभ्यास है। योग के कई पहलू हैं जो हमारे जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन ला सकते हैं। योग के भीतर बहुत सारी तकनीकें हैं, जैसे योग आसन, प्राणायाम, मुद्रा, ध्यान और बहुत कुछ। शारीरिक या मानसिक विभिन्न स्वास्थ्य मुद्दों से हमें ठीक करने और उनका इलाज करने का उनका अपना तरीका है।
योग मुद्रा के संदेश को फैलाने के लिए, अक्षर योग 8 अक्टूबर 2022 को द साइंस ऑफ मुद्रा- द टीचिंग ऑफ हिमालय (खंड 1) लॉन्च कर रहा है, जिसे हिमालयन सिद्ध अक्षर द्वारा लिखा गया है, और क्लेवर फॉक्स पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित किया गया है। श्रद्धेय योग और आध्यात्मिक गुरु द्वारा लिखी गई समग्र कल्याण मार्गदर्शिका अमेज़न पर उपलब्ध है।
पुस्तक में वैज्ञानिक रूप से विकसित कल्याण रणनीतियों के साथ मूल्यवान संसाधन शामिल हैं। पुस्तक के पहले खंड में योग विज्ञान की अल्पज्ञात मुद्राएं हैं। इन मुद्राओं को कैसे नियोजित और प्राप्त किया जाए, इस पर व्यापक निर्देश हैं। सूर्य मुद्रा (सूर्य), पृथ्वी मुद्रा (पृथ्वी), वायु मुद्रा (वायु), अग्नि मुद्रा (अग्नि), आकाश मुद्रा (ब्रह्मांड/अंतरिक्ष), और जल मुद्रा (जल) का ज्ञान 51 मुद्राओं में से कुछ कहा गया है।
पुस्तक में विभिन्न सरल मुद्राओं जैसे ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा, प्राण मुद्रा आदि के लिए अभ्यास की तकनीकें हैं, जिनके अभ्यास में आसानी उन्हें सबसे उपन्यास उत्साही लोगों के लिए भी अनुकूल बनाती है। यद्यपि वे अपने अभ्यास के तरीके में सरल हैं, शरीर और मन पर उनका प्रभाव अत्यंत सम्मोहक है।
जब आप इन शिक्षाओं में आगे बढ़ते हैं, तो आप गरुड़ मुद्रा, शंख मुद्रा इत्यादि जैसी चुनौतीपूर्ण मुद्राएं देखेंगे जो अभ्यास करने के लिए अद्भुत हैं और जिनके लाभ लगभग जादुई हैं।
पूरी किताब में बिंदीदार मुद्राएं हैं जो विभिन्न जीवनशैली चुनौतियों और विकारों के माध्यम से हमारी मदद कर सकती हैं जिनका हम सभी सामना करते हैं।
यौगिक संस्कृति और परंपरा शरीर और बुद्धि दोनों को पोषण और बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देती है। स्वास्थ्य और इसके महत्व पर बातचीत आज अधिक से अधिक प्रचलित हो रही है। इसलिए मुद्रा विज्ञान इस कारण को आगे बढ़ाने के लिए निकटता से संबंधित है। योग का आध्यात्मिक और व्यावहारिक पक्ष हमें सिखाता है कि सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करने वाले तनाव, उदासी और चिंता के साथ कठिनाइयों का इलाज करते हुए एक स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन कैसे प्राप्त किया जाए।
मुद्रा का रूपांतरण : ‘कैश’ की जगह ‘क्रिप्टो’
जीवन के अनेक पहलुओं, खासकर आर्थिक लेन-देन के आभासी होते जाने की तरह अब मुद्रा भी आभासी हो गई है और इसे नाम दिया गया है – ‘क्रिप्टो।’ क्या यह ‘क्रिप्टो करेंसी’ सभी को समान रूप से उपलब्ध हो सकेगी? क्या इस मुद्रा को चलन में रखने के लिए सभी को आसानी से खास दर्जे का इंटरनेट मुद्रा पहलू मुहैय्या होगा? और क्या भारत सरीखे गैर-बराबर समाज में इस तरह का लेन-देन कारगर हो सकेगा?
केन्द्रीय बजट(2022) में क्रिप्टोकरेंसी पर हमारी सुशिक्षित वित्तमंत्री ने खासी बात की है और मीडिया के जरिये आप सभी सुसंस्कृत पाठकों ने भी क्रिप्टो दुनिया में भारतीय दखल की तस्वीर के कई पहलू जान-समझ लिए होंगे। यहां यह याद दिलाना जरूरी हो जाता है कि 2021 में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा क्रिप्टो करेंसी उपयोगकर्ता देश था। ध्यान रखें कि वियतनाम इस मामले में दुनिया में अव्वल है और पड़ोसी पाकिस्तान क्रिप्टो के इस्तेमाल में दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी ताकत है।
आने वाले सालों में हमारे देश में क्रिप्टो इस्तेमाल में तेजी से इजाफा होगा, इसकी पूरी संभावना है, लेकिन क्रिप्टो का उपयोग करने वाले लोग कौन होंगे? 2020 में देश के चार बड़े डिजिटल हब – पुणे, बंगलौर, गुडगांव और हैदराबाद में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक 73 प्रतिशत भारतीय आईटी प्रोफेशनल क्रिप्टोकरैंसी की उठापठक से अनभिज्ञ थे और उन्हें इस क्षेत्र की सामान्य समझ भी नहीं थी। महज आठ प्रतिशत आईटी प्रोफेशनल्स ने कहा कि वे क्रिप्टो के बारे में जानते हैं, जबकि तीन प्रतिशत ने स्वीकार किया कि वे क्रिप्टो में निवेश कर चुके हैं, या करने की तैयारी में हैं। अगर आईटी प्रतिभाओं को हम देश के डिजिटल संजाल के सबसे जानकार लोग मानें तो वे भी क्रिप्टो के मामले में अशिक्षित नजर आते हैं।
इंटरनेट की पहुंच के आंकड़ों के आधार पर कोई यह तर्क दे सकता है कि धीरे-धीरे ही सही गांवों, गरीबों, वंचितों तक भी इंटरनेट की पहुंच हो रही है। इस मासूम तर्क के साथ यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि दिल्ली, मुंबई, बंगलौर की चमचमाती बिल्डिंगों में पल—बढ़ रहे बच्चों और मंडला, बड़वानी, झाबुआ के सुदूर देहात में फेसबुक आईडी बना रहे युवाओं के बीच एक बात तो समान है कि वे दोनों ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि दोनों की गति और इस्तेमाल के तौर-तरीकों में जमीन-आसमान का फर्क है। अभिजात्य घरों के बच्चे जहां ‘कोडिंग,’ ‘इंटरनेट आफ थिंग्स,’ ‘डॉर्क वेब’ के सहारे रोबोटिक्स की अल्गोरिदम को साधने की कोशिश कर रहे हैं, तो वहीं गांवों की पथरीली जमीन पर बैठे अधिकांश युवा सोशल मीडिया के जरिये परोसे जा रहे कंटेंटनुमा जहर और नफरती भाषणों के अलावा हॉलीवुड—बॉलीवुड के सपनों को देखने को ही अपना हासिल मान चुके हैं।
यही वजह है कि एक तरफ हम भारत को ‘डिजिटल रेडीनेस स्कोर’ (डिजिटल टूल्स को सीखने की तैयारी) की रिपोर्ट में 100 में से 63 अंकों के साथ अव्वल पाते हैं, लेकिन दूसरी तरफ देखते हैं कि हमारी 135 करोड़ आबादी में से 110 करोड़नागरिक फेसबुक जैसे एप पर भी नहीं हैं और 118 करोड़ आबादी ईमेल का इस्तेमाल करने की सामान्य दक्षता भी नहीं रखती है। जाहिर है, ऐसे हालात में यह कयास लगा पाना कोई मुश्किल काम नहीं है कि डिजिटल करैंसी से कौन से लोग फायदा उठाएंगे और कौन इसमें अपनी पूंजी गंवाने के लिए अभिशप्त होगा।
देश में डिजिटल असमानता को इस तरह समझा जा सकता है कि एक तरफ हम बढ़ते सड़कों के जाल और मोटर वाहनों की तादाद को तरक्की का सूचक मानकर खुश होते हैं, लेकिन दूसरी तरफ देखते हैं कि कॉरपोरेट की भूख शांत करने वाले एक्सप्रेस-वे औरगांवों-देहातों को जोड़ने वाली सड़कों में भारी असमानता है। ठीक वैसा हीहाल डिजिटल दुनिया का भी है। 5जी से लेकर 2जी तक की सुविधा वाले इस समय में 5जी नेटवर्क के इस्तेमाल पर जहां चंद ताकतवरों का कब्जा है, तो बाकी जनता के बीच 2जी नेटवर्क के गोल-गोल घूमते पहिये की स्पीड से यह खामख्याली पैदा करने की कोशिश की जा रही है कि वह भी ग्लोबल दुनिया से जुड़ चुकी है।